राघवेंद्र प्रताप सिंह-
लखनऊ के हजरतगंज में स्थित यूपी कोऑपरेटिव बैंक (UP Co-operative Bank) में शनिवार सुबह आग लग गई। कॉआपरेटिव वैसे भी अपने खेल के लिए ही जाना जाता है।
आग बैंक के आठवें तल पर यानी कंप्यूटर रूम में लगी। यह वही कम्प्यूटर रूम है जहां से 146 करोड़ रुपए फंड ट्रांसफर किया गया था। मतलब 146 करोड़ रूपये के गबन की यहां पर रखीं सारी फाइलें जलकर खाक हो गई हैं।
आग लगी या लगाई गई ये जाँच का विषय है लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि जहाँ तमाम अहम रिकॉर्ड रखे गये हों वहीं आग कैसे लगी।
बैंक की GM वित्त ऋतु गुप्ता इस रिकॉर्ड रूम की प्रभारी हैं , जिनकी भूमिका पूरे मामले में संदिग्ध दिख रही है,150 करोड़ गबन में भी ऋतु गुप्ता की भूमिका संदिग्ध थी।उ च्च अधिकारियों से संरक्षण के चलते इनके ऊपर कोई कार्यवाई नहीं हो पाई थी।
देखना होगा कि 150 करोड़ के गबन के मामले में और सारे रिकार्ड जहाँ रखे गये थे उसे आग के हवाले करने के मामले में ऋतु गुप्ता पर जाँच और कार्यवाई कहाँ तक हो पाती है ! या ऋतु गुप्ता अपने पावर से खुद को बचाने में सफल रहेंगी।
कोऑपरेटिव वाली ऋतु गुप्ता के ताकत का अंदाजा लगाइये सारा खेल खेलकर फाइनेंस से अपना चार्ज हटवा लिया। अब सिर्फ बैकिंग का चार्ज रखा अपने पास।
नाबार्ड की एक मामूली क्लर्क ऋतु गुप्ता कैसे अपने बल और शोहरत से कोऑपरेटिव में अपना सिक्का चलाती है ये जाँच का विषय है। सूत्रों की मानें तो विभाग के ही एक ताकतवर सज्जन हैं जो अपनी पूरी ऊर्जा इनको सुरक्षित रखने में लगाते रहते हैं। कल्पना करिये सारे नियम को ताक पर रखकर अपनी पोस्टिंग कोऑपरेटिव में कराकर अब जीएम बनकर कैसे कोऑपरेटिव में खेल खेला जा रहा है।
बताते चलें कि नोटबंदी में इन्होंने पहले अपने और अपने पति प्रदीप गुप्ता ( एएमए, बहराइच ) के नाम से लोन लिया फिर उसी लोन खाते में 40 से 55 लाख रुपया कैश जमा किया। ऋतु गुप्ता उस समय जीएम आईटी थी तो रिपोर्ट से अपना नाम हटा लिया जब जाँच हुई तो एक साल के ऊपर सस्पेंड रही थी फिर अपने ताकत के बल पर बहाल हो गई और तबसे ले कर अबतक इनका सिक्का कोऑपरेटिव में चलता है।
नियमतः इनकी कोऑपरेटिव में हुई न्युक्ति ही अवैध है जिसकी जाँच होनी चाहिए। कोऑपरेटिव के आठवें मंजिल में लगी आग कि जाँच होनी चाहिए जिससे कोऑपरेटिव में हो रहे खेल से पर्दा उठ सके।
MYogiAdityanath