रामा शंकर सिंह-
कौन क्या खाता पीता है यह हर किसी की निजी पसंद होती है और उस पर आपत्ति नहीं की जानी चाहिये ! आलोचना भी नहीं।
बेशक मैं अब मद्यपान से दूर हूँ पर मद्यरस के बुद्धिजीवी शौक़ीनों की मर्यादित सद्संगत से परहेज़ नहीं करता। बेवडों और घनघोर शराबियों को बर्दाश्त करना भी संभव नहीं चाहे वे स्वयं को वेदव्यास क्यों न समझते हों।
अब यह चित्र उत्तराखंड के नवनियुक्त मुख्यमंत्री का है तो सोशल मीडिया पर घूमेगा ही , और भी आयेंगें । कुछ वीडियो भी आ चुके हैं जिसमें सीएम का भाषण है कि ‘ मैंनें तो चोर को भी नुक़सान नहीं पहुँचाया , करता रहे चोरी ‘।
सार्वजनिक जीवन में अब यदि तीसरा व्यक्ति आपके साथ निजी क्षणों में है तो समझ लीजिये कि सब कुछ बाहर आना ही है। तो ईमानदारी से कहिये मान लीजिये कि हॉं सोमरस पान मेरा सांयकालीन शौक़ है आदि आदि ।
किसी भी व्यक्ति को इन बातों पर जज मत करिये उसके कामों निर्णयों व कामों के परिणामों पर चर्चा ज़रूरी है। हॉं यदि निजी शौक़ या पसंद अति की सीमा तोड अमर्यादित हो जायें और समाजिक हित के विपरीत संदेश जाने लगे तो विरोध , निंदा जरूरी हो जाती है।
अब नये सीएम को ६ महीना भी नहीं मिलेगा , नौकरशाही काम ही नहीं करने देगी क्योंकि नये चुनाव का इंतज़ार करेगी । ये बेचारे अपनी ही पार्टी के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के किये या ना किये का परिणाम भोगेंगें।
अपनी दंभी मनमर्ज़ी से या निजी पसंद नापसंद से मुख्यमंत्रियों को हटा देना कांग्रेस में होता था चाहे एक पूरा राज्य ही क्यों न गँवाना पड़ जाये , अब यह रोग भाजपा में आ चुका है, चाल चरित्र चेहरा पहले एक जैसा हो रहा है फिर पुरानी निंदित राजनीतिक संस्कृति से सौ कदम आगे भी चलेंगें। खतरा यह है कि भविष्य में आने वाले दल , दलों , गठबंधनों को आज़माया हुआ एक बेहद बुरा मॉडल मिलेगा जिससे आगे निकलने की उनकी इच्छा होना स्वाभाविक ही होगा।
सार्वजनिक जीवन और राजनीतिक मूल्यों का भयावह अवमूल्यन ऐसे ही होता है और कुसंस्कार ऐसे ही पीढ़ी दर पीढ़ी स्थापित होते हैं। जो आज अंधसमर्थन में हैं वे सिर पकड़ कर जब तक अपनी गलती स्वीकार करेंगे तब बहुत देर हो चुकेगी।