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उत्तर प्रदेश

कम्युनिस्ट फ्रंट के मनीष शर्मा के पीछे क्यों पड़ी हुई यूपी एटीएस?

कामता प्रसाद-

वाराणसीः पूँजीपतियों की प्रबंध समिति के रूप में काम कर रही केंद्र और सूबे की सरकार जनाक्रोश पर पानी के छींटे मारने वाले यानि कि व्यवस्था परिवर्तन की किसी भी वास्तविक लड़ाई से दूर जन-संगठनों-व्यक्तियों तक को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। इस बात को साफ-साफ महसूस किया जा सकता है कि मुनाफे की गिरती दर के कारण जो चौतरफा सामाजिक संकट उत्पन्न हो गया है और जगह-जगह विरोध के जो स्वतःस्फूर्त स्वर उठ रहे हैं, उनको बर्दाश्त करने तक की ताब हुकूमत हो चुकी है। पतनशील-मरणासन्न पूँजीवादी राज्य की मनुष्य-विरोधी सरकारी मशीनरी अदना से अदना सामाजिक कार्यकर्ताओं तक को धमकाने में जुट गई है।

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कम्युनिस्ट फ्रंट के मनीष शर्मा पर हाल ही में हुई एटीएस की कार्रवाई को इसी नजर से देखा जा रहा है। बकौल मनीष शर्मा एटीएस के अफसर चाह रहे थे कि वह नागरिक समाज में अपनी पहलकदमी बंद कर दें और अपने-अपने कारणों से स्वतःस्फूर्त ढंग से यहाँ-वहाँ जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनके बीच जाकर उन्हें गोलबंद करने का काम बंद कर दें। उनके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार राजघाट पर एक बस्ती को उजाड़ा जा रहा है। उस जगह को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना है। इसी तरह से सर्व सेवा संघ और गांधी विद्या संस्थान दोनों ही जगहों की जमीन पर सरकार की नजर है और उसे किसी न किसी तरह से निजी हाथों में देने की कवायद चल रही है। नट-मुसहर और सफाई कर्मियों की जो बस्तियाँ हैं वे सरकारी जमीनों पर आबाद हैं। ऐसी अरक्षित आबादी के पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना उन्हें उनकी जगह से उजाड़ना और फिर उस जमीन को निजी हाथों में देने का प्रयास करना सरकार के एजेंडे में है।

मनीष शर्मा के संदर्भ में यह बताना जरूरी है कि भाकपा-माले के दिनों से ही वह मुस्लिम आबादी के बीच धँसे हुए हैं और सांप्रदायिक सत्यानाशियों के राज में उनके नागरिक-लोकतांत्रिक अधिकारों पर जो हमले हो रहे हैं, उसके खिलाफ वे सक्रिय रहे हैं।

जाने-माने इतिहासकार और वरिष्ठ गाँधीवादी चिंतक डॉ. मोहम्मद आरिफ कहते हैं कि रोजी-रोटी, स्वास्थ्य-चिकित्सा और आवास की सामाजिक गारंटी सुनिश्चित करने में सरकार चौतरफा विफल रही है तो जनता अपनी मूलभूत समस्याओं को लेकर आवाज नहीं उठा सके, इसलिए पहले तो उसे हिंदू-मुस्लिम में बांटने की कोशिश की गई और इसके लिए मंदिर-मस्जिद के नाम पर सामाजिक आंदोलन चलाया गया और अब मजहब के नाम पर खाई को गहरा और चौड़ा करने के लिए मुस्लिम युवाओं को निशाना बनाया जा रहा है।
डॉ. आरिफ ने कहा कि यह देश गाँधी का है और हर ज्यादती के खिलाफ हम अहिंसात्मक आंदोलन छेड़े जाने के पक्षधर हैं। मनीष शर्मा पर एटीएस कार्रवाई की भर्त्सना करते हुए उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक-संविधानसम्मत ढंग से जनता के पक्ष में खड़ा होना कोई गुनाह नहीं है और जनता का पक्ष लेने से किसी को भी रोका नहीं जाना चाहिए, जैसा कि यह सरकार और उसकी मशीनरी कर रही है।

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मेहनतकश मुक्ति मोर्चा के रितेश विद्यार्थी का ख्याल है कि सत्तातंत्र उनको फर्जी मुठभेड़ के नाम पर या ऐसे ही किन्हीं अन्य तरीकों से ठिकाने लगा देता है जो उसे अपने खिलाफ वास्तविक खतरा मालूम पड़ते हैं। बाकी के मामलों में व्यापक जनता में संविधान-लोकतंत्र और कानून पर भरोसा बनाए रखने के लिए राजसत्ता के चौथे स्तंभ मीडिया के जरिए कोर्ट-कचहरी और दूसरी न्यायिक सरगर्मियों को अंजाम दिया जाता है। मनीष शर्मा पर एटीएस कार्रवाई की तीखी भर्त्सना करते हुए उन्होंने कहा कि बनारस के नागरिक समाज में यह इकलौता शख्स है जो सशक्त तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराए हुए है और प्रशासन की आँखों की किरकिरी बना हुआ है। रितेश विद्यार्थी का मानना है कि खुफिया विभाग समेत समस्त नौकरशाही पूँजीपति वर्ग की चेरी है और अपने हुक्मरानों के इशारे पर वह उन्हीं के हितों की रखवाली करने में सन्नद्ध है, उसके लिए लोकतंत्र-कानून के राज का वास्तव में कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर हमारे समाज में राजनीतिक चेतना होती और अपने नागरिक होने का एहसास अगर हमारे लोगों में होता तो यह सवाल तो बड़े पैमाने पर पूछा ही जाता कि मनीष शर्मा को लेकर एटीएस की आपत्तियाँ क्या हैं, उन्हें सार्वजनिक किया जाए। आखिर उन्हें क्यों सार्वजनिक स्पेस में सक्रिय रहने से रोकने के लिए प्रकारांतर से धमकाया जा रहा है?

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस में पूँजी के पहरेदारों की अग्र-सक्रियता का आलम यह है कि जनांदोलन के नाम पर यहाँ शास्त्री घाट पर जो जुटान होती रही है उसमें आधे से अधिक तो वित्तीय पूँजी के रहमोकरम पर पलने वाले एनजीओ-जगत के लाभार्थी होते आए हैं। लेकिन सांप्रदायिक सत्यानाशियों को चूँकि सिर्फ और सिर्फ उनकी आईटी सेल द्वारा तैयार किए गए जांबीज ही रास आते हैं, इसलिए पूँजीवादी सिस्टम की रखवाली करने की दिशा में सन्नद्ध एनजीओ जगत पर भी भाजपा राज में पर्याप्त नकेल कसी जा चुकी है।
चौतरफा व्याप्त पस्तहिम्मती और गहन अंधकार में जुगनू की भाँति टिमटिमाने वाले भगतसिंह स्टूडेंट मोर्चा की अध्यक्ष आकांक्षा आजाद का कहना है कि मनीष शर्मा की गिरफ्तारी दिखा रही है कि मोदी सरकार जनता के प्रतिरोध और उसका नेतृत्व करने वाले लोगों से कितनी डरी हुई है। ऐसे देखें तो मनीष शर्मा बहुत लंबे समय से बनारस की राजनीति में सक्रिय रहें है चाहे CAA NRC का आंदोलन हो, बुनकरों के हक अधिकार की बात हो या जातिगत जनगणना, लेकिन अभी उनकी सक्रियता बनारस में गरीब बस्तियों को उजाड़े जाने के खिलाफ के आंदोलनों में दिख रही है जिससे डर कर सरकार ATS भेज कर लोगों के मन में डर बैठा रही है। अपनी गिरफ्तारी से ठीक 3-4 दिन पहले मनीष शर्मा ने बस्तीवासियों के साथ प्रशासन के खिलाफ मार्च किया था। मोदी सरकार विकास के नाम पर लोगों को उनके घरों- बस्तियों से हटा रही। प्रभावित होने वाले लोगों के गोलबंदी का काम मनीष शर्मा देख रहे थे। ताकि आंदोलन विशाल रूप न ले और बस्ती के लोग सहित पूरे शहर का प्रगतिशील तबका डर जाए इसलिए यह गिरफ्तारी की गई।

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निर्माण मज़दूरों को गोलियाने में लगे कॉमरेड मुन्ना मिस्त्री का कहना है कि स्पष्ट वर्गीय पहचान के साथ जब और जिस दिन मज़दूर आंलोदन वेगवाही ढंग से आगे बढ़ेगा, उसी दिन व्यापक जनता के समस्त उत्पीड़ित हिस्से अपनी-अपनी जनवादी और नागरिक माँगों के साथ उससे जुड़ते जाएंगे और तब सरकारी मशीनरी के लिए बड़े स्तर पर दमनचक्र चलाना अपरिहार्य हो जाएगा। व्यर्थ के आशावाद से बचने की सीख देते हुए उन्होंने कहा कि जस्टिस मुल्ला जिसे गुंडों की संगठित फौज कह चुके हैं, वह पुलिस आए दिन बेहिसाब ज्यादतियाँ करती रहती है बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि ज्यादती ही नियम है, विधिसम्मत व्यवहार तो अपवाद है और जब उसे लेकर नागरिक समाज में असंपृक्तता है तो एक मनीष शर्मा या उनकी तरह के चंद व्यक्तियों के साथ हो रही, होने वाली ज्यादती के भी ज्यादा मायने नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि जैसा कि भगतसिंह कह गए हैं कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है तो सुसंगत वैचारिक समझ के साथ इस मनुष्य-विरोधी पूँजीवादी सत्ता को रिप्लेस करने को केंद्र में रखकर जब तक आंदोलन नहीं खड़ा किया जाता और सरकार उस पर दमनात्मक कार्रवाई नहीं करती तब तक खुफिया एजेंसियों की कोई भी कार्रवाई सुर्खियाँ बनने से रही।

इतिहास को अग्रगति देने वाले मज़दूर आंदोलन को भी हमदर्द बुद्धिजीवियों की आवश्यकता है, यहाँ इस संदर्भ में इतिहास खुद को दोहरा रहा है और एकदम सकारात्मक अर्थों में और धमाकेदार ढंग से। जहाँ मुख्यधारा के मीडियाकर्मियों की चेतना विघटित हो चुकी है, वैकल्पिक मीडिया से जुड़े लोग बुद्धि को माल बनाकर नाम और नामा कमाने में मशगूल हैं वहीं वकीलों की भूमिका आज भी अहम बनी हुई है। तहसील और जिले के स्तर पर सक्रिय जनपक्षधर वकील मज़दूर आंदोलन की हिमायत और मदद करते हुए शानदार भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं।

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बनारस कचहरी में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट राजेश कुमार यादव का कहना है कि चूँकि समाज में व्यापक स्तर पर कोई जनांदोलन नहीं है तो आम जनता अपने नागरिक और लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर उतना सजग नहीं है। पूरे समाज में सावयविक एकता है और एक के खिलाफ सरकारी ज्यादती दूसरे को भी प्रकारांतर से प्रभावित करती है लेकिन अभी जनता से इस मनःस्थिति में है कि मनीष शर्मा को का पड़ी है, चैन से अपनी जिंदगी जिएं, काहे दूसरे के फटे में टाँग अड़ाते हैं। उन्होंने कहा कि कोई आदमी बनारस के नागरिक समाज को सेंसटाइज करने, उसे संवेदनशील बनाने के लिए प्रयासरत है, अन्याय और नाइंसाफी के विरुद्ध आवाजा उठा रहा है, इसकी सराहना करने वाले लोग अभी उतने नहीं हैं, जितने कि होने चाहिए। उन्होंने कहा कि मौजूदा संवैधानिक ढाँचे के भीतर नागरिकों के मिले अधिकारों की जमीन पर खड़े होकर मनीष शर्मा को हर मुमकिन कानूनी मदद प्रदान करने का वह प्रयास करेंगे।

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