एक बड़ी और बुरी खबर रोहतक से आ रही है. दैनिक भास्कर के संपादकीय प्रभारी जितेंद्र श्रीवास्तव ने ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली है. बताया जा रहा है कि उनका प्रबंधन से लेटरबाजी भी हुई थी और पिछले दिनों पानीपत में हुई मीटिंग में उनकी कुछ मुद्दों पर अपने वरिष्ठों से हाट टॉक हुई थी. पर आत्महत्या की असल वजह क्या है, इसका पता नहीं चल पाया है.
जितेंद्र श्रीवास्तव (फाइल फोटो)
बताया जा रहा है कि आज सुबह वह बच्चों को स्कूल छोड़कर घर लौटे थे. उसके बाद सुबह सवा दस बजे घर से निकल गए. वह स्टेशन पहुंचे और जीआरपी थाने के पास ही ट्रेन के सामने कूद गए. आज उनका वीकली आफ भी बताया जा रहा है. लोग तरह तरह के कयास लगा रहे हैं. कुछ पारिवारिक तो कुछ आफिसियल कारण बता रहे हैं सुसाइड के पीछे. जितेंद्र के दो छोटे छोटे बच्चे हैं. एक आठ साल और दूसरा नौ साल का.
जितेंद्र वैसे तो संपादकीय प्रभारी थे लेकिन उनका पद न्यूज एडिटर का था. छोटी यूनिट होने के कारण रोहतक में न्यूज एडिटर को ही संपादकीय प्रभारी बना दिया जाता है. एक संपादकीय प्रभारी के सुसाइड कर लेने की घटना यह पहली है. बताया जा रहा है भास्कर प्रबंधन अपने संपादकों और संपादकीय प्रभारियों पर बेवजह भारी दबाव बनाए रखता है और तरह तरह के टास्क देकर उन्हें हर पल तनाव में जीने को मजबूर किए रहता है. जब अच्छी सेलरी और वेज बोर्ड देने की बात आती है तो खराब परफारमेंस का बहाना करके या तो नौकरी से निकाल दिया जाता है या काफी दूर तबादला कर दिया जाता है ताकि थक हार कर खुद ही इंप्लाई इस्तीफा दे दे. सूत्रों का कहना है कि इन दिनों भास्कर प्रबंधन छंटनी का अभियान चलाए हुए है और काफी लोगों को नौकरी से निकाल रहा है. भास्कर के न्यूज एडिटर के सुसाइड से रोहतक में हड़कंप मचा हुआ है.
Comments on “दैनिक भास्कर रोहतक के संपादकीय प्रभारी ने ट्रेन से कटकर आत्महत्या की”
अत्यंत दुखद..
आपकी लिखी खबर कयास लगाते हुए प्रबंधन के गिरेबान तक पहुंच रही है, मरने वाले की आत्मा की शांति की प्रार्थना तो कर लेते? हर लिखी सूचनात्मक खबर का क्लाइमेक्स एक ब्लैकमेलर की तरह करना आप लोगों की आदत हो गई है। लानत है?
आज यूं ही इच्छा हुई कि जरा भड़ास खंगालूं। हालांकि यह घटना तो मई माह की है मगर जीतेन्द्र श्रीवास्तव की आत्महत्या से संबंधित खबर दिखी तो उसे तफसील से पढ़ने लगा। हालांकि इस गलीज दुनिया से मैं कोसों दूर हूं। वैसे कभी मैं भी मीडिया में ही शामिल था। जीतेन्द्र और मैं दैनिक जागरण में साथ काम कर चुके थे। वह सहयोग करने में कभी पीछे नहीं रहते। मुझे दादा संबोधित करते थे। इस घटना को आत्महत्या नहीं हत्या कहा जाना चाहिए। ईश्वर उनके परिजनों को यह दारुण व्यथा को सहने की शक्ति दें।