सौरभ जैन-
सवाल यह वाला ज्यादा जरुरी है… दुर्घटना होना अलग बात है, लेकिन दुर्घटना के बाद 24घंटे तक बचाव अभियान चलाना समझ से परे है। जिनका खून बह रहा था वो पानी तक के लिए तरस रहे थे। फंसे हुए लोगों को गोल्डन आवर में निकाल कर इलाज दिया गया होता तो ज्यादा जानें बचाई जा सकती थीं।
शाम 7बजे की घटना के बाद दो से तीन घंटों में सभी घायलों को निकाला जाना चाहिए था। आखिर गर्मी के मौसम में घायल को रातभर तड़पकर मरने के लिए कैसे छोड़ा दिया गया। प्रयाप्त बचाव दल समय रहते ही क्यों नही निकाल पाई तड़पते हुए पीड़ितों को?
सवाल तो है, लेकिन मीडिया ऐसे सवालों को क्यों नही उठा रही है! उन्हें किसने रोका है? मीडिया को अगले दिन लगे ब्लड डोनेशन कैंप कवर करने के लिए किसने कहा? दुर्घटना के शिकार हुए लोंगों को कहानियां TV स्क्रीन से गायब कर नेताओं को टीवी पर जगह देने की रणनीति कौन बना रहा है?
कइयों का पूरा परिवार खत्म हो गया है, सैकड़ों लोग जीवनभर के लिए लाचार हो गए हैं, कोई परिवार का इकलौता सहारा था जो अब नही रहा। सवाल तो है की पत्रकार घटना स्थल से जो कहानियां इकट्ठा कर रहें हैं वो TV स्क्रीन पर क्यों नहीं आ पा रहीं है?
सवाल है की घटनास्थल पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को कौन ले आया? इस घटना को बिना किसी आवश्यक कार्रवाई किए भुला दिए जाने की शाजिस कौन गढ़ रहा है? क्या इसे भुला दिए जाने से रेलवे की समस्याएं ठीक हो जाएंगी? क्या यात्रियों को सुविधाएं व उनका हक आगे से मिलना सुनिश्चित हो सकेगा?