विश्व पुस्तक मेले के पांचवे दिन राजकमल प्रकाशन समूह की कई नयी किताबों का लोकार्पण हुआ। राजकमल प्रकाशन के स्टाल (संख्या -237 से 256) में आयोजित लोकार्पण के कार्यक्रम में प्रतिष्ठित पुरस्कारों एवं कई भिन्न सम्मान से सम्मानित कोरियन लेखक यी मुन यॉल की पुरस्कृत किताब ‘खलनायक’ का, प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह द्वारा लोकार्पण किया गया। उपन्यास का हिन्दी अनुवाद दीविक रमेश ने किया है।
लोकार्पण के अन्य कार्यक्रम में सूरीनाम के हिन्दी लेखकों पर आधारित, राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित किताब ‘सुरीनाम का सृजनात्मक हिन्दी साहित्य’ का विमोचन प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह द्वारा किया गया। इस किताब का चयन व संपादन संयुक्त रूप से डॉ. विमेशकांति वर्मा व भावना सक्सेना ने किया है। विश्व पुस्तक मेला अपने आप में एक ऐसा मंच है जहाँ लेखक सीधे तौर पर अपने पाठकों से मुखातिब होते हैं। ऐसा मंच जहाँ पुस्तकप्रेमी पाठक अपने पसंदीदा लेखक से मिलने के लिए टिकट काउंटर की लंबी भीड़ का सामना भी खुशी से करते हैं। ऐसी ही एक पाठकप्रिय किताब ‘नरक मसीहा’ के पेपरबैक संस्करण का लोकार्पण राजकमल प्रकाशन के स्टाल पर किया गया।
वरीष्ठ लेखक भगवान दास मोरवाल लिखित उपन्यास ‘नरक मसीहा’ के पेपरबैक संस्करण के लोकार्पण के अवसर पर बोलते हुए प्रतिष्ठित आलोचक नामवर सिंह ने कहा, “मैं मौखिक परंपरा का लेखक हो गया हूं। मुझे सर्वजन सुलभ संस्करण आने की खुशी है। मोरवाल जी ने इस उपन्यास के द्वारा नए बाज़ारवाद की ओर लोगों का ध्यान फ़िर से आकर्षित किया है। मैं बधाई देता हूं।“ इस मौके पर आलोचक वीरेन्द्र यादव ने भी लेखक भगवानदास मोरवाल को बधाई देते हुए कहा कि, ‘जिस तरह से नई आर्थिक नीतिया लागूं हुई है उसकी नकेल वैश्विक पूंजी के हाथ में है। आंदोलनों से जुड़े हुए लोगों को एनजीओं संस्कृति ने भक्षित कर लिया है। विपन्नता को लोगों ने व्यवसाय के रूप में अपनाया है। मोरवाल जी ने नए विषय पर नए ढंग व प्रमाणिक रूप से लिखा है।’ इस मौके पर पत्रकार और लेखक रामशरण जोशी ने ‘काला पहाड़’ से लेकर ‘नरक मसीहा’ तक भगवान दास मोरवाल की लंबी यात्रा का जिक्र किया।
नरक मसीहा का पेपरबैक संस्करण आने पर खुशी जाहिर करते हुए लेखक भगवान दास मोरवाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि एनजीओ की संस्कृति में गरीबी को बाईप्रोडक्ट के रूप में देखा जाता है। राजकमल प्रकाशन समूह के स्टाल पर ‘पं. विद्यानिवास मिश्र संचयिता’ का भी लोकार्पण किया गया। यह संचयिता हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के सहयोग से राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित की है।
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