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भाजपा ने न्यूज चैनल खुलवाया है तो उसके एजेंडे पर ही तो काम करेगा!

क्या अर्नब गोस्वामी ने पहली बार साम्प्रदयिक वैमनस्यता फैलाई है? देश का दुर्भाग्य यह है कि देश उन राजनीतिक दलों के भरोसे है जो समाज में गुलाम पैदा कर रहे हैं। जिनका मकसद किसी भी तरह से सत्ता हथियाकर जनता के खून पसीने की कमाई पर अय्याशी करना मात्र रह गया है। संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए चारों तंत्रों में भी यही देखा जा रहा है। मीडिया इनमें सबसे आगे आ गया है। आज की तारीख में मीडिया और सोशल मीडिया पर छत्तीसगढ़ के रायपुर में कांग्रेस नेताओं द्वारा अर्नब गोस्वामी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का मामला छाया हुआ है। मामले में गोस्वामी पर साम्प्रदायिक वैमनस्य पैदा करने का आरोप लगाया गया है।

मेरा कांग्रेस नेताओं के साथ ही उन सभी लोगों से प्रश्न है कि क्या गोस्वामी ने पहली बार साम्प्रदायिक वैमनस्यता फैलाई है? अरे भाई गोस्वामी का चैनल भाजपा ने खुलवाया है। भाजपा के पैसों से ही चल रहा है तो क्या चैनल कांग्रेस के लिए काम करेगा? स्वभाविक है कि जो भाजपा जो चाहेगी वही चैनल में बोला जाएगा। वही दिखाया जाएगा। मीडिया को सरकारों का भोंपू बनाने में कांग्रेस का योगदान क्या कम है?

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वैसे तो मैंने काफी समय से किसी चैनल पर होने वाली बिन सिर पैर की डिबेट देखना बंद कर रखा था। हां, इस लॉक डाउन में कुछ डिबेट देखी हैं। अर्नब गोस्वामी का न्यूज चैनल देखने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। कोई आश्चर्य नहीं हुआ। जो भाजपा का एजेंडा है, उसी पर गोस्वामी का चैनल भी काम कर रहा है।

ऐसे में हर समझदार आदमी यही कहेगा कि क्या किसी पार्टी विशेष के लिए काम करने वाले चैनल के खिलाफ शिकायत नहीं होनी चाहिए ? पहले तो मैं यह बता दूं कि चाहे कांग्रेस हो या फिर दूसरे विपक्षी दल, इन्हें भी देश और समाज के भले से कुछ लेना देना नहीं है। किसी तरह से अपना वोटबैंक बनाये रखना है। साम्प्रदायिक वैमनस्य तो बहाना है। असली बात यह है कि राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस इस चैनल पर कांग्रेस के हिसाब से नहीं दिखाई गई और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर अलग से टिप्पणी कर दी गई।

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क्या विपक्ष में बैठे दलों को पता नहीं है कि चैनल की भाषा क्या है? किस मकसद से यह चैनल चलाया जा रहा है। चैनल पर इन्हें बोलने नहीं दिया जाता है। तो फिर क्यों जाते हैं इस चैनल पर? क्यों नहीं चैनल की फंडिंग का मुद्दा उठाते? ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि खुद भी तो ऐसा ही करते रहे हैं। भाजपा आज जो भी कुछ कर रही है, सब कांग्रेस का ही दिखाया गया रास्ता है। सारे के सारे दल मीडिया का इस्तेमाल अपने लिए करना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रिंट मीडिया में मजीठिया वेज बोर्ड लागू नहीं किया गया। उल्टे मांगने वाले मीडियाकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया। कितने चैनल और कितने दल उठा रहे हैं इस मुद्दे को? मीडिया को सुरक्षा और पैसे चाहिए। यह सब तो आज की तारीख में भाजपा ही दे सकती है, तो सब उसके एजेंडे पर चल रहे हैं?

बात अर्नब गोस्वामी या कांग्रेस की ही नहीं है। कुछ जुनूनी पत्रकारों और नेताओं को छोड़ दें तो राजनीतिक दलों और मीडिया में भांड़ इकट्ठे हो गए हैं। देश और समाज के लिए काम करने वाले पत्रकारों और नेताओं को न कोई मीडिया हाउस बर्दाश्त कर पा रहा है और न ही कोई राजनीतिक दल। जनता भी जाति धर्म के आधार पर बंटी हुई है। सच्चाई पर चलने और सच्चे लोगों का साथ देने वाले लोग न के बराबर रह गए हैं। आज की तारीख में छल, कपट, चाटूकारिता और मुखबरी करने वाला सफल व्यक्ति माना जा रहा है। देश और समाज के प्रति समर्पित होकर काम करने वाला व्यक्ति लोगों की नजरों में बेवकूफ बना हुआ है। फिर भी लोग न जाने किस किससे देश के उद्धार की उम्मीद लगाए बैठे हैं। यदि वास्तव में ही देश और समाज का भला चाहते हो तो जमीर जगाओ अपना और अपने आकाओं का।

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कोरोना की ही लड़ाई पर आ जाइये। सरकारों के साथ ही विपक्ष और मीडिया मजदूरों की बात कर ऐसा दिखा रहे हैं कि जैसे सभी को बस इन मजदूरों की ही चिंता है। दावे कितने भी किये जा रहे हों पर मजदूरों का अभी भी पैदल ही घर के लिए निकल जाना और अपने गांवों जाने की रट लगाना यह दर्शा रहा है कि मजदूरों को कोई खास राहत नहीं मिल रही है। कोई कितने भी बड़े बड़े दावे करता घूम रहा हो पर इस लड़ाई में भी सम्पन्न व्यक्ति को तरजीह दी जा रही है। सरकार भारतीय मूल के लोगों को विदेश से बुलाकर उन्हें उनके घर पहुंचा सकती है पर अपने ही देश में फंसे मजदूरों को उनके घर नहीं पहुंचा सकती है। देश में कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित महाराष्ट्र में तो सरकार ने चीनी मजदूरों को उनके घरों को भेजने की व्यवस्था भी कर दी थी कि गृह मंत्रालय ने रोक दिया। अब उद्धव सरकार प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन चलाने की बात कर रही है पर केंद्र का इस ओर कोई ध्यान नहीं। जब उत्तर प्रदेश सरकार कोटा में फंसे छात्र छात्राओं को उनके घर पहुंचा सकती है। जब बिहार का एक विधायक अपनी बेटी को कोटा से घर ला सकता है। तो फिर विभिन्न शहरों में फंसे मजदूर क्यों नही ? यह मुद्दा नहीं दिखाई देगा अर्नब गोस्वामी को। कोटा में फंसे बिहार के छात्र छात्राएं तो वीडियो बना बनाकर अपने घर भेजने की गुहार लगा रही हैं।

छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो कांग्रेस की ही सरकार है तो फिर क्यों नहीं करती इन मजदूरों को उनके घर भिजवाने की व्यवस्था ? वैसे भी इन मजदूरों के अपने घर लौटने पर सरकारों का आर्थिक बोझ भी कम होगा जमोनी हकीकत तो यह है कि विभिन्न दलों के नेताओं के साथ ही इनके घनिष्ठ मित्रों के ही देश में धंधे चल रहे हैं। ये सब जानते हैं कि यदि ये मजदूर घर लौट गए तो जल्द से शहर आने वाले नहीं हैं। किसी भी तरह से इन मजदूरों को रोके रखना है, चाहे धीरे धीरे ये लोग कोरोना के आगोश में जाते रहें। इन चैनलों और राजनीतिक दलों को लोगों की समस्याएं नहीं दिखाई दे रही हैं। इस पर मंथन नहीं करेंगे कि इस कोरोना महामारी से कैसे निपटा जाए ? अभी भी बस वोटबैंक और अपने आकाओं का हुक्म बजाते रहो।

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लेखक चरण सिंह राजपूत सोशल एक्टिविस्ट हैं.

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1 Comment

1 Comment

  1. Kushal jain

    May 1, 2020 at 7:46 pm

    Kewal modi virodh aur kuch nahi desh me katrpanthi jamati corona phela rhe hai uske bars me bola apne kewal jagah chawaniya Sonia ki chatukarita

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