पीड़ित जनता की गुहार सुन भगवान विष्णु बोले – ‘रुको, भस्मासुर इलाज करता हूं!’

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विश्व दीपक-

भस्मासुर को अपनी ताकत का बहुत गुमान था. हो भी क्यूं न. उसके पास वरदान ही ऐसा था. वो जिसके भी सर पर हाथ रख देता, वह भस्म हो जाता था. वरदान भी किसी छोटे-मोटे देवता ने नहीं बल्कि ‘गॉड ऑफ कॉमन मैन’ भगवान शंकर ने दिया था. आलम यह था कि लोग उसे देखते ही डर कर छिप जाते.

किसी की मज़ाल क्या कि वो भस्मासुर की आलोचना भी कर दे. बैर लेना तो दूर की बात. अगर भस्मासुर को किसी पर शक हो जाता था तो समझिए कि उसकी खैर नहीं. भस्मासुर उसे जलाकर मार देता. वो अपने विरोधियों को चुन-चुनकर भस्म कर चुका था. वो जितना लोगों को जलाता, भस्म करता, लोग उससे उतना ही डरते. उसका अहंकार उतना ही बढ़ता जाता.

उसे लगा कि अब तो सिर्फ उसी की सत्ता, उसी का सिद्धांत, उसी का दर्शन चलेगा. सब चुप थे, डरे हुए थे. भस्मासुर तो भस्मासुर, उसके फुट शोल्जर्स ने भी तबाही मचा रखी थी. चौक-चौराहे, गली-मोहल्ले से लेकर सड़क-संसद हर जगह उन्ही का कब्जा था.

फिर एक दिन पीड़ित जनता ने एक दिन भगवान विष्णु से मुलाकात की. मदद की गुहार लगाई. विष्णु ने कहा – रुको इलाज करता हूं. विष्णु मोहिनी बनकर भस्मासुर के पास पहुंचे. मोहिनी को देखकर भस्मासुर के दिल का गिटार बजने लगा. वह पिघल गया.

विष्णु समझ गए. कहा – भस्मापुर तुम डांस बहुत अच्छा करते हो. जरा करके दिखाओ. भस्मासुर के पास सत्ता थी, पैसा था, वो सबसे शानदार महल में रहता था, ऐश्वर्य उसके दरवाजे पर पहरेदारी करता था. बस एक ही कमी थी — मोहिनी की. भस्मासुर ने सोचा बस मोहिनीमिल जाय तो जीवन सफल हो जाएगा. मोहिनी को हासिल करने की लालसा में, भस्मासुर नाचने लगा.

मोहिनी ने कहा कि सिर पर हाथ रखकर नाचो भस्मासुर. ज्यादा प्रभावी दिखोगे. तुम्हारे जैसा बड़ा ताकतवर आदमी पूरे देश में कोई नहीं. जब तुम सज-धजकर सिर पर हाथ रखकर नाचोगे न तो दुनिया देखती रह जाएगी. सारे लोग तुम्हारे आगे सिर झुकाएंगे.

“नाचो, सिर पर हाथकर नाचो भस्मासुर,” मोहिनी ने कहा. भस्मासुर को लगा मोहिनी की बात में दम है. वह मगन होकर नाचने लगा.

जिन्होंने भस्मासुर को वरदान दिया, वो शंकर पेड़ के पीछे छिपकर सब खेला देख रहे थे. उन्हें पता था कि भस्मासुर उनके दिए हुए वरदान का कई सालों से दुरुपयोग कर रहा है. जनता त्रस्त है. इसका अंत बहुत ज़रूरी है. वो भी भेष बदलकर सामने आ गए. बोले भस्मासुर जी आप क्या डांस करते हैं. आपसे अच्छा नर्तक तो तीनों लोक में नहीं है. भस्मासुर फूला नहीं समाया. वो और जोर से नाचने लगा.

मोहिनी के साथ कदम से कदम मिलाता हुआ भस्मासुर नृत्य में खो गया. जिस समय मोहिनी की लालसा में भस्मासुर नाच रहा था उस वक्त उसके पैरों के नीचे ज़मीन नहीं थी. उसके पैर हवा में उठे हुए थे. ताकत, सत्ता के नशे में भस्मासुर गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को भी मात दे रहा था.

आखिरकर एक ऐसा क्षण आया जब नाचते हुए भस्मासुर ने अपना हाथ अपने ही सिर पर रख दिया. जैसे ही उसने अपना हाथ अपने सिर पर रखा जलकर राख हो गया.

वो भस्मासुर जो दूसरों को जलाता था एक दिन खुद को ही जला बैठा.

जनता ने राहत की सांस ली. शकंर जी, कैलाश चले गए तपस्या करने. विष्णु बैकुंठ धाम. हम इधर फेसबुक पर भस्मासुर की कहानी बताने चले आए.

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