दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम से जुड़ा आईएनएक्स मीडिया मामला मनी लॉन्ड्रिंग का एक बेहतरीन उदाहरण है और उसकी प्रथम दृष्टया राय है कि मामले में प्रभावी जांच के लिए उनसे हिरासत में पूछताछ की जरूरत है। उच्च न्यायालय ने कहा कि तथ्यों के आधार पर प्रथम दृष्टया पता चलता है कि याचिकाकर्ता इस मामले में प्रमुख व्यक्ति मुख्य साजिशकर्ता है। उच्च न्यायालय ने बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मनी लॉन्ड्रिंग का एक क्लासिक उदाहरण है।
न्यायमूर्ति सुनील गौड़ की एकल पीठ ने चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जमानत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा। पीठ ने यह भी गौर किया कि जब कांग्रेस नेता को अदालत से राहत मिली हुई थी तो उन्होंने पूछताछ में जांच एजेंसियों को स्पष्ट जवाब नहीं दिया।हाईकोर्ट के इस फैसले को चिदंबरम के साथ ही पूरी कांग्रेस पार्टी के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
चिदंबरम ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के मामलों में दो अग्रिम जमानत याचिकाएं दाखिल की थीं। हालांकि चिदंबरम की ओर से पीठ से इस मामले में अपील करने के लिए तीन दिन का सरंक्षण देने का अनुरोध किया गया लेकिन पीठ ने इसे ठुकरा दिया। इस बीच दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करने के बाद कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम का मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया। हालांकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मामले की तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि इसे बुधवार को वरिष्ठ जज के सामने मेंशन करें।
अपने फैसले में पीठ ने कहा कि आर्थिक अपराध को कठोरता से निपटाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता अपने जवाबों में अस्पष्ट रहे हैं और उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया है।जांच एजेंसियों के हाथ इतने बड़े आर्थिक अपराध में बांधे नहीं जा सकते। इस मामले में सुनवाई के दौरान सीबाआई और प्रवर्तन निदेशालय ने कहा था कि आईएनएक्स मीडिया मामले में जांच के लिए कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम से पूछताछ के लिए उनकी हिरासत जरूरी है और उन्हें गिरफ्तारी से सरंक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। पीठ ने जनवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दरअसल चिदंबरम के खिलाफ सीबीआई आईएनएक्स मीडिया घोटाले से संबंधित भ्रष्टाचार और एड मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रही है। गौरतलब है कि सीबीआई ने इस मामले में 15 मई 2017 को केस दर्ज किया था। चिदंबरम पर आरोप लगाया गया था कि UPA के कार्यकाल के समय 2007 में वित्त मंत्री रहने के दौरान आईएनएक्स मीडिया को 305 करोड़ रुपये की विदेशी धनराशि प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (ऍफ़आईपीबी) की मंजूरी दिलाने में कथित अनियमितता बरती गई।
पीठ ने कहा कि मौजूदा कानून में संशोधन की आवश्यकता है, जिससे अग्रिम जमानत के प्रावधान को सीमित किया जा सके और आईएनएक्स मीडिया घोटाले जैसे बड़े आर्थिक अपराधों में इसे अस्वीकार्य बनाया जाए। न्यायमूर्ति सुनील गौड़ ने कहा कि बड़े आर्थिक अपराधों के लिए अग्रिम जमानत नहीं है और कानून बनाने वालों को माफी के साथ कानून तोड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती, खास तौर पर बड़े मामलों में।
चिदंबरम पर आईएनएक्स मीडिया केस में फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रोमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) से गैरकानूनी तौर पर मंजूरी दिलाने के लिए रिश्वत लेने का आरोप है। यूपीए -1 सरकार में वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान एफआईपीबी ने दो उपक्रमों को मंजूरी दी थी। आईएनएक्स मीडिया मामले में सीबीआई ने 15 मई 2017 को प्राथमिकी दर्ज की थी। इसमें आरोप लगाया गया है कि वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान 2007 में 305 करोड़ रुपये की विदेशी धनराशि प्राप्त करने के लिए मीडिया समूह को दी गई एफआईपीबी मंजूरी में अनियमितताएं हुईं।
ईडी ने पिछले साल इस संबंध में मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किइस मामले में कथित रूप से 10 लाख रुपये हासिल करने के लिए चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी साल 23 मार्च को सीबीआई द्वारा दर्ज केस में कार्ति चिदंबरम को जमानत देते हुए कहा था कि उनकी न्याय से भागने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि समाज में उनकी जड़ें हैं, उनके माता-पिता वरिष्ठ वकील हैं और उनके पास देखभाल करने के लिए एक परिवार भी है। साथ यह भी ध्यान में रखते हुए कि 28 फरवरी से 12 मार्च तक सीबीआई ने पुलिस हिरासत के दौरान किसी भी चौकाने वाली सामग्री को बरामद नहीं किया है।जस्टिस एसपी गर्ग ने 12 मार्च के बाद तिहाड़ जेल में रहने वाले कार्ति को जमानत दी थी। आईएनएक्स मीडिया कंपनी के तत्कालीन निदेशक इंद्राणी मुखर्जी और पीटर मुखर्जी भी इस मामले में आरोपी बनाए गए थे।