सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में टीम मोदी ने विज्ञापन, फेक मीडिया व प्रशांत किशोर की साइबर टीम का सहारा लेकर मोदी की जबरदस्त ब्रांडिंग की। इसके लिए लाखों फेक आईडी बनवाई गईं। इस नये तरीके के प्रचार ने जनता को इतना प्रभावित किया कि पूरे भारत में सिर्फ मोदी ही मोदी हर जगह छाये रहे। जैसे ब्रांडिग का उपयोग बड़े पूंजीपति घराने अपने माल की बिक्री के लिए किया करते हैं, मोदी ने ठीक उसका ही अनुसरण किया। कई व्यापारिक घरानों को लगा कि इस मोदी ब्रांडिग का लाभ सीधे उनको मिलेगा। अच्छे दिन आ जायेंगे। वह हुआ भी। एक चाय वाले की ब्राण्डिंग इस प्रकार की गई कि देश को लगा कि राजनीति का यही असली ब्रांड है।
विज्ञापन और कारपोरेट की दुनियों में ‘ब्रांडिंग’ का मतलब है कि आप जिस उत्पाद को देख-सुन रहे हैं, वह विश्वसनीय है और इसकी सेवा को प्राप्त करने में आपको कोई धोखा नहीं होगा। 2014 का चुनाव इसी प्रकार मोदी की ब्रांडिंग कर के लड़ा गया था। करोड़ों रुपये इस ब्रांड को प्रचारित करने में पानी की तरह बहाया गया। चुनाव इतना महंगा बना दिया कि निष्पक्ष लोकतंत्र की कल्पना ही बेमानी लगने लगी। पूरे चुनाव में भाजपा को कोई अता-पता नहीं था, सिर्फ मोदी-मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा गया। इसके चलते भाजपा का स्थायित्व पूर्णतय समाप्त होकर यह पार्टी दो व्यक्ति का प्रतीक बन गया।
2019 के चुनाव में इस ब्रांडिंग का असर साफ दिखने लगा। शिवसेना, अगप चुनाव से पूर्व मोदी को खुल तौर चुनौती दे रही थीं। शिवसेना अब शेर से चूहा बन गई। असम में असम गण परिषद गीदड़ बनकर पुनः भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया। दूसरी तरफ आडवानी खेमे को किनारे लगा दिया गया। एक प्रकार से देखा जाए तो भाजपा अब एक राजनीति संगठन ना रह कर एक व्यापारिक संगठन है जिसमें मोदी इसके ब्रांड का काम कर रहे हैं।
इस ब्रांड राजनीति का एक सबसे बड़ा खतरा यह भी है कि अगर कभी इस मोदी नामक ब्रांड में पर दाग लग गया, किसी राजनीतिक झमेले में फंस गए, जैसे राफेल की खरीदारी का मुद्दा हुआ या नोटबंदी का मसला है, तो इससे पूरी भापजा का जहाज बीच समुद्र में ही डूब जायेगा।
इस ब्रांड में स्थायित्व नहीं है क्योंकि 2014 में किये सारे वादे झूठे निकले। 2019 इस ब्रांड की लेबलिंग बदल कर इसे ‘चौकीदार’ बना दिया गया, जो विज्ञापन जगत में एक उत्पादन की असफलताओं को छुपाने का प्रयास माना जाता है। मोदी भक्तों को आभास हो चुका था कि उनका ब्रांड बाजार में फेल हो चुका है। इसके लिये उन्होंने दस नये रास्ते चुने कि कैसे 2019 के चुनाव में सफलता पाई जाए। इस दस रास्ते इस प्रकार हैं-
1.”अच्छे दिन आयेंगे” चुनाव में कोई नेता ना उछाले ताकि विपक्ष को हमला करने को मौका मिले।
2.राफेल सौदे पर या सरकार के कामकाज पर कोई बात न हो।
3.विपक्ष खास कर कांग्रेस पर हमला और तेज कर दिया जाए।
4.हिन्दूत्व, देशभक्ति और देश की सुरक्षा को जम कर भूनाया जाए।
5.नोटबंदी या जीएसटी की बात कोई न करे।
6.महागठबंधन को बदनाम किया जाए।
7.विपक्षी नेताओं को मुद्दों से भटकाकर रखा जाए।
8.प्रतिपक्ष के कुछ दलाल नेताओ से ऊल-जलुल बुलवाकर, गोदी मीडिया के सहारे उनके वक्तव्यों पर जनता को गुमराह किया जाए।
9.जनता को चुनाव तक मोदी कार्यकाल की विफलताओं पर सोचने का कोई भी अवसर ना दिया जाए।
10.भाजपा के तमाम बड़े नेताओं को किनारे लगाकर मोदी ब्रांड को और अधिक मजबूत किया जाए।
देखना है कि 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा अपने ब्रांड मोदी के नए लेबल से जीत जाएगी या ये प्रयोग फेल हो जाएगा।
लेखक शंभू चौधरी स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं.