इस तस्वीर को संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने आगरा के एसएसपी को भेजा नोटिस
एक विचित्र मामला सामने आया है. एक नंगे खड़े छोटे बच्चे के लिंग की तरफ हाथ की उंगलियों का घेरा बनाकर सेल्फी लेने वाली लड़की पर एक शख्स ने उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को पत्र लिखा.
पत्र को संज्ञान लेते हुए आयोग ने आगरा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है.
इसमें कुछ मजेदार तथ्य भी हैं. पत्र भेजने वाला मयंक सक्सेना युवक है. पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इन्हें श्रीमती मयंक सक्सेना बना दिया है. मतलब एक तो विवाहिता बता दिया, दूसरे स्त्रीलिंग कर दिया.
मयंक सक्सेना ने आयोग से पूछा है कि उन्हें कैसे पता चल गया कि ये मामला आगरा का है जो आगरा के एसएसपी को नोटिस जारी कर दिया. मयंक ने अपने पत्र में संबंधित तस्वीर के गूगल पर सर्च किए जाने के स्क्रीनशाट भेजे थे. उन्होंने ये कहीं नहीं लिखा था कि ये मामला आगरा का है.
फिलहाल आप मयंक सक्सेना द्वारा लिखा गया मूल पत्र और तस्वीर देखें. फिर आयोग द्वारा जारी नोटिस….
अभी डाक के माध्यम से राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग का एक पत्र उपलब्ध हुआ। इसमें प्रार्थी का नाम श्रीमती मयंक सक्सैना वर्णित है। जबकि प्रार्थी एक अविवाहित युवक है। प्रार्थी, न कि प्रार्थिनी। दूसरा, मुझे जो चीज़ गलत और घृणित लगी उसे आप सभी के संज्ञान में तत्काल दिया ऐसे में यह निर्धारण कैसे किया गया कि मामला आगरा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से सम्बंधित है? (ये मेरी जिज्ञासा है।) ये रहा मेरा ओरिजनल पत्र जिसे मेल से कई अधिकारियों को भेजा…..
सेवा में,
सम्बंधित अधिकारी
महोदय/महोदया,
फेसबुक और ट्विटर जैसी बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कुछ अश्लील सेल्फी फोटोज शेयर किये जा रहे हैं। प्रश्न यह है कि ट्विटर और फेसबुक पर छोटे से छोटे क्लर्क से लेकर बड़े से बड़ा अधिकारी और मंत्री जुड़ा हुआ है। इतना ही नहीं, बड़े से बड़ा न्यायिक विभाग और आयोग जुड़े हुए हैं। ऐसे में यह देखकर स्तब्ध हूँ कि ऐसे अश्लील सेल्फी फोटो पर न तो कोई जाँच डाली गई है न किसी तरह की कोई कार्यवाही। यद्यपि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आज के युग में इमेज डिजाइनिंग अपने चरम पर है लेकिन फिर भी इसका खुलासा जांच के बाद ही संभव होगा।
प्रथम दृष्टया तो ये कोई एडिटेड पिक्स नहीं लग रही। दूसरी बात शक्ल से यह भारतीय मूल की लडकियां ही लग रहीं हैं।
संलग्न फोटोज को देखिये और आपको स्पष्ट होगा कि वह बालक जिसका लिंग पकडे हुए लड़कियों की सेल्फी है वह महज़ 8 या 9 साल का बालक लग रहा है।
ऐसे में क्या यह किसी तरह का sexual harassment जैसा मामला नहीं? क्या यह किसी child abusing का मामला नहीं? क्यों हमारा देश जातियों में और genders में इतना biased हो चुका है कि बालकों के प्रति, पुरुषों के प्रति इस कदर उदासीन हो गया है?
यह जाँच के बाद स्पष्ट होगा कि यह फोटोशॉप की देन है या कुंठित मानसिकता की। लेकिन उसके लिए जांच अत्यंत आवश्यक हो जाती है।
मुझे अगर किसी महिला या किसी युवती के साथ गलत होना भी किसी साइट पर दीखता है तो मैं तत्काल उस पोस्ट में राष्ट्रीय महिला आयोग, श्री नरेंद्र मोदीजी, श्री रवि शंकर प्रसाद जी, उत्तर प्रदेश पुलिस और श्री योगी आदित्यनाथ जी को टैग कर देता हूँ।
पर जब बात ठीक उलट पुरुषों या बालकों पर आती है तो मैं पीछे नहीं रह सकता। पुरुष करे किसी कुकृत्य को तो वह निसंदेह ही गलत है लेकिन यदि उसी काम को कोई महिला कर दे तब एक लिंगवादी राजनीती के चलते सब मूक हो जाते हैं।
मैंने 10 दिसंबर को MINHA/E/2019/09332 के अंतर्गत पुरुष बलात्कार का आँकड़ा National Crime Records Bureau की साइट पर उपलब्ध न होने के बाबत गृह मंत्रालय से पूछा था जो जॉइंट सेक्रेटरी Smt Punya Salila Srivastava जी के पास तमाम अनुस्मारकों के बाद भी तब से ही लंबित है जिसकी वजह आप मान सकते हैं कि शायद भारत पुरुषों के साथ हो रहे बलात्कार पर उदासीन हो गया है। उसे ये लगता है कि पुरुष का बलात्कार होना इस देश में संभव नहीं। क्यों ऐसी मानसिकता देश में है?
मैं समाज सेवक के तौर पर पिछले दो वर्षों से सक्रिय हूँ। और स्तब्ध हूँ कि जातिवाद और लिंगवाद में देश का विकासवाद पिछड़ रहा है। किसी अपराध में लिंग विभेद कहा तक जायज़ है? अनुरोध है आयोगों से न्यायाधीशों से अधिकारीयों और बड़े राजनेताओं से कि suo moto के अंतर्गत मामले को तत्काल संज्ञान में लेते हुए इमेज की जाँच करवाई जाए और यदि सत्यता प्रमाणित हो तो तत्काल कार्यवाही करते हुए देश को एक नया सन्देश दें।
धन्यवाद
आपके देश का एक सम्मानित नागरिक
मयंक सक्सैना
(Mayank Saxena),
आगरा (उत्तर प्रदेश)
संलग्न: आपत्तिजनक सेल्फी फोटोज सह पोस्ट और सर्च हिस्ट्री