दिलीप मंडल-
लोग ऐसे मर रहे हैं जैसे पेड़ों से पत्ते गिरते हैं. जयपुर के दैनिक भास्कर में एक दिन में 7 पन्नों पर शोक संदेश छपे हैं. ये कौन सा क्लास और कास्ट है जो मरने पर विज्ञापन देता है? ये मोदी का वोटर क्लास है. मोदी ने अगर एक साल स्वास्थ्य सेवाओं पर काम किया होता तो ये लोग शायद बच जाते.
देखें कुछ पन्ने-
रामा शंकर सिंह-
और यह जरूरी नहीं कि सब परिवार ऐसे शोक संदेश अख़बारों में छपवाते ही हों , अधिकांश तो बिल्कुल नहीं।
यह ऐसी ‘साजिश’ हुई है सरकार के खिलाफ कि कोरोना मृतकों का आँकड़ा सरकारी का जो भी होता है उससे कई गुना तो अख़बार ही प्रमाणित कर देते हैं।
एक से बढ़कर एक जनसेवक, मुख्य सेवक, प्रमुख सेवक, अवर सेवक, सहायक सेवक, संयुक्त सेवक, सनातन सेवक, राष्ट्र सेवक , वार्डसेवक , ग्राम सेवक और प्रधानसेवक आदिआदि ऐसे ग़ायब हुये जैसे गधों के सिर से सींग।खूब लोग पहचाने गये।
जिनको बडी जोर से जनसेवा लगी थी और तीन सौ सालों से पारिवारिक संबंध बताते नहीं थकते थे वे अचानक अदृश्य हो गये, चमचों भक्तों के फ़ोन तक नहीं उठ रहे! जो हुआ सो हुआ पर बंद नयन अब खुल ही जायें कि आगामी पीढ़ियॉं तो आत्मनिर्भर हो जायें।
अजय गुप्ता-
यहाँ यह एक परंपरा है। तीये और चौथे की बैठक से पहले ये शोक सन्देश देने की। इससे ही लोगों को अपने प्रियजनों/जानकारों की मौत और शोक सभाओं का पता चलता है। वरना शोकग्रस्त व्यक्ति किन किन लोगों को सूचित करता रहेगा?
इलाके के मंत्री,विधायक,पार्षद और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं वाले लोग इन्ही शोक संदेशों के आधार पर मृतक के प्रति अपनी संवेदनाएं प्रकट करते हैं,और उनमें शामिल भी हुआ करते हैं।
और भी तमाम चीज़ें हैं।