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सुख-दुख

ये कारपोरेट एडिटरों का दौर है!

सत्तर-अस्सी की दहाई वाले प्रतिबद्ध संपादकों के दिन हवा हुए। ये कारपोरेट एडिटरों का दौर है। हिंदी पत्रकारिता दिवस पे आज के ये बतोले ज़रूर पढिये, सूरमा के बतोले, आरिफ़ मिर्ज़ा द्वारा लिखित, अग्निबाण में प्रकाशित!

सुर्ख़ियाँ अख़बार की, गलियों में ग़ुल करती रहीं, लोग अपने बंद कमरों में पड़े सोते रहे। दैनिक भास्कर की तरक्की का राज़ ये हेगा साब के इसके कारिंदे वखत के साथ चलते हेँगे। झां पे अपडेट रेना एक रिवायत है। पुराने सिस्टमों को तोड़ के भास्कर नई-नई ईजाद करता रेता है। किसी दौर में तकरीबन हर हिंदी अखबार में कोई भोत घुटा हुआ लिख्खाड़ ही अखबार का एडिटर हुआ करता था। गोया के बालों की सफेदी और मोटे फिरेम का चश्मा चढ़ाए एडिटर साब डांट-फटकार करते हुए जब दाखिले दफ़्तर होते…और सिटी से लेके सेंट्रल डेस्क तक पे बैठे सहाफी (पत्रकार) सूत-गुनिये में आ जाते। तब एडिटर साब का इत्ता जलवा और लिहाज होता था के अखबार मालिक तक उनका पूरा एहतराम करते।

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मसला ये के आज से कोई अठ्ठाइस-तीस बरस पेले तक जो एडिटर के देता वोई खबर लीड बनती, वोई मसला उठाया जाता। ये वो दौर था तब एडिटोरियल में न विज्ञापन वालों की घुसेड़ होती थी न एचआर का कोई कारकून दखलंदाजी कर सकता था। मक़सद ये के तब अखबारों के एडिटर खालिस सहाफत करते थे। उनका सरोकार हमेशा करप्ट अफसरों और नेताओं को उजागर करना हुआ करता था। बाकी आजकल एडिटर नाम की संस्था खतम ही हो गई है। अब जो जित्ता बड़ा मेनिजर होता है वोई अखबार का एडिटर होता है। ज़रूरी नहीं के आज के एडिटर की हिंदी ज़बान या ख़बरों पे लपक पकड़ हो।

आज का एडिटर तो मियाँ कारपोरेट कल्चर में रम चुका है। खैर साब ज़माना करवट बदल चुका है। लिहाज़ा तमाकू वाला बंगला पत्ता चबाने वाले और खद्दर का कुर्ता पायजामा पहनने वाले एडिटर गुज़रे ज़माने की यादों में सिमट गये हैं। सूरमा के अय्यार बताते हैं के दैनिक भास्कर आने वाले मुस्तक़बिल के एडिटर तैयार कर रहा है। इसके लिए अखबार के मैनेजमेंट ने अपने सभी एडिशनो से एडिटर के ओहदे के लिए दरखासतें बुलाई थीं। जो सहाफी भास्कर में कमसे कम 2 बरस काम कर चुका हो और जिसकी उमर 40 बरस से ज़्यादा न हो ऐसे लोग इसके लिए अप्लाई कर सकते थे। ग्रुप के 40 सहाफियों ने एडिटर बनने की ख्वाइश जताई। इनके लिए बाक़ायदा ऑन लाइन इम्तहान लिया गया। पता चला है के छह या सात सहाफी इसमे कामयाब हुए हैं। अब इन मुस्तसकबिल के एडिटरों की ग्रूमिंग भोपाल में चल रही है। भास्कर के नेशनल न्यूज़ रूम में अखबार के बड़े ओहदेदार संपादक इन रंगरूटों की ग्रूमिंग कर रहे हैं। ये ग्रूमिंग प्रोगराम 6 महीने चलेगा। इसमे खबरों की पेशकश के साथ ही अखबार की पालिसी सहित तमाम फंडे सिखाये जा रहे हैं।

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ट्रेनिंग पूरी करने के बाद इन नोजवान एडिटरों को भास्कर के अलग-अलग एडिशनो में पोस्टिंग दी जाएगी। इससे एक बात साफ है कि अखबार अब पुराने पाखट सहाफियों (पत्रकारों) के बजाए छत्तीस-सैंतीस बरस के सहाफियों को अखबार सौपना चाहता है। वैसे भी भास्कर के कई एडिशनो की कमान नोजवान बंदों के हाथ मे है। मुबारक हो साब वक्त के साथ बहने के लिये।

आरिफ मिर्ज़ा

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