समरेंद्र सिंह-
ये बात 2001 की है। बीजेपी सत्ता में थी। कांग्रेस विपक्ष में। कांग्रेस को विपक्ष में बैठे कुछ ही साल हुए थे। 1996 तक पंडित नरसिंह हाव की सरकार थी और मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। दोनों ने मिल कर देश की गाड़ी उदारीकरण के रास्ते पर सरपट दौड़ा दी। मगर सत्ता से बाहर होने पर कांग्रेसी नेताओं की छटपटाहट बढ़ने लगी। 1998 में सीताराम केसरी ने अपनी टोपी सोनिया गांधी के पैरों पर रख दी। पार्टी की कमान उनके हाथ में चली गई। 2000-01 में कांग्रेस ने अपने सुपारी किलर तरुण तेजपाल को याद किया। बंदे ने ऐसा फंदा डाला की बीजेपी अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण लपेटे में आ गये। रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस के घर तक आंच पहुंच गई। इसे हम तहलका के स्टिंग “ऑपरेशन वेस्ट लैंड” के नाम से जानते हैं। बंगारु जी तो निपट गए, जॉर्ज किसी तरह बचे।
उसके बाद हर चुनाव से पहले एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आता है। इन दिनों अनिरुद्ध बहल कांग्रेस के चोटी के सुपारी किलर हैं। जब कुछ नहीं मिलता तो अपना बाजार टाइट रखने के लिए वो मीडिया का स्टिंग कर देते हैं। पिछली से पिछली बार उन्होंने जिन मीडिया घरानों को छोड़ दिया था उनमें एनडीटीवी, आउटलुट और ओपन पत्रिका शामिल थे। सब कांग्रेस के वफादार। लेकिन पिछली दफा उन्होंने ओपन पत्रिका को भी लपेट लिया।
ओपन मैगजीन RPG ग्रुप की पत्रिका थी। RPG मतलब राम प्रसाद गोयनका। RPG के देहांत के बाद ओपन के मालिक अब कांग्रेस के वैसे वफादार नहीं रहे, जैसा पहले थे। RPG बहुत करामाती व्यक्तित्व थे। संजीव गोयनका और हर्ष गोयनका उनके दो रतन हैं। लेकिन इनमें उतना दम नहीं जितना RPG में था। RPG के नाम में ही LMG टाइप फीलिंग आती है। दन दना दन दन…
RPG ने कारोबार के साथ सियासत भी जमकर की। कांग्रेसियों की सोनिया मइया के आशीर्वाद से राज्य सभा पहुंचे। नेहरु-गांधी परिवार के तीनों ट्रस्ट में रहे। और नीरा राडिया प्रकरण के वक्त खुल कर बैटिंग की। फ्रंट फुट पर बैटिंग की। चौके-छक्के मारे। बीच का पेज काला कर दिया। उन दिनों कुछ क्रांतिकारी किस्म के पत्रकार उनके टॉमी बने हुए थे। पत्रकारों की नियति यही है। वो किसी का बिल्ला या फिर किसी का टॉमी बनेंगे। मियाऊं मियाऊं या भौं-भौं करेंगे। इनमें शेखर गुप्ता, प्रभु चावला और अर्णब गोस्वामी जैसे कुछ चालू होते हैं – वो दूर से दांत दिखा कर काम चलाते हैं। फिर सैनिक फॉर्म या किसी समंदर किनारे रहते हैं। उनके पास असली वाले टॉमी होते हैं। छह-छह-सात-सात। बिना बुलाए पहुंचिएगा तो वो लपक के काट लेंगे। जाइएगा भी मत। बहुत खतरनाक होते हैं।
नीरा राडिया कांड में टैपिंग सरकार ने कराई। जांच एजेंसियों के जरिए कराई। सबकुछ टेप पर था। जब विवाद बढ़ा तो सलेक्टिव तरीके से लीक कराए गए। लीक भी सरकार ने कराए। उन्हें उठाया – आउटलुक और ओपन ने। इन दोनों पर सरकार का हाथ था। आउटलुक वाले विनोद मेहता स्वघोषित हॉफ कांग्रेसी थे और ओपन वाले RPG फुल कांग्रेसी। रणनीति के तहत विवाद को दिशा दी गई। जांच का नतीजा क्या रहा? कुछ नहीं। सन्नाटा। और वैसे नतीजा क्या रहा? दो-तीन को छोड़ कर बाकी सारी टेलिकॉम कंपनियां मर गईं। अनगिनत लोग बेरोजगार हो गए। दो-चार को मैं जानता हूं – वो अब भी संघर्ष कर रहे हैं।
कांग्रेस के एक चीफ मिनिस्टर थे। अजित जोगी। अच्छे भले इंसान थे। आईएएस अफसर थे। कांग्रेस ने ललचा कर बुला लिया। इस्तीफा दे कर राजनीति में चले गए। सोनिया मइया ने महेंद्र कर्मा की दावेदारी को नजरअंदाज करके इन्हें छत्तीसगढ़ सौंप दिया। सारी लड़ाई कर्मा की और सारी मलाई जोगी की। जोगी जी भी स्टिंग में उस्ताद थे। बीजेपी के सीएम पद के दावेदार दिलीप सिंह जुदैव का ही स्टिंग करा दिये। “पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा की कसम खुदा से कम भी नहीं”।
इसीलिए “मकबूल” में “अब्बाजी” बोले थे कि “गिलौरियां खाया करो गुलफाम जबान काबू में रहती है।” ये ससुरा नेता लोग सुनता ही नहीं। बोलने की बीमारी लग जाती है। पकर-पकर बोलेगा। और कई बार ये बीमारी खा जाती है। दिलीप सिंह जुदैव को जोगी जी खा गए। जोगी जी बीमारी नहीं थे, वो छत्तीसगढ़ के चीफ मीनिस्टर थे। सोनिया जी द्वारा चुने गए सीएम। बहुत पॉवरफुल थे। गृहमंत्री को भी लाइन में लगा देते थे। अपने नहीं, प्रदेश के। बाद में उन्होंने और उनके बेटे ने और भी कई स्टिंग कराए। स्टिंग कराते-कराते एक दिन चले गए। कहां चले गए? – ये बाबा जी बताएंगे।
कांग्रेसी फोन टैपिंग में माहिर रहे हैं। नक्सलियों से बातचीत के लिए चेरुकरी आजाद प्रधानमंत्री की चिट्ठी लेकर निकले। बहुत से लोग बोलते हैं कि उनको सर्विलांस की मदद से बीच रास्ते से उठा कर एनकाउंटर करा दिया गया। चिदंबरम तब गृह मंत्री थे। इसमें एक पत्रकार हेमचंद्र पांडे भी मारे गए। दस-बीस पत्रकारों ने काफी हल्ला मचाया। हुआ कुछ नहीं। धीमे-धीमे सब चुप हो गए।
कुछ समय पहले सर्विलांस कैपिटलिज्म नाम की एक किताब आई है (अभी पूरी नहीं पढ़ी है मैंने)। उसमें बताया गया है कि हम सब किस दुनिया में दाखिल हो चुके हैं। एक भरा-पूरा उद्योग चल रहा है। स्मार्ट टीवी, स्मार्ट फोन, स्मार्ट होम, स्मार्ट कार – सब स्मार्ट हैं और हम गदहे। हम जरा भी सुरक्षित नहीं हैं। हम जो सिस्टम खरीद रहे हैं ये मुमकिन है कि उसमें बग हो। हम जब किसी सिस्टम को एक्टिवेट करते हैं तो ये संभव है कि वो बग भी एक्टिवेट हो जाए। हमारी और आपकी क्षमता सीमित है। लेकिन जिस सिस्टम के जरिए हम काम कर रहे हैं या एक दूसरे से जुड़े हैं – उसकी क्षमता असीमित है। हम सोते हैं मगर हमारे सिस्टम का कैमरा काम करता है। हम नींद में होते हैं तो कुछ नहीं सुनते और वो सब सुनता है। उसे हमारी धड़कन में होने वाले उतार-चढ़ाव का भी अंदाजा है। ये जादुई दुनिया है। इसलिए सावधान रहिए। साथ ही थोड़ा बेपरवाह भी। सावधान रहना और बेपरवाह होना – दोनों जीने के लिए जरूरी हैं। कितना लोड लीजिएगा? हर चीज की कोई लिमिट होती है!
कांग्रेसी नेता और उसके खेमे के पत्रकार जासूसी उपन्यास खूब पढ़ते हैं और फिल्में भी खूब देखते हैं। इन्हें लगता है कि कोई इनकी बात सुन रहा है। इनका डेटा चुरा रहा है।
कांग्रेस के कार्यकाल में हमेशा ये काम हुआ। नीरा राडिया टेप कांड इसका सबसे बड़ा सुबूत है। कांग्रेस ने अपने ही मंत्री और सहयोगी निपटा दिए। 10 जनपथ को बचाने के लिए अपने ही कुछ पत्रकारों का भविष्य तबाह कर दिया।
कांग्रेस वाले हर बार ऐसा करते हैं। सत्ता में रहते हैं तो अपनों के खिलाफ साजिश रचते हैं और बाहर होते हैं तो हल्ला मचाते हैं। चंद्रशेखर की सरकार इनके फर्जी जासूसी कांड की भेंट चढ़ गई थी।
इतना डर किस लिए? और अगर डर है तो साइबर स्पेस का सलीके से इस्तेमाल करो। मोबाइल फोन को साफ सुथरा रखो। अपनी तस्वीरें ढंग की रखो। जहां तक हो सके सूत्रों से मिल कर बात करो।
पेगासस न हुआ जिन्न हो गया! जो रहे रहे बाहर निकल आता है! साइबर युग में इन्हें बाबा आदम के जमाने की सुरक्षा चाहिए। इस असुरक्षित दौर में जो अपना आगा-पीछा ढंक के चल रहा है, उसकी निजता भी सुरक्षित नहीं है। लेकिन इन्हें गारंटी चाहिए। सपना देखने की भी कोई सीमा होती है।