-श्वेता सिंह-
अच्छी जिंदगी के लिए अच्छा करियर जरूरी है। अच्छे करियर के लिए अच्छी पढ़ाई जरूरी है। यही वजह है कि आईआईटी, मेडिकल और सरकारी नौकरियों की तैयारी के नाम पर कोचिंग संस्थानों का खेल चल रहा है। हर मां-बाप चाहता है कि उसका बच्चा बढ़िया से बढ़िया स्कूल-कॉलेज से पढ़कर निकले ताकि मनचाहा करियर का चयन करने में उसे आसानी हो। मगर नहीं, बात इतनी सी नहीं है। चुनिंदा स्कूलों को छोड़ दें तो हम सब जानते हैं कि अधिकतर स्कूलों में कितनी पढ़ाई होती है। बगैर ट्यूशन के बच्चों का अच्छे नंबरों से पास होना जैसे नामूमकिन सा है। प्रतियोगी परीक्षाओं में अव्वल आना है तो भइया कोचिंग संस्थानों का सहारा लेना ही होगा, तभी नइया पार लगेगी। वरना सालों-साल आप तैयारी करते रहिए। सफलता आपके कदम नहीं चूम सकती। जी हां, शिक्षा का बाजारीकरण कुछ ऐसा ही कर दिया गया है।
देश में निजी कोचिंग सेक्टर का कारोबार तेजी से फैल रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ बड़े शहरों और बड़े कॉनवेन्ट स्कूलों के बच्चे ही कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं। गांव में सरकारी स्कूलों के बच्चे भी ट्यूशन पढ़ने को मजबूर हैं। अभिभावकों को स्कूल की शिक्षा पर भरोसा ही नहीं रह गया है। ऐसे में बच्चों को टॉपर बनाने के लिए उन्हें कोचिंग का सहारा लेना सही लगता है।
हाल ही में नीट परीक्षा का रिजल्ट प्रकाशित हुआ। शोएब आफताब ने इस परीक्षा में टॉप ही नहीं किया 720 में से पूरे 720 अंक हासिल करके नया रिकॉर्ड बनाया। कई संस्थानों ने उन्हें पोस्टर बॉय बनाकर उनकी इस सफलता को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। नीट का रिजल्ट निकलने के बाद ही तमाम नामी गिरामी कोचिंग इंस्टीच्यूट्स ने दावा करना शुरू कर दिया कि शोएब ने उनके यहां से पढ़ाई की है। अखबारों में ही नहीं सोशल मीडिया और यू ट्यूब पर भी तेजी के साथ यह प्रचारित किया जाने लगा कि शोएब की इस सफलता का श्रेय फलाने कोचिंग संस्थान को जाता है। एक दो नहीं पांच-छह कोचिंग संस्थान दावा कर रहे हैं कि शोएब उनके छात्र हैं। ऐसे में कौन सा कोचिंग संस्थान सही है इसका फैसला कैसे लिया जाये।
अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य की कामना कर रहे अभिभावक बिना कुछ जांचे-परखे इन कोचिंग संस्थानों में अपने बच्चों का दाखिला कराने के लिए चूहों की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर इन दिनों नीट टॉपर शोएब आफताब का मीम्स वायरल हो रहा है। शोएब के पिता बिजनेसमैन हैं। उनके लिए नामी-गिरामी कोचिंग संस्थान में दाखिला लेना मुश्किल नहीं था। मगर हमारे देश में ऐसे अभिभावकों की कमी नहीं जो स्कूल-कालेज का हजारों और लाखों का फीस भरने में समर्थ नहीं हैं। उनके लिए ब्रांडेड कोचिंग संस्थानों में अपने बच्चों का दाखिला कराना दिवा स्वप्न जैसा है। ऐसे में कोचिंग संस्थानों के गोरखधंधे में उलझने के बजाय अभिभावकों का सतर्क रहना बहुत जरूरी है।
कोचिंग संस्थान अगर छात्र को टॉपर बना सकते फिर सभी को अव्वल आना चाहिए। मगर यह मुमकीन नहीं हम सब जानते हैं। कोचिंग संस्थान किसी छात्र को टॉपर नहीं बना सकता जब तक खुद बच्चे में पढ़ने की ललक न हो। टॉप करने के लिए छात्र को खुद भी बहुत अधिक सेल्फ स्टडी करने की जरूरत होती है जो उसे सफलता दिलाती है। ऐसे कोचिंग संस्थानों की कमी नहीं जहां शिक्षक बच्चों को बस परीक्षा में पास करने के शार्टकट मेथड बताते हैं। सही मेथड पता नहीं होने की वजह से अक्सर बच्चे मुख्य परीक्षा में अच्छे नंबर लाने में कामयाब नहीं होते हैं। ऐसे भी कोचिंग संस्थान हैं जिनके कर्ता धर्ता को पता ही नहीं होता कि कौन क्या पढ़ा रहा है। वजह ये कि वे किसी कक्षा की मॉनीटरिंग ही नहीं करते कि कौन किस शैली में पढ़ा रहा है।
देश भर में नामी गिरामी इंस्टीच्यूट और यूनीवर्सिटी में दाखिले के लिए कोचिंग सेंटरों में पढ़ रहे सैकड़ों छात्र असफल होते हैं। उच्च शिक्षा में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच आत्महत्या के बढ़ते आंकड़ों पर भी सवाल उठने लगे हैं। जिस अनुपात में कोचिंग की तादाद बढ़ी है, उस स्तर तक सुविधाओं का विस्तार नहीं है। हर शहर में कोचिंग कारोबार अपने उफान पर है। आम तौर पर इंटर के छात्र दसवीं के बाद ही इन कोचिंग सेंटर में दाखिला लेते हैं। अभिभावकों और छात्रों को भी लगता है कि बगैर कोचिंग के आईआईटी, आईटी, मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में सफल नहीं होंगे। इस वजह से वे कोचिंग संस्थानों में दाखिला लेते हैं। उनकी इस मजबूरी से कोचिंग का गोरखधंधा फलफूल रहा है।
देश के विभिन्न कोनों में कई इलाके कोचिंग के ठिकानों के रूप में उभर रहे हैं। इनमें राजस्थान के कोटा, उत्तर प्रदेश के कानपुर, बिहार के पटना, बंगाल के कोलकाता, मध्यप्रदेश के इंदौर के नाम प्रमुखता से आते हैं। हर साल छह लाख से भी ज्यादा बच्चे कोटा जाते हैं। आईआईटी और अन्य प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग का मक्का समझा जाता है। जो बच्चे दूसरे शहरों में असफल होते हैं आखिर में वो भी कोटा की राह चल देते हैं। सीमीत सीट होने की वजह से हर छात्र का आईआईटी में दाखिले का सपना पूरा भी नहीं होता है। सपने को पूरा करने की चाह में बच्चों की जिंदगी में इन कोचिंग सेंटरों की अहमियत कई गुना बढ़ गयी है।
कोचिंग का कारोबार करोड़ों तक पहुंच गया है। आईआईटी और मेडिकल के अलावा सरकारी नौकरियों की कोचिंग भी जोरों पर चल रही है। हाई प्रोफाइल कोर्सेज में दाखिला कराने के लिए कोचिंग में दाखिला लेने का ट्रेंड सा बन गया है। यही वजह है कि आजकल स्कूलों ने अपने कैंपस में ही ऐसे कोचिंग संस्थानों के साथ मिल कर बच्चों को इंजीनियरिंग या मेडिकल की कोचिंग देनी शुरू कर दी है। कुछ समय पहले तक केवल कमजोर बच्चे ही कोचिंग या ट्यूशन का सहारा लिया करते थे। मगर कंपीटिशन बढ़ने के साथ आज के जमाने में हर बच्चा इस चूहे की दौड़ में हिस्सा लेने को मजबूर है। टॉपर बनने की चाह में कोचिंग ही बेहतर विकल्प नजर आता है।
इसमें कोई दो राय नहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी जालसाजों की पकड़ बहुत मजबूत है जो शिक्षा व्यवस्था की नींव को लगातार खोखला करते जा रहे हैं। आप चाहे जिधर नजर घूमा लीजिये चारों ओर आपको कोचिंग संस्थानों के विशाल होर्डिंग्स से बाजार पटा नजर आता है। जिंदगी की भागदौड़ में उलझे अभिभावकों के लिए यह पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है कि उनके बच्चों के लिए सही संस्थान कौन सा है। उनकी इस अनभिज्ञता का फायदा उठाने के लिए बाजार में सैंकड़ों की तादाद में कनसल्टेंसी प्रदान करने वाली एजेंसियां सक्रिय हैं। बच्चों का दाखिला देश के प्रतिष्ठित कालेजों और यूनिवर्सिटी में कराने के नाम पर लाखों रुपये का चूना लगा जाती हैं। अभिभावक बेचारे खून पसीने की कमाई से हाथ धोते हैं और बच्चों का सपना टूटता है सो अलग। ऐसे में अभिभावकों के लिए जरूरी है कि वो बच्चों का दाखिला कराने से पहले सारी जानकारियां इक्ट्ठा कर लें।
कोलकाता की पत्रकार श्वेता सिंह का विश्लेषण.