Ratan Bhushan-
दैनिक जागरण का मालिक और उसकी लीगल टीम कितनी दमदार (बेवकूफ) है, यह इस बात से लोगों को समझ आ जायेगी। अभी कुछ दिन पहले मजिठिया मामले में नोएडा लेबरकोर्ट से अन्तरिम आदेश आया, जिसमें वर्कर के विद्वान वकील श्री राजुल गर्ग के दमदार तर्क के आगे जागरण की लीगल टीम और उनके सीनियर वकील श्री अरुण कुमार को मुंह की खानी पड़ी।
जाहिर है, जब गाज जागरण पर गिरी, तो मालिक से डांट भी लीगल टीम और वकील को सुननी पड़ी। अब टीम क्या करे? टीम कुछ तो ऐसा करे, कि मालिक एक बार फिर मुंह की खाये! तो उसने एक आवेदन 31 अक्टूबर को लगाया, क्योंकि आदेश के मुताबिक 31 तक जागरण को केस से संबंधित कुछ कागज़ात कोर्ट को देने थे, जो उसने नहीं दिए। आवेदन भी क्या, कि माननीय हमें 8 सप्ताह का समय दें, ताकि मैं हाइकोर्ट जा सकूं। तब तक कार्यवाही को माननीय रोक दें।
अब कोई जागरण के इन विद्वान वकीलों को समझाए कि ऐसा आवेदन किस काम का? कोई न्यायालय भला ऐसे आवेदन को क्यों तवज्जो देगा? तुझे माननीय हाइकोर्ट या माननीय सुप्रीम कोर्ट जाना है, तो किसी से पूछकर जाएगा? जल्द जा और स्टे लेकर आ!
लेकिन अहम बात यह है कि आदेशों में जिस तरह से और विस्तार से माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जिक्र है, शायद ही कहीं यह एंटरटेन हो। वैसे दैनिक जागरण अदालतों में बड़ी खूबसूरती से झूठ बोलता है और तथ्य को चतुराई से छिपा लेता है। माननीय भी झांसे में आ जाते हैं और गरीब वर्कर का नुकसान हो जाता है। यही हुआ है इलाहाबाद हाइकोर्ट में।
जिस वकील ने जबलपुर हाइकोर्ट में बहस जागरण की ओर से की, वह खारिज हो गया। जागरण और भास्कर उसके बाद आगे नहीं गए, लेकिन पत्रिका को आगे बढ़ा दिया। वह माननीय सुप्रीम कोर्ट गया और डिसमिस होकर आ गया। उसकी सुनवाई भी नहीं हुई। जागरण के वही विद्वान वकील और टीम ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में उसी मुद्दे पर स्टे लिया, जो जबलपुर में खारिज हुआ था। गज़ब तो यह कि वह मुद्दा 1962 में ही खत्म हो चुका है और wja यानी वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में अंकित भी है, लेकिन माननीय ने फिर भी स्टे दे दिया।
खैर, जिस दिन भी केस में बहस होगा, उसी दिन जागरण पर जुर्माना लगना तय है। वर्कर तो जीतेंगे ही, लेकिन उसका माननीय की अनदेखी से कुछ साल और धन की हानि तो हो ही रही है। मुद्दे की बात यह है कि अब जागरण की लीगल टीम और उनके विद्वान वकील मालिक को कौन सी घुट्टी पिलाते हैं, देखने वाली बात यह होगी!
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