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सियासत

चीन के कम्यूनिस्ट और भारत के संघी कई मुद्दों पर एकमत हैं!

केपी सिंह-

राष्ट्रवाद से जुड़ी है बजरंगबली की साधना, जानिये कैसे
हिन्दू पर्वों को राजकीय पर्व के रूप में परिवर्तित करने के भाजपा के प्रयास देश भर में अब जबरदस्त तरीके से फलीभूत हो रहे हैं। यह भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे के अनुरूप है। हालांकि इसके पहले भी भाजपा को केन्द्र और प्रदेश में सत्ता में रहने का अवसर मिल सका है लेकिन तब सहयोगी दलों पर आश्रित होने की वजह से उसके लिए अपने एजेंडे को कार्यरूप देने के मामले में स्थितियां कम्फर्टेबिल नहीं थी। अब भाजपा दोंनों जगह पूर्ण बहुमत में है और उसने देश के जनमत का रूख भी अपने एजेंडे की ओर इस जबरदस्त तरीके से मोड़ा है कि विरोधी दलों में भी हिम्मत नहीं रह गई है कि इस बारे में कोई उंगली उठा सके।

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कम्युनिस्ट देश होने के नाते भारतीय जनता पार्टी को चीन से बहुत विरोध है पर कई मजेदार संयोग हैं जो बताते हैं कि कुछ पहलुओं में भारतीय जनता पार्टी और चीनी सरकार की नीतियां एक सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। हाल ही के कुछ वर्ष पहले चीन ने ईसाइयों के पर्व क्रिसमस को धूमधाम से मनाने की अपने देश की परंपरा में यह कहकर बंदिश लगा दी थी कि इससे उसके परंपरागत त्यौहार प्रभावित हो रहे हैं जिनको सर्वोपरि रखना उसका सर्वोच्च राष्ट्रीय कर्तव्य है। दिक्कत यह है कि इस तर्क से भारतीय जनता पार्टी की देश के लिए नीति बिलकुल ठीक है पर चीन में भाषायी और सांस्कृतिक मामलों में वैसी व्यापक विविधता नहीं है जैसी भारत में है। खासतौर से मुसलमान चीन में वास्तव में अल्प संख्या में हैं जबकि भारत में मुसलमानों की तादाद काफी ज्यादा है। कई राज्यों में तो वे चुनावों में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। उन्हें हिन्दू करण को बढ़ावा दिये जाने से आपत्ति रहती थी इसलिए राजनैतिक दल ऐसे किसी प्रयास से बचते थे। यहां तक कि भाजपा को भी डर रहता था कि अगर अपने विरूद्ध मुसलमानों के एकतरफा ध्रुवीकरण की बहुत ज्यादा कोशिश उसने की तो उसे राजनीति में मार खानी पड़ेगी। अटल-आडवाणी का दौर साम्प्रदायिकता को मुद्दा बनाकर भाजपा को जिस राजनीतिक अस्पृश्यता में धकेलकर रखा गया था उससे उबारने में गुजरा जिसके बाद ही उसे दूसरी पार्टियों का समर्थन प्राप्त करना नसीब हुआ।

पर मोदी-योगी ने यह मिथक तोड़ दिया है कि बिना मुसलमानों के सहयोग के कोई पार्टी या गठबंधन इस देश में और खासतौर से उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने की उम्मीद पाल सकती है। उत्तर प्रदेश में तो योगी ने हिन्दूकरण के सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं फिर भी भाजपा का मुकाबला दूसरे दल नहीं कर पा रहे हैं। इस अनुभव ने योगी सरकार को छुट्टा कर दिया है। हिन्दू पर्व को भव्यता के साथ मनाने के लिए यह सरकार पूरा प्रशासन झोंक देती है यहां तक कि भारी भरकम राजकीय खर्च में भी कोताही नहीं बरतती। सो योगी सरकार पार्ट-2 में भी इस वर्ष बुढ़वा मंगल के दिन रौनक में कहीं कोई कमी नहीं होने दी गई।

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बजरंगबली के भक्तों ने सड़कों पर जगह-जगह उनका भण्डारा वितरित कराया जिसके लिए लम्बी कतारें लगी रही। हर शहर में ट्रैफिक डायवर्जन करना पड़ा। लोग इसमें परेशान हुए लेकिन भक्ति भावना के आगे यह सब कुछ मंजूर रहा।

वैसे हम इस मामले में कम्युनिस्टों और अन्य नास्तिकों से सहमत नहीं हैं। हमें लगता है कि समाज में नैतिक व्यवस्था और अनुशासन के निर्माण में धर्म भी रचनात्मक भूमिका अदा करता है। इस देश को जिसके चरित्र में हर दर्जे की गिरावट हो चुकी है नैतिक पुनरोत्थान का आंदोलन चलाने की बहुत जरूरत है। अतीत में इसीलिए हर राजा धार्मिकता को बढ़ावा देने का प्रयास करता था ताकि प्रजा के नैतिक स्तर को बढ़ाया जा सके। मौजूदा सरकार भी फिर से इस दिशा में प्रयास कर रही है। पर हर नीति के दो पहलू होते हैं। धार्मिकता के मामले में चूक होने पर इसके नकारात्मक असर की आशंका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसलिए जो हो रहा है उस पर पैनी निगाह बरतने का तकाजा है।

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हिन्दू देवताओं में हनुमान जी का विशिष्ट अवदान है। इसकी बारीकियों की जानकारी भक्तों को होना चाहिए। बजरंगबली के मंदिरों से जुड़े तौर तरीके आक्रांताओं का उचित तरीके से मुकाबले के लिए भारतीय समाज को तैयार करने के दृष्टिगत विकसित किये गये थे। इसलिए हनुमान मंदिर में अखाड़ा होना अनिवार्य था जहां महंत जी जो कि ब्रह्मचारी होते हैं पट्ठे तैयार करते थे। गांव या कस्बे के जमीदार और अन्य बड़े आदमी मंदिर के अखाड़ों में किशोर उम्र से ही दाखिल कर लिये जाने वाले बच्चो की दूध, मेवा आदि की खुराक के इंतजाम के लिए मंदिर से जमीन संबद्ध करने के साथ-साथ नियमित मौद्रिक योगदान भी करते थे।

इसके कारण नई पीढ़ी पहलवानी की ओर प्रवृत्त होकर नशेबाजी और यौन दुराचरण की छाया से बची रहती थी। चीन का उदाहरण एक बार फिर दे रहा हूं। वहां भी राष्ट्रवादिता के उफान के कारण गुलामी की सारी औपनिवेशिक निशानियों को कुचलकर अपने संस्कृति को हर क्षेत्र में वापस लाया गया। इसलिए उन्होंने शुरू से क्रिकेट के सम्मोहन को झटके रखा। इसकी बजाय जिम्नास्ट को बढ़ावा दिया। इससे जहां उसने हर ओलंपिक में ज्यादा से ज्यादा मेड़ल झटकने के दरवाजे अपने लिए खोले वहीं अफीमचियों देश कहे जाने वाले चीन में आने वाली नस्ल को इससे मुक्त करके उसको शारीरिक सौष्ठव की दृष्टि से मजबूत करने का मंत्र भी सिद्ध किया ।

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भारत में पिछली सरकारों की पश्चिमी संस्कृति के ग्लैमर को लेकर बहुत आसक्ति थी। इसलिए उनके द्वारा यहां परंपरागत खेलो की कीमत पर क्रिकेट को बढ़ावा दिया जाना लाजिमी था लेकिन आज तो हिन्दुत्व की सरकार है। इसके नेता भी क्रिकेट का दामन नहीं छोड़ पा रहे क्योंकि सरकार भले ही बदल गई हो पर अगर अरबों-खरबों का फायदा होता हो तो राष्ट्रीय अस्मिता इस सरकार के नेताओं के लिए कोई मायने नहीं रखती। भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड दुनिया का सबसे अमीर खेल संस्थान है जिससे देश के गृहमंत्री अमित शाह के सुपुत्र जय शाह शीर्ष स्तर पर जुड़ गये हैं। इस कारण क्रिकेट अभी भी खेलों के क्षेत्र में सर्वोपरि है और बजरंगबली के लिए भक्ति के दिखावे के बावजूद उनकी आराधना में जो उद्देश्य निहित है उसकी अनदेखी की जा रही है।

आज बजरंग बली के मंदिर शहर से दूर व्यापक क्षेत्र में नहीं बन रहे जहां निर्विघ्न और सुरक्षित अखाड़े संचालित किये जा सकें। इसकी बजाय सड़क के किनारे यातायात को अवरोधित करके बजरंगबली की मनमानी स्थापना की जा रही है और सरकार इस वैधता प्रदान कर रही है जिससे धर्म नैतिक पुनरोत्थान की बजाय अराजकता के प्रसार में मुड़ गया है। हम दावे के साथ कह सकते हैं कि बजरंगबली की साधना के तरीकों में इस भटकाव से वीर बजरंगी हम पर कृपा करने की बजाय कुपित हो रहे होंगे।

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अगर बजरंगबली के आराधना स्थल मान्य तरीकों से बढ़ाने की नीति पर अमल किया जाये तो भारतीय समाज को एक बहुत बड़ा सहारा मिल सकता है। अगर सरकार साधन संपन्न बजरंगी भक्तों को प्रेेरित करने का बीड़ा उठाने की ठान ले तो गांव-गांव में अखाड़ों से सुसज्जित हनुमान मंदिरों की श्रृखला खड़ी की जा सकती है। लोगों में न तो भक्ति भावना की कमी है न दान वीरता की बशर्ते नेतृत्व लाल बहादुर शास्त्री की तरह का हो जिनके आवाहन पर भारत पाकिस्तान युद्ध के समय महिलाओं ने अपने मंगल सूत्र तक सेना के लिए बनाये गये कोष में अर्पित कर दिये थे। बजरंगबली की भक्ति हुड़दंगबाजी की बजाय अनुशासन के संस्कारों का निर्माण करती है। जिम्मेदारों को इसका संज्ञान होना चाहिए।

हिन्दू धर्म में हर बजरंगबली ही नहीं हर मंदिर के निर्माण के कुछ नार्मस हैं। इसके तहत ऐसे स्थान पर मंदिर निर्मित किये जाते हैं जो कोलाहल से दूर हों। मंदिरों के परिसर में स्वच्छता, शांति और पवित्र रमणीकता के ऐसे परिवेश की व्यवस्था अनिवार्य है जहां लोगों में स्वतः वैराग्य जैसी भावना जन्मने लगे। वैराग्य अंतरात्मा को जाग्रत करता है जिसके बाद काम क्रोध लोभ और मोह व कपट जैसे मनोविकारों से वह काफी हद तक परे हो जाता है। मंदिर का वातावरण साधना के लिए प्रेरित करने वाला होना चाहिए ताकि सात्विक मानसिकता हर व्यक्ति के अंदर बलबती होने लगे और व्यक्ति की अंतरात्मा उसे किसी कीमत पर कोई पापाचरण न करने दे। लेकिन अगर धर्म से इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पा रही है तो कमी धर्म में नहीं उसके आयोजन कर्ताओं में है। धर्म को दुकानदारी बना लेने वाले लोग क्या मंदिरों के उक्त मानक के अनुरूप निर्माण की प्रक्रिया को नहीं भटका रहे।

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सनातन अवधारणा के मुताबिक अध्यात्म के तीन चरण हैं- पहला चरण है भक्ति योग का। मंदिर इसलिए बनाये जाते हैं ताकि लोगों को धर्म में रमाया जा सके यानी सुन्दर मूर्तियों के माध्यम से उनके मन में धर्म के लिए आकर्षण पैदा किया जा सके। इसके बाद जब मंदिर में साधना का माहौल होता है तो फिर दूसरा चरण शुरू हो जाता है ज्ञान योग का। अंतरात्मा को जाग्रत करके पाप पुण्य क्या है इसका विवेक ही है ज्ञान योग। पाप पुण्य, नीति अनीति के कई पहलू हैं ज्ञान योग की ओर अग्रसरता की स्थिति आने के बाद भक्त स्वतः उपनिषद व वैदिक दर्शन के अन्य ग्रन्थों के माध्यम से इस ज्ञान को और गहराई से अर्जित कर लेता है।

इसके बाद अध्यात्म का चरण लक्ष्य है कर्मयोग। भगवान श्रीकृष्ण को इसीलिए कर्मयोगी कहा गया क्योंकि उन्होंने अपने को नीति अनीति के बोध तक सीमित नहीं रखा बल्कि इसके बाद कर्म किया कि अनीति खत्म हो और जो लोग अनीति को बढ़ावा दे रहे हैं उनका अंत किया जाये। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का इसी अनुरूप राजनीतिक रूपांतरण की क्षमता भारतीय जनता पार्टी में होनी चाहिए वरना अगर आज के तरीके से वह काम करती रही तो बहुत जल्द ही उसके प्रति लोगों का मोह भंग हो जायेगा।

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उत्तर प्रदेश में आज लोग कह रहे हैं कि रिश्वत का रेट पहले से कई गुना ज्यादा हो गया है। सरकार चाहे तो क्या ऐसा ढ़र्रा चल सकता है पर उसे कोई दिलचस्पी नहीं है कि निरीह जनता का शोषण करने वाले रिश्वत खोर अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ अभियान के स्तर पर कार्रवाईयां शुरू करे और उनकी संपत्तियों को जब्त करने में जुट जाये। उसमें अपने जनप्रतिनिधियों को लोभ लालच से दूर रहकर सादगी के जीवन व्रत को भरने का कोई जज्बा नहीं है। यानी वह धर्म को भी बढ़ावा दे रही है और अनीति में भी कोई रूकावट नहीं डाल रही है। ऐसा लगता है कि यह सरकार भक्ति योग पर ठिठकी रह गई है जबकि उसे ज्ञान योग और इसके बाद कर्मयोग के लक्ष्य की ओर बढ़ने की इच्छा शक्ति दिखानी चाहिए। बुढ़वा मंगल पर्व पर बजरंगबली की पूर्ण साधना तभी संभव हो पायेगी जब योगी सरकार इस ओर कदम उठाने का संकल्प लेती दिखायी देगी

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