रवि कुमार-
इतना अपार समर्थन फिर भी हार गये ! तुम्हें अपनी हार का ठीकरा बसपा फर फोड़ते जरा भी शर्म क्यों नहीं आयी !!
राष्ट्रीय लोक दल (जयंत चौधरी), सुहेलदेव समाज भारतीय समाज पार्टी (ओम प्रकाश राजभर), प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (शिवपाल यादव), अपना दल-कमेरावादी (कृष्णा पटेल), महान दल (केशव देव मौर्य), जनवादी सोशलिस्ट पार्टी (संजय चौहान), तृणमूल काँग्रेस (ममता बनर्जी), राष्ट्रीय जनता दल (तेजस्वी यादव), कांशीराम बहुजन समाज पार्टी (सावित्री बाई फुले), गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (अरविंद कुमार गोंड), शिवसेना (संजय राउत), पोलिटिकल जस्टिस पार्टी (राजेश सिद्धार्थ), वंचित बहुजन आघाड़ी (प्रकाश अम्बेडकर), राष्ट्रवादी कॉंग्रेस पार्टी (शरद पवार), सीपीआई-M (सीताराम येचुरी), सीपीआई-ML (दीपांकर भट्टाचार्य), स्वामी प्रसाद मौर्य, आज़म खान, इमरान मसूद , दद्दू प्रसाद, समता सैनिक दल, बहुत सारे रिटायर्ड आईएएस पीसीएस, आदि। किसान आंदोलन का नेतृत्व कर्ता राकेश टिकैत। ये सब वो पार्टी व नेता हैं जो या तो समाजवादी पार्टी के गठबंधन में शामिल थे या इनका समर्थन अखिलेश यादव को था।
आम आदमी पार्टी और कॉंग्रेस ने यह बोलकर कि जरुरत पडी तो हम समाजवादी पार्टी को सपोर्ट करेंगे तो अखिलेश को ही समर्थन कर रखा था..और साथ ही मीडिया का भी साथ मिला जिसने शुरू से ही समाजवादी पार्टी को खूब जगह दी और बसपा को लड़ाई से बाहर दिखाकर अखिलेश की वोटों में खूब इजाफा कराया।
इतना बड़ा गठबंधन और समर्थन होने वाबजूद भी हार जाना और हार का जिम्मेदार बसपा को ठहराना बिल्कुल भी उचित नहीं। सिर्फ मीडिया की वज़ह से सबसे बड़ा समर्थन रहा मुस्लिम समाज का जिन्होंने एकमुश्त समाजवादी पार्टी को वोट दिया जबकि इलेक्शन में मुस्लिम का नाम लेने से भी अखिलेश यादव डर रहे थे चाहे हिजाब विवाद हो या टिकट वितरण या कुछ और जबकि बहनजी ने इस पर खुलकर अपनी बात रखी।
यह बात अलग है कि अखिलेश यादव को अपना वोट नहीं मिला। अब भी कुछ लोग इस सबके लिए बसपा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं जबकि बसपा को 13 पर्सेन्ट काडर वोट मिला जो किसी भी हालत में SP के साथ नहीं जाता क्योंकि अखिलेश यादव ने ही पूर्व में संसद में प्रमोशन में आरक्षण के बिल को फड़वाया था और महापुरुषों के नाम पे जिलों के नाम को बदल दिया था।
और भी बहुत से विरोध हैं। वेसे यह भी ठीक रहा के ओवैसी को सिर्फ 0.49 पर्सेन्ट जबकि नोटा को 0.69 पर्सेन्ट वोट मिला, नहीं तो सारा ठीकरा ओवैसी के ऊपर फूटता लेकिन इस बार ओवैसी नहीं तो मायावती सही…
सच तो यह है कि इतना अपार समर्थन होने पर भी तुम हार गए और अपनी नाकामी छुपाने के लिए दूसरों को जिम्मेदार ना बनाओ।
और जो मुलायम यादव के परिवार के लोग जैसे अपर्णा यादव, संध्या यादव, अनुजेस प्रताप यादव, हरि ओम यादव, प्रमोद कुमार आदि को बीजेपी में जाने से रोको…आत्मचिंतन करो आत्ममंथन करो समीक्षा करो नीति व नेतृत्व में बदलाव करो।
ठीक है इलेक्शन है हार जीत लगी रहती है। यह सब मत करो कि अगर जीते तो अपने दम पर और अगर हारे तो किसी और की वज़ह से। मतलब मीठा-मीठा गप-गप और कडवा-कडवा थू-थू।
बसपा समर्थक रवि कुमार की fb वॉल से.