काश पूरा देश बीकानेर हो जाता

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मरहूम शायर अज़ीज़ आज़ाद ने एक बार कहा था “मेरा दावा है सब ज़हर उतर जायेगा, सिर्फ़ इक बार मेरे शहर में रहकर देखो” या अल्फ़ाज़ उस शहर-ए-तहज़ीब की हक़ीक़त बयाँ करते हैं जिसे ये संसार बीकानेर के नाम से जानता है और जो देश  सीमावर्ती इलाक़ों में एक है. रेगिस्तान की रेत के बीच क़रीब 528 सालों बसे बीकानेर की स्थापना राव बीकाजी ने अक्षय द्वितीया को की थी.

इसके बसाये जाने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.दरअसल राव बीकाजी जोधपुर रियासत के राजकुमार थे और अपने आप में एक बड़ी हैसियत रखने वाले लोगों में थे. एक दिन किसी काम के लिए जल्दी करने के कारण उनकी भाभी ने उनसे मज़ाक़ कर लिया कि देवरजी इतनी जल्दी में हो, क्या कोई नया शहर बसाना है. बस यही बात उनके दिल में बैठ गयी और उसी वक़्त राव बीकाजी जोधपुर से अपना क़ाफ़िला लेकर जांगल प्रदेश की और रवाना हो गए. उस समय बीकानेर नाम की कोई रियासत नहीं थी. जहाँ आज बीकानेर बसा हुआ है वह जांगल प्रदेश का हिस्सा भर था और यहाँ भाटियों की हुकूमत थी. जब राव बीकाजी वहाँ पहुंचे तो उनका सामना उस समय के एक जागीरदार से हुआ, जिसका नाम नेर था. उसने ये शर्त रख दी कि नए शहर के नाम में उसका ज़िक्र भी आना चाहिए और राव बीका और नेर के नामो को मिलाकर बीकानेर नाम का नया शहर बसाया गया.

इस शहर पर शुरू से ही राजपूत राजाओं की हुकूमत रही जिन्होंने समय समय पर अपनी कुशलता को साबित किया। लेकिन उन सब में महाराजा गंगा सिंह का नाम आज भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है. महाराजा गंगा सिंह जहाँ  कुशल शासक के रूप में अपनी पहचान रखते थे, वहीं समय से आगे सोचने की योग्यता भी रखते थे. यही कारण था की अंग्रेज़ों की हुकूमत के दौरान उनकी पहुँच महारानी विक्टोरिया तक थी और विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें ब्रिटिश-भारतीय सेनाओं के कमान्डर-इन-चीफ़ को ज़िम्मेदारी सौंपी गयी जिसे उन्होंने बख़ूबी निभाया। गंगा सिंह के समय में बीकानेर एक विकसित रियासत था और जो सुविधाएं दूसरी रियासतों ने कभी देखी नहीं थीं, वे भी बीकानेर में आम लोगों को उपलब्ध थी. बिजली, रेल, हवाई जहाज़ और टेलीफ़ोन की उपलब्धता करवाने वाली रियासत बीकानेर ही थी. यहाँ का पीबीएम अस्पताल देश के बेहतरीन अस्पतालों में शुमार होता था.

लेकिन आज़ादी के बाद बीकानेर शहर से सभी सरकारों ने सौतेला  व्यवहार किया और विकास के नाम पर बीकानेर दूसरे सभी शहरों से पीछे रह गया. यहाँ के लोग विकास को तरस गए और अब तक पिछड़ेपन के आलम में ही जीने को मजबूर हैं. बीकानेर का रेलवे वर्कशॉप किसी ज़माने में जहाँ 17000 कर्मचारियों की क्षमता रखता था वहीं अब 1000 कर्मचारी भी नहीं बचे हैं. बीकानेर में पर्यटन की भरपूर सम्भावनाएं होते हुए भी सरकार ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया जिसका नतीजा यह है की निजी स्तरों पर किये जाने वाले प्रयासों से ही दुनियाँ बीकानेर को देख पाती है.

उद्योगों की यहाँ खूब सम्भावनाएं होने के बावजूद किसी भी सरकार की नज़र-ए-इनायत यहाँ नहीं हुई और सारे प्रोजेक्ट्स दूसरे शहरों को मिलते रहे. इसका एक कारण यहाँ का शिथिल नेतृत्व भी रहा जिसने कभी बीकानेर के लिए अपनी आवाज़ बुलन्द नहीं की. मंदिरों और महलों के इस शहर के लोग विकास का सपना अभी देख ही रहे हैं.

पूरी दुनियाँ को रसगुल्ले की मिठास और भुजिया पापड़ के चटख़ारों का एहसास करवाने वाला बीकानेर जहाँ आधुनिक विकास के नाम पर पिछड़ा हुआ है वहीं कला और संस्कृति के नाम पर बहुत ही मालामाल है. बीकानेर की उस्ता कला पूरी दुनियां में विख्यात है. ऊँट की ख़ाल पर की जाने वाली चित्रकारी हो या पत्थरों पर खूबसूरत नक़्क़ाशी हो, पूरी दुनियां यहाँ के कलाकारों के सामने नतमस्तक होती है. मरहूम हाजी ज़हूरदीन उस्ता।मरहूम अलादीन उस्ता और मुहम्मद हनीफ़ उस्ता ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपना हुनर  दुनिया से मनवाया है.

संगीत के क्षेत्र की बात करें तो मांड गायिका अल्लाह जिलाई बाई ने मांड को दुनिया में स्थापित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और भारत की सरकार ने उन्हें सलाम करते हुए पद्मश्री के सम्मान से नवाज़ा. संगीत की इस विरासत को आगे बढ़ाने में भी बहुत से नाम हैं जिनमें पाकीज़ा फिल्म के संगीतकार ग़ुलाम मुहम्मद और हालिया नौजवान गायक राजा हसन प्रमुख हैं. पंडित भारत व्यास ने गीतकार के रूप में अपनी ख़ास पहचान बनाकर बीकानेर को गौरवान्वित किया।

साहित्य का क्षेत्र तो बीकानेर के लोगों को सलाम करता नज़र आता है. उर्दू हो या हिंदी या फिर राजस्थानी। बीकानेर के साहित्यकारों का लम्बा सिलसिला है. हिंदी की बात करें तो स्व. हरीश भादाणी, यादवेन्द्र शर्मा “चन्द्र”, नन्द किशोर आचार्य, भवानी शंकर शर्मा “विनोद”, डॉ. बुलाकी शर्मा और भी न जाने कितने नाम हैं, जिन्होंने हिंदी भाषा को समृद्ध करने में अपना योगदान दिया है. उर्दू जुबां का ज़िक्र करें तो मरहूम मुहम्मद उस्मान “आरिफ़” दीवान चन्द “दीवां” मुहम्मद हनीफ “शमीम” मरहूम ग़ाज़ी बीकानेरी,रासिख़ न जाने कितने ऐसे अदीब हैं जिन्होंने अपनी क़लम के ज़रिये उर्दू अदब की शमाँ जलाकर बीकानेर का नाम रोशन किया है और ये सिलसिला अब तक जारी है.

तहज़ीब के मामले में बीकानेर सबसे हटकर है. यहाँ के लोग जहाँ खाने पीने के शौक़ीन हैं वहीं इन्सानियत उनके लिए सबसे बड़ा मज़हब है. कोटगेट पर बानी हज़रत हाजी बलवान शाह पीर की दरगाह पर हाज़री देने से पहले यहाँ के लोग अपनी दुकाने नहीं खोलते। बाद फिर से हाज़री होती है. इनमें से नब्बे फ़ीसद लोग धर्म को मानने वाले हैं वहीं लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर हो या नागणेचेजी का मंदिर हो. फूल बेचने वाले सभी लोग मुस्लिम हैं. यहाँ के मोहल्ले भी एक आपस में एक दूसरे से लगे हुए हैं जहाँ दोनों मज़हबों के लोग साथ बैठकर मुहब्बत के नग़मे गाते नज़र आते हैं. किसी के रास्ता पूछ लेने पर साथ जाकर बताकर आना यहाँ के लोगों की आदत में शामिल है.

वहीं सुबह सुबह कचौड़ियों और समोसों के साथ रसगुल्लों और घेवरों  आनन्द लेना भी प्रिय शग़ल है. तहज़ीब इस तरह बरक़रार है कि अयोध्या आन्दोलन के दौरान देश भर में दंगे हो जाने पर भी यहाँ के लोग साथ बैठकर एक दूसरे के यहाँ खा-पी रहे थे. तत्कालीन प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने यहाँ का भाईचारा देखकर कहा था “काश पूरा देश बीकानेर हो जाता”। ऐसा निराला शहर बीकानेर अक्षय द्वितीया को अपना स्थापना दिवस मनाता है और अक्षय तृतीया के दिन भी पतंगबाज़ी कर शहर के स्थापक राव बीकाजी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है. अक्षय द्वितीया के दिन जहाँ जगह जगह आयोजन होते हैं वहीं अक्षय तृतीया को पूरा शहर अपनी अपनी छतों पर चढ़ जाता है और शुरू होता है पतंगबाज़ी का दौर जो बोई काटा है-बोई मारा है कि आवाज़ों के साथ रात तक जारी रहता है. हालांकि अक्षय तृतीया जहाँ पतंगबाज़ी के लिए मशहूर है और बीकानेर में इस जश्न को देखने बाहर से भी लोग आते हैं वहीं विवाहों के लिए भी इस दिन को बड़ा शुभ माना गया है. इस दिन शहर में हज़ारों शादियां होती हैं और पतंगबाज़ी के बाद लोग शादियों की दावतों का लुत्फ़ भी लेते नज़र आते हैं. किसी ज़माने में ये दिन बाल विवाह के लिए भी जाना जाता था लेकिन बीकानेर अब इस कुप्रथा को छोड़ इक्कीस वीं सदी में दाखिल हो चुका है. अब बाल विवाह कहीं भी होता नज़र नहीं आता. ऐसा है दुनियां का निराला शहर बीकानेर जहाँ की सरज़मीं प्यार और मुहब्बत के नग़मे गाकर पूरी दुनियां को अमन का पैग़ाम देती है.

लेखक नासिर ज़ैदी, ब्यूरो चीफ़, ए-वन टीवी, बीकानेर का संपर्क नंबर : 9460355786 

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