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नेशनल दुनिया प्रबंधन की लापरवाही, फोटो जर्नलिस्ट बेटे की मौत के गम में बूढी मां ने भी दम तोडा

नयी दिल्ली । नोएडा से प्रकाश्ति  होने वाले नेशनल दुनिया अखबार के फोटो जर्नलिस्ट ओमपाल की मौत की खबर के सदमें से उसकी बूढी मां इतनी विचलित हुयी कि उनहोने भी अपने प्राण त्याग दिये। युवा फोटो जर्नलिस्ट ओमपाल की मौत 18 जनवरी को हुयी थी, ओमपाल डयूटी से लौटते समय नवंबर 2015 में एक सडक दुर्घटना में घायल हो गये थे। 18 जनवरी 16 को ओमपाल की मौत हो गयी थी, वह काफी समय से कोमा में थे। ओमपाल की मौत के सदमे से आहत उसकी बूढी मां श्रीमति कैला देवी ने 27 जनवरी 16 को पलवल में अपने प्राण त्याग दिये।

<p>नयी दिल्ली । नोएडा से प्रकाश्ति  होने वाले नेशनल दुनिया अखबार के फोटो जर्नलिस्ट ओमपाल की मौत की खबर के सदमें से उसकी बूढी मां इतनी विचलित हुयी कि उनहोने भी अपने प्राण त्याग दिये। युवा फोटो जर्नलिस्ट ओमपाल की मौत 18 जनवरी को हुयी थी, ओमपाल डयूटी से लौटते समय नवंबर 2015 में एक सडक दुर्घटना में घायल हो गये थे। 18 जनवरी 16 को ओमपाल की मौत हो गयी थी, वह काफी समय से कोमा में थे। ओमपाल की मौत के सदमे से आहत उसकी बूढी मां श्रीमति कैला देवी ने 27 जनवरी 16 को पलवल में अपने प्राण त्याग दिये।</p>

नयी दिल्ली । नोएडा से प्रकाश्ति  होने वाले नेशनल दुनिया अखबार के फोटो जर्नलिस्ट ओमपाल की मौत की खबर के सदमें से उसकी बूढी मां इतनी विचलित हुयी कि उनहोने भी अपने प्राण त्याग दिये। युवा फोटो जर्नलिस्ट ओमपाल की मौत 18 जनवरी को हुयी थी, ओमपाल डयूटी से लौटते समय नवंबर 2015 में एक सडक दुर्घटना में घायल हो गये थे। 18 जनवरी 16 को ओमपाल की मौत हो गयी थी, वह काफी समय से कोमा में थे। ओमपाल की मौत के सदमे से आहत उसकी बूढी मां श्रीमति कैला देवी ने 27 जनवरी 16 को पलवल में अपने प्राण त्याग दिये।

ओमपाल का 6 माह का वेतन नेशनल दुनिया पर बकाया था। आर्थ्कि तंगी के कारण ओमपाल का इलाज नहीं हो पाया जिसके कारण इस युवा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। ओमपाल की पत्नी पूनम हाउस वाइफ हैं, एक छोटा बेटा है जिसकी उम्र 13 साल है। रोजगार का कोई साधन पूनम के पास नहीं है। इन हालातों के चलते ओमपाल की मां भी सदमे में आ गयीं और उनकी मौत हो गयी। ओमपाल के परिजनों का कहना है कि इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद नेशनल दुनिया के प्रबंधकों ने उनकी मदद करना तो दूर उनका बकाया वेतन तक नहीं दिया।

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सम्पादक बलदेव भाई शर्मा और  प्रबंधन के करीबी सुभाष सिंह से कई बार गुहार लगायी गयी। दोनों का जवाब था कि इसमें कम्पनी क्या कर सकती है। इस नाइंसाफी के खिलाफ अब कोई साहित्यकार अपना अवार्ड वापस कर विरोध भी प्रकट नहीं कर रहा है, प़त्रकार संगठन चुप्पी साधे हुए हैं। सवाल उठता है क्या यह असहिष्णुता नहीं है। अखबार मालिक की गर्दन पकड़ने वाला कोई कानून नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता और नेताओं को सांप सूंघ गया है। परिजनों ने बताया कि 30 जनवरी 16 को मां बेटे की एक साथ पलवल में तेरहवी की रस्म की गयी। इस मौके पर पत्रकार तो आये लेकिन नेशनल दुनिया का कोई अफसर इस मौके पर सांत्वना देने नहीं पहुंचा।

Premnath Sharma की रिपोर्ट. संपर्क: [email protected]

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