रोहतक में दैनिक भास्कर के संपादक जितेन्द्र श्रीवास्तव की संदिग्ध परिस्थितियों में ट्रेन से कटकर मौत हो जाने के मामले की निष्पक्ष जांच करवाई जानी चाहिए. कई सारे सवाल मुंह बाए खड़े हैं. कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि जितेंद्र जैसा पत्रकार आत्महत्या कर ही नहीं सकता. उनकी हत्या की गई है और पूरे घटनाक्रम को दुर्घटना का रूप दे दिया गया है. मरने के तुरंत बाद दैनिक भास्कर ने लीपापोती कर केस को बदलवा दिया. 20 घंटे तक परिवार (पत्नी ) को सूचना नहीं दी गई. पत्नी ने जब फोन किया तो बताया गया कि जितेन्द्र जी मीटिंग में हैं. लगातार चार बार पत्नी के फोन पर गलत जानकारी दी गई.
जितेन्द्र श्रीवास्तव को दो छोटे बच्चे (पहला 9 साल और दूसरा 7 साल) हैं. मरने से पहले जितेंद्र के मोबाइल पर आखिरी फोन दैनिक भास्कर के HR का था. दैनिक भास्कर ने लीपापोती कर रेल गाड़ी के ड्राइवर का बयान भी बदलवा दिया. हरियाणा सरकार इसकी निष्पक्ष जांच करवाये. जितेंद्र सुसाइड संबंधित खबर को भास्कर में ऐसे छापा गया है जैसे वे हादसे में मर गए हों.
भास्कर प्रबंधन ने आनन फानन में पोस्टमार्टम कर जितेंद्र के भाई के साथ शव को इलाहाबाद भिजवा दिया. उनके बीवी बच्चों तक को इत्तला नहीं किया. यहां तक कि जितेंद्र के भाई को इलाहाबाद से बुलवाया गया लेकिन किसी अन्य से मिलने देने की बजाय उन्हें भास्कर वालों ने अपने साथ रखा और सीधे शव के साथ इलाहाबाद भिजवा दिया. पूरा मामले और भास्कर प्रबंधन का चरित्र संदिग्ध है इस प्रकरण में. बल्देव शर्मा और उनकी लाबी द्वारा जितेंद्र श्रीवास्तव को लगातार प्रताड़ित किए जाने की भी सूचना है जिसके कारण जितेंद्र तनाव में थे.
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