हरेंद्र प्रताप सिंह-
दैनिक जागरण कानपुर के जीएम अवधेश शर्मा को सुनिए। इस ऑडियो को सुनकर आपको पता चलेगा कि कैसे एक कर्मचारी के चंद रुपए हड़पने को जागरण प्रबंधन कोर्ट तक को गुमराह कर रहा है। दैनिक जागरण कानपुर के जनरल मैनेजर अवधेश शर्मा कार्यालय के अंदर डेस्क पर काम करने के संबंध में बात कर रहे हैं, जबकि मैनेजर पर्सनल अभिषेक तिवारी कोर्ट में सिर्फ रिपोर्टिंग कराने (खबरें लेने की बात) लिखित में दे चुके हैं। पीएफ कोर्ट में बाकायदा उन्होंने प्रति खबर के हिसाब से भुगतान का चार्ट भी पेश किया है। पीड़ित का आरोप है कि दिन में उससे रिपोर्टिंग और देर रात तक ऑफिस में डेस्क वर्क कराकर न्यूनतम वेतनमान भी न देकर शारीरिक, मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न किया।
जीएम और मैनेजर पर्सनल अलग-अलग बयान देकर धोखाधड़ी और 420सी भी कर रहे हैं। एक गलती के लिए दो बार सजा देकर भी पीड़ित का मानसिक उत्पीड़न किया। छद्म कंपनी जेकेआर में नियुक्ति कर जागरण में कार्य कराया।
ऑडियो में यह तथ्य भी सामने आ रहा है कि कांट्रेक्ट पर कार्यरत अर्पित अवस्थी को मौखिक रूप से जिला प्रभारी का चार्ज दिया गया, जबकि हरेंद्र यानी मुझे पीएफ कमिश्नर अनूप कटियार ने भी कानूनन कर्मचारी माना। उनको कोर्ट में सबमिट की गई पुलिस जांच में प्रधान संपादक संजय गुप्ता, आशुतोष शुक्ला, जितेंद्र शुक्ला, यशांश त्रिपाठी सहित सभी नौ आरोपियों ने यह कहकर जिला प्रभारी जैसे महत्वपूर्ण पद पर चार्ज न देने का बयान दिया कि वह कर्मचारी ही नहीं था। यदि हरेंद्र कर्मचारी नहीं था तो ऑडियो में जीएम अवधेश शर्मा उसकी कौन सी फाइल मंगवाकर देखने का जिक्र करते हैं? जीएम हरेंद्र को समझदार इंसान भी बता रहे हैं, लेकिन दारोगा पवन कुमार सिंह को दिए बयान में प्रधान संपादक संजय गुप्ता ने दिल्ली से कानपुर आकर अन्य नौ आरोपियों के साथ उसे बीमार बताया है।
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जिन मेलों पर जीएम अवधेश शर्मा उंगली उठा रहे हैं उनमें से किसी में अपशब्द नहीं लिखे हैं। उनको भेजीं सारी मेल और संस्करण निकालने के दौरान कुछ शाब्दिक दोषों के लिए या बिना दोष दी गई सजा की सभी मेल कोर्ट में खुद पीड़ित ने जमा की हैं।
जीएम और अन्य अधिकारियों को तकलीफ सिर्फ इस बात की थी कि डायरेक्टर को उनकी मनमानी के बारे में मेल करके क्यों बताया। जीएम अवधेश शर्मा ऑडियो में सबको कंपनी का मुलाजिम स्वीकार करते हैं। उन्होंने एक बार भी नहीं कहा कि हरेंद्र जागरण का कर्मचारी नहीं है। लेकिन कोर्ट में जमा बयान में अन्य आरोपियों के साथ वह भी पलट गए। जीएम अवधेश शर्मा ऑडियो में कंपनी के निर्णय को मानने की बात भी कहते हैं। साथ ही इसे विभागाध्यक्ष और सबसे बड़ी पोस्ट के अधिकारी द्वारा लेने की बात कहते हैं। ट्रांसफर लेटर में भी मैनेजमेंट द्वारा निर्णय लेने का जिक्र है।
जबकि काकादेव थाने के दारोगा पवन कुमार सिंह से कोर्ट ने जो जांच कराई है, उसमें दारोगा ने साफ लिखा है कि सभी नौ आरोपियों ने एक दूसरे का समर्थन करते हुए बताया कि हरेंद्र के ट्रांसफर से संबंधित आदेश का पत्र गलती से जारी हो गया। उसी को आधार बनाकर पीड़ित कंपनी पर दवाब बना रहा है। पीड़ित का कहना है कि यदि वह दवाब बनाता तो दैनिक जागरण कानपुर के मैनेजर पर्सनल अभिषेक तिवारी के रिश्वत का ऑफर तुरंत स्वीकार कर लेता। जबकि केस वापस करने के एवज में अभिषेक तिवारी उससे खुद कह चुके हैं कि सोचकर बताना कितना रुपया चाहिए। दिलवा देंगे।
पता नहीं क्यों इतनी बड़ी कंपनी के बड़े-बड़े अधिकारी उसके हक के वेतन और पीएफ के चंद रुपए न देकर केस वापस करवाने के एवज में उसे मुंहमांगी रकम देने को तैयार हैं। पीड़ित के पास मौजूद जागरण प्रबंधन के ढेरों ऑडियो में कुछ बयान और कोर्ट में कुछ और बयान दिए जा रहे हैं। काबिल दारोगा पवन कुमार सिंह ने पीड़ित से दैनिक जागरण द्वारा लिए गए उस एफिडेविट के आधार पर कंपनी के पक्ष में रिपोर्ट लगा दी, जिस एफिडेविट को कोर्ट स्वीकार ही नहीं करता।
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