कंवल भारती-
बसपा के शर्मनाक पतन पर अब कुछ लोग कह रहे हैं कि बसपा दलितों की पार्टी है, उसे हमें बचाना है। कैसे बचा लेंगे आप? जब मुखिया ही पार्टी को बचाना नहीं चाहती तो आप कैसे बचा लेंगे।
मुखिया ने सर्वजन समाज की बात कही, आप कुछ बोले? मुखिया ने गुजरात में जाकर मोदी के लिए वोट मांगे, आप कुछ बोले? दो बार भाजपा से हाथ मिलाया, आप कुछ बोले?
मुखिया ने परशुराम की प्रतिमा बनाने की बात कही, आप कुछ बोले? मुखिया ने हाथी नहीं गणेश का नारा दिया, आप कुछ बोले?
दलित उत्पीड़न के विरोध में मुखिया ने कोई धरना प्रदर्शन नहीं किया, आप कुछ बोले? अब आप कुछ भी करने और बोलने का अधिकार खो चुके हैं।
एक समय था, जब कांशीराम से प्रभावित होकर बहुत से गैर-चमार जातियों के बुद्धिजीवी बसपा से जुड़े थे. इनमें पासी, खटिक, वाल्कीकि समुदाय के कई प्रदेश स्तर के महत्वपूर्ण नेता थे. कुछ को मायावती सरकार में मंत्री भी बनाया गया था.
पर बसपा नेतृत्व ने उन सबको निकाल बाहर किया. ऐसा क्यों किया गया? इसके पीछे क्या कारण था? बसपा के भक्त प्रवक्ता इसका यही उत्तर देंगे कि वे पार्टी के खिलाफ काम कर रहे थे. चलो मान लिया, फिर उनकी जगह पर उन समुदायों में नया नेतृत्व क्यों नहीं तैयार किया गया? इसका वे कोई जवाब नहीं देंगे.
असल में सच यह है कि गैर-चमार नेतृत्व को हटाने और आगे न उभारने का काम बसपा ने भाजपा के साथ एक पैक्ट के तहत किया था.
आज एक वाल्मीकि मित्र से फोन पर देर तक चुनाव नतीजों पर चर्चा हुई. मैंने उनसे कहा, भाजपा को दो किस्म के लोगों ने जिताया है, एक पेट भरे लोगों ने, और दूसरे बेहोश लोगों ने.
उन्होंने पूछा, बेहोश का मतलब? मैंने कहा, मतलब क्या बताऊं, बस यह समझ लो कि जब तक ये लोग होश में आयेंगे, इनकी कई पीढ़ियां बर्बाद हो चुकी होंगी. वह बोले, मैं समझ गया.
36 मुसलमान जीत कर सदन में पहुंचे हैं, कम से कम उनकी आवाज तो हिंदू सदन में गूंजेगी. पर भाजपा से जीते हुए दलित-पिछड़े तो गूंगे-बहरे बनाकर ही रहेंगे.