दैनिक भास्कर के एमडी सुधीर अग्रवाल ने एक पत्र ग्रुप के रिपोर्टर्स को जारी कर दैनिक भास्कर रतलाम के संपादक प्रशांत कालीधर के भ्रष्टाचार का उल्लेख करते हुए भ्रष्टाचार से दूर रहने का ज्ञान पिलाया. साथ ही यह भी बताया कि प्रशांत कालीधर को आजीवन भास्कर समूह से हटा दिया गया है. इंदौर से प्रकाशित प्रजातंत्र अखबार में एडिटर के बतौर ज्वाइन करने वाले प्रशांत ने अपने पर लगे आरोपों पर मुंह खोलते हुए फेसबुक पर लंबा चौड़ा जवाब पोस्ट किया है जिसमें उन्होंने सुधीर अग्रवाल को भी लपेटा है. उनका आरोप है कि सुधीर अग्रवाल ने सनसनी और नाटकीयता के लिए गलत तथ्य पेश किए. उन्होंने लिखा है-
”जिस रिकार्डिंग की बात सुधीरजी ने की है मुझे अच्छा लगता यदि वे उसका ज़िक्र नाटकीय रूप से करने के बजाय कहते कि वह हमें प्रशांत ने अपने मोबाइल से ही उपलब्ध करवाई थी और यह किसी शिकायत का हिस्सा नहीं थी। वैसे ऐसा करने से शायद भ्रष्टाचार की सनसनी का असर कम हो जाता।”
प्रशांत कालीधर के पक्ष को विस्तार से और पूरा का पूरा यहां प्रकाशित किया जा रहा है ताकि दोनों पक्ष सामने आ सकें.
-यशवंत (एडिटर, भड़ास4मीडिया)
पेशेगत ईमानदारी और एक संस्थान जिसमें इतने साल गुज़ारे, उसके सम्मान और संस्कार की खातिर अब तक मौन साध रखा था। अब उसे तोड़ने का समय आ गया है। दैनिक भास्कर के प्रबंध संचालक सुधीर अग्रवाल द्वारा मुझे हटाने को लेकर जो पत्र , पहले भास्कर समूह और बाद में भ्रष्ट षडयंत्रकारियों द्वारा जिस तरह सार्वजनिक किया गया है, उसपर न चाहते हुए भी अब मैं अपनी बात कहना चाहता हूं क्योंकि यह विषय अब सिर्फ मेरा नहीं बल्कि मुझसे जुड़े उन हजारों लोगों से भी संबंधित है जिन्हें मुझपर और मेरी इंटीग्रिटी पर हमेशा विश्वास रहा है।
सबसे पहले भास्कर समूह से हटाए जाने पर:-
चार साल पुरानी एक शिकायत जिसे संपादक से लेकर समूह संपादक तक सबने नकार दिया था, उस शिकायत की फाइल तीसरी बार खुलती है ताकि रतलाम संपादक के पद पर सैटेलाइट स्टेट एडिटर शिवकुमार विवेक अपने पसंदीदा व्यक्ति को बैठा सके। मुझे स्पष्टीकरण के लिए 20 दिसंबर को भोपाल बुलाया जाता है जहां जांच अधिकारी द्वारा यह कहे जाने पर कि आपके पास पैसे नहीं थे तो पिता को अच्छे अस्पताल में दिखाने की क्या जरूरत थी? मेरे द्वारा सख्त आपत्ति लेकर इस्तीफे की पेशकश की जाती है जिसे तुरंत स्वीकार कर लिया जाता है। इस्तीफा देने के बाद मैंने जब इस वाहियात सलाह की जानकारी प्रबंध संचालक सुधीर अग्रवाल को देने की बात कही तो जांच अधिकारी और सैटेलाइट स्टेट एडिटर ने कहा कि वे मुझसे मिलना नहीं चाहते। इसके दो दिन बाद, 22 दिसंबर को संस्थान द्वारा मेरे इस्तीफे पर दो महीने की सैलरी काटकर फुल एंड फायनल हिसाब भी कर दिया गया। सैलरी जमा करने करने का प्रमाण आईडीबीआई बैंक का चेक नंबर 719725 है। संस्थान से इस तरह इस्तीफा देकर निकलने के 7 दिन बाद प्रबंध संचालक द्वारा एक पत्र पूरे स्टॉफ को भेजा जाता है जिसमें ‘प्रशांत कालीधार को हटा दिया है’ की सूचना पूरे स्टॉफ को दी जाती है। चूंकि यह पत्र सिर्फ भास्कर कर्मचारियों तक ही पहुंचा था और मुझे इस बारे में अपने सहकर्मियों ने ही सूचना दी थी। लिहाजा संस्थान से 19 सालों के रिश्तों का लिहाज करते हुए इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देने का निर्णय लिया था। इसके बाद मुझे हटाने के षड्यंत्र में शामिल कुछ वरिष्ठों के द्वारा न केवल इस पत्र को सार्वजनिक किया गया बल्कि उसे मीडिया तक भी पहुंचाया गया।
अब बात मुझ पर लगे आरोपों की:-
वैसे यह कोई सार्वजनिक प्रचार का विषय नहीं है लेकिन मेरे अपने जानते हैं कि बीते 6 माह में मैंने अपने पिता को मेदांता अस्पताल में उपचार के दौरान और मां को आकस्मिक मौत के कारण खोया है। मेरी माताजी के उत्तरकार्य के लिए मैंने विधानसभा चुनाव के 8 दिन बाद अपने एक मित्र से जो संयोग से एक नेता से जुड़े हैं से अपनी एक प्रॉपर्टी के एवज में उधार माँगा था और यह राशि लौटाने की बात भी कही थी जिसकी जानकारी भी कहीं और से नहीं बल्कि मेरे फ़ोन से मैंने ही उपलब्ध करवाई थी जिसे जांच अधिकारी ने मेरे ही ख़िलाफ़ उपयोग किया। जिस रिकार्डिंग की बात सुधीरजी ने की है मुझे अच्छा लगता यदि वे उसका ज़िक्र नाटकीय रूप से करने के बजाय कहते कि वह हमें प्रशांत ने अपने मोबाइल से ही उपलब्ध करवाई थी और यह किसी शिकायत का हिस्सा नहीं थी। वैसे ऐसा करने से शायद ‘भ्रष्टाचार की सनसनी’ का असर कम हो जाता।
जाँच दल के सामने:-
20 दिसंबर को जब मैं भोपाल पहुंचा तो मुझे कहा गया कि आपके पिता को अच्छे अस्पताल ले जाने की क्या जरूरत थी? मेरे द्वारा सख्त ऐतराज जताया गया तो जांच अधिकारी ने कहा कि मैं आपका मोबाइल देख सकता हूं। इस पर मैंने अपना मोबाइल उनके हाथों में दे दिया जिसे वे देर तक देखते रहे और कॉल रिकॉर्डिंग सुनते रहे। इसमें मेरी पत्नी-बच्चे से हुई बातचीत के कॉल भी शामिल थे। इसी में एक रिकॉर्डिंग में वह रिकॉर्डिंग भी थी जिसका विवरण मैं दे चुका हूं। चूंकि उस कॉल रिकॉर्डिंग में छुपाने और डर जैसा कुछ नहीं था इसलिए मुझे अपना मोबाइल देने में भी कोई आपत्ति नहीं थी। आश्चर्य इस बात का है कि मेरे ही द्वारा दिए मोबाइल पर मौजूद कॉल रिकॉर्डिंग को भास्कर के प्रबंध संचालक द्वारा इस तरह प्रस्तुत किया गया जैसे यह रिकॉर्डिंग उन्हें किसी ओर ने दी हो। मुझे अच्छा लगता प्रबंधन ईमानदारी दिखाता और यह लिखता कि यह रिकॉर्डिंग प्रशांत के फोन से ही प्राप्त हुई है मगर तब तक तो मैं शिकार बना लिया गया था। मेरे द्वारा ही उपलब्ध करवाए गए प्रमाणों को मेरे ही खिलाफ उपयोग करने का झूठा आधार जांच अधिकारी को मिल चुका था लिहाजा उसे ही मेरे खिलाफ दोष माना गया और यही जानकारी श्री सुधीर अग्रवाल को भी दी गई। उस दिन मेरे बार-बार कहने के बाद भी क्यों श्री अग्रवाल से नहीं मिलने दिया गया। इसका कारण एक हफ्ते बाद तब समझ में आया जब मुझे एक दोषी के रूप में दुष्प्रचारित कर दिया गया।
मैंने जो यहां लिखा है उस हर बात के प्रमाण मेरे पास मौजूद हैं। इतने सालों में मेरी छबि के बारे में मेरे साथ काम करने वाले किसी भी व्यक्ति या मुझे जानने वालों से कोई भी तस्दीक कर सकता है। यह पत्र भी कोई सफाई नहीं है। मुझपर विश्वास रखने वालों के प्रति मेरी जिम्मेदारी तो होनी ही चाहिए कि उन्हें सच और तथ्यों से अवगत करवाऊं।
प्रशांत कालीधर
इंदौर
पूरे प्रकरण को जानने के लिए मूल खबर पढ़ें….
Alok
January 12, 2019 at 8:54 am
प्रशांत जी बडी मछली कई छोटी मछलियो को खा जाती है अपनी ईमानदारी दिखाने के चक्कर मै सब जानते है अखबार मालिक क्या करते है कौन सी खबर छापते है और कौन सी रोकते है
महेश जोशी
January 12, 2019 at 4:08 pm
मुझे प्रसान्त जी की ईमानदारी पर जरा भी संदेह नही हे और एक बार प्रसान्त जी को सुधीर जी से मिलकर बात करनी चाहिए
ऐश्वर्या
January 12, 2019 at 3:39 pm
काश सुधीर अग्रवाल बता पाते कि तीन राज्यो मैं। बीजेपी की हार का सेहरा उनके ऊपर है ,कमल नाथ के कांग्रेस पभारी बनाते ही उनसे 4 घंटे से अधिक की मीटिंग उसके बाद इलेक्शन कवरेज के नाम पर जो 6 माह जहर उगला गया है और इन तीन राज्यो मैं। सबसे बड़े अखबार होने का फायदा उठाया है, महाभारत के नाम पर जिसमे जयप्रकाश चौकसे ,Nk सिंह,श्रावण गर्ग जैसे नामो से कवरेज में जहर उगला है यह उनका असर है इसका पैसा भास्कर ने कितना लिया होगा। किसी को नही पता ,महाभारत2019 के नाम आए रोजाना यह जहर पिछले मई 2018 से लोकसभा के लिए एहि बेस बना रहा है भास्कर अब विश्वनीय नही रहा , सिर्फ एक ट्रान्सल्टेड पेपर हो गया है, विनय माहेश्वरी के जाने के एक माह में जो हालात है उनके कारण सब एम्प्लोयी दर के सायें में ही है।