दिलीप खान-
मायावती अब मीम मैटिरियल बन चुकी हैं. उनका हर बयान डार्क चुटकुले की तरह है. इस महिला ने सिर्फ़ जेल जाने के डर के कारण पूरी पार्टी को डुबो दिया.
मायावती को बीजेपी से सांठ-गांठ करके सिर्फ़ इतना हासिल हुआ है कि मोदी-शाह उनपर इनकम टैक्स और ईडी की रेड नहीं मरवा रहे हैं. बस, इतना ही. बदले में सबकुछ गंवा दिया.
सारी शक्ति रसातल में चली गई.
सतीशचंद्र मिश्र को गुनहगार मानना फ़ालतू की बात है. ये ऐसा ही है जैसे बीजेपी के फ़ैसले के लिए शाहनवाज़ हुसैन को क़सूरवार ठहरा देना.
ये असलियत से मुंह मोड़ना है और मायावती को सीधे ज़िम्मेदार ठहराने से कतराना-घबराना-लिहाज़ करना है.
पहली दफ़ा, मायावती की आलोचना पर झपट्टा मार बैठने वाले समर्थक ख़ामोश हुए है. उन्हें अब जाकर ऐहसास हुआ कि बहन जी ने क्या किया है!
नवीन कुमार-
BSP को मायावती जी ने सत्ता की लड़ाई से सातवें नंबर की पार्टी बना दिया। एक सीट। बीजेपी सपा और रालोद को जाने दीजिए। निषाद पार्टी और बीएसपी से अलग होकर बनी अपना दल और सुभासपा जैसी पार्टियां उससे बहुत आगे निकल चुकी हैं। मान्यवर कांशीराम के बाद मायावती कभी पार्टी संभाल ही नहीं पाईं। 2007 की जीत कांशीराम के निधन से उपजी सहानुभूति की जीत थी। मायावती जी ने अपनी समझ में हाथों में त्रिशूल-गणेश उठाकर BSP को सतीश मिश्र के कदमों में डाल दिया।
मायावती जी ने 2014 में ही चुनाव लडना छोड़ दिया था। 2012 तक वो मान्यवर कांशीराम की पकाती हुई सियासी रोटी खाती रहीं। मोदी की आंधी में बहुजन राजनीति के गेरुआ हो जाने के पीछे सबसे बड़ा योगदान बीएसपी का है।
सोशल मीडिया पर ट्रॉल आर्मी और विचारविहीन भीड़ में तब्दील कर दी गई सेना ने मायावती और बीएसपी को सबसे ज्यादा धोखा दिया है। बाबा साहब का नाम लेकर इन लोगों ने विश्वास और विचार दोनों की ठगी की है।