समाचार प्लस चैनल के एडिटर इन चीफ उमेश कुमार लगता है उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर भारी पड़ने लगे हैं. कमजोर, अज्ञानी और चापलूस सलाहकारों से घिरे त्रिवेंद्र रावत एक के बाद एक लड़ाई हार रहे हैं. उमेश कुमार स्टिंग प्रकरण में त्रिवेंद्र रावत पहले लचर कानूनी टीम के चलते कोर्ट से झटके पर झटके खाते रहे जिसके चलते अंतत: उमेश कुमार दो राज्यों की पुलिस और सरकारों को छका कर जेल से बाहर निकलने में कामयाब हो गए.
जेल से बाहर आने के बाद उमेश कुमार की बिछाई बिसात पर त्रिवेंद्र रावत धीरे धीरे फंसते चले जा रहे हैं. स्टिंग का प्रकरण अब उमेश कुमार बनाम त्रिवेंद्र रावत न होकर भाजपा बनाम कांग्रेस में तब्दील हो चुका है जो उमेश कुमार की बड़ी जीत है. कांग्रेस ने त्रिवेंद्र रावत को एक्सपोज करने के लिए उमेश कुमार द्वारा कराए गए स्टिंग को उत्तराखंड के हर जिले में दिखाने का ऐलान कर दिया है.
मुख्यमंत्री के करीबी लोगों का स्टिंग उमेश कुमार ने खुद दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस करके जारी किया था. इसी स्टिंग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने अभियान का ऐलान कर दिया है. यानि जनता को कांग्रेस यह बताने में जुट जाएगी कि सीएम त्रिवेंद्र रावत की भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति एक छलावा है क्योंकि भ्रष्टाचार में कोई और नहीं बल्कि खुद सीएम के करीबी, परिजन व इर्द-गिर्द के लोग शामिल हैं. अगर ऐसा हो गया तो सीएम त्रिवेंद्र रावत सियासी और निजी छवि को बहुत तगड़ी चोट पहुंचेगी. पहले चरण में कांग्रेस मीडिया के जरिए अपनी बात कहने के मामले में लीड लिए दिख रही है. इससे उमेश को टारगेट करने की सरकार की नीति सिर्फ असफल ही नहीं हो गई बल्कि सरकार खुद सवालों से घिर कर बेहद बचाव की मुद्रा में आ गई हैं. फ्रंटफुट से डिफेंसिव खेलने की यह कहानी ही त्रिवेंद्र रावत सरकार के प्रबंधन की विफलता की बानगी है.
फिलहाल देहरादून के अखबारों की कुछ हेडलाइंस को देखें. पूरा मामला कैसे सियासी हो गया है और इस तरह त्रिवेंद्र रावत से भिड़ने और उन्हें एक्सपोज करने का काम अब खुद कांग्रेस ने किस तरह अपने हाथ में ले लिया है, ये इन अखबारों को देखने-पढ़ने से पता चल रहा है. इसे उमेश कुमार की रणनीतिक तौर पर बड़ी जीत माना जा रहा है. उमेश कुमार स्टिंग कांड को विधानसभा में उठवाने और चर्चा कराने में सफलता रहे. अब पूरे स्टिंग प्रकरण को लेकर कांग्रेस ने जिले-जिले जनांदोलन और स्टिंग प्रसारण का ऐलान कर दिया है. यह बता रहा कि सरकार के भीतर कोई भी ऐसा संकटमोचक और रणनीतिकार नहीं जो त्रिवेंद्र रावत को किसी भी किस्म की राहत दिला सकने में सक्षम हो! सवाल है कि क्या सत्ता में होते हुए भी त्रिवेंद्र रावत पार्टी से लेकर सरकार में अलग-थलग पड़ चुके हैं? दिख तो कुछ ऐसा ही रहा है. यह स्थिति त्रिवेंद्र रावत की नेतृत्व क्षमता के दिनोंदिन छीजते जाने की कहानी बयान करने के लिए पर्याप्त है. फिलहाल तो उमेश कुमार जबरदस्त तरीके से लीड लेने में कामयाब दिख रहे हैं.