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प्रसून जी, दलाली वाली पत्रकारिता ज्यादा खतरनाक है!

4 अगस्त को एनडीटीवी के पत्रकार दिनेश मानसेरा की किताब ‘दाज्यू बोले’ का लोकार्पण था, दिल्ली के प्रेस क्लब में। ज्यादा पत्रकार जुटे, 2-4 नेता भी। बड़े पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी को यह नहीं जंचा कि किसी पत्रकार की किताब का लोकार्पण कोई राजनेता क्यों करे। वैसे इस किताब का पहला लोकार्पण रवीश ने ही किया। वे भी बड़े पत्रकार माने जाते हैं। बहरहाल पुण्य प्रसून के शब्दों में आजकल पत्रकारों का राजनीतिक क्षेत्र में जाने का चलन बढ गया है। राजनेता भी खुद को एक जमाने का पत्रकार बताते नहीं अघाते। प्रसून जी इसे गलत परम्परा मानते हैं। वे कहते हैं कि कोई भी सच्चा और अच्छा पत्रकार राजनीति में नहीं जाता। इस लिहाज से वे बतौर पत्रकार अटल बिहारी वाजपेयी को भी खारिज करते हैं और हाल ही में राज्यसभा के रास्ते मंत्री तक का सफर तय करने वाले एम जे अकबर को भी पत्रकार नहीं मानते।

4 अगस्त को एनडीटीवी के पत्रकार दिनेश मानसेरा की किताब ‘दाज्यू बोले’ का लोकार्पण था, दिल्ली के प्रेस क्लब में। ज्यादा पत्रकार जुटे, 2-4 नेता भी। बड़े पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी को यह नहीं जंचा कि किसी पत्रकार की किताब का लोकार्पण कोई राजनेता क्यों करे। वैसे इस किताब का पहला लोकार्पण रवीश ने ही किया। वे भी बड़े पत्रकार माने जाते हैं। बहरहाल पुण्य प्रसून के शब्दों में आजकल पत्रकारों का राजनीतिक क्षेत्र में जाने का चलन बढ गया है। राजनेता भी खुद को एक जमाने का पत्रकार बताते नहीं अघाते। प्रसून जी इसे गलत परम्परा मानते हैं। वे कहते हैं कि कोई भी सच्चा और अच्छा पत्रकार राजनीति में नहीं जाता। इस लिहाज से वे बतौर पत्रकार अटल बिहारी वाजपेयी को भी खारिज करते हैं और हाल ही में राज्यसभा के रास्ते मंत्री तक का सफर तय करने वाले एम जे अकबर को भी पत्रकार नहीं मानते।

प्रसून जी, आजादी के इतिहास को उलट लीजिए। गांधी, तिलक, लाला लाजपत राय जैसे बड़े राजनेताओं ने पत्रकारिता भी की और समाज में आदर्श भी स्थापित किया। जहां तक अटल जी की बात है, वे मूलतः एक पत्रकार और कवि ही हैं। राजनीति में तो वे आ गए। उसमें रहकर भी उन्होंने एक आदर्श प्रस्तुत किया। एम जे से आपकी नाराजगी पत्रकारिता के नाते है या खेमा बदलने के चलते। जो भी हो, एक ईमानदार पत्रकार राजनीतिक क्षेत्र में जाए तो उससे राजनीति का भला ही होगा।

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प्रसून जी, पत्रकारों के राजनेता बनने से भी ज्यादा गंभीर समस्या है, राजनताओं का दलाल बन जाना। अनेक ऐसे बड़े पत्रकारों का खुलासा हुआ है जो राजनेताओं के लिए दलाली करते हुए पाए गए। नीरा राडिया केस आप देख लीजिए। आज भी अनेक बड़े पत्रकार अपनी विचारधारा के कारण पत्रकारिता के सिद्दांतों को ताक पर रखकर जो चाहे वह दिखाते हैं। इस अहंकार से चूर होकर कि वही समाज का आईना हैं। राजनेताओं से गलबहियां डालकर राज दरबार से काम करवाने वाले आपको भी अनेक दिखते होंगे। ऐसे बड़े पत्रकार आज करोड़ों के बंगले में रह रहे हैं। चुनाव के समय पत्रकार ही नहीं, उनके संस्थान भी बिकाऊ हो जाते हैं। पैकेज पाने के लिए पार्टी दफ्तरों में उनके प्रमुख तक पैरबी करते हैं।

प्रसून जी, पत्रकारों के राजनीतिक कार्यकर्ता बनने से पत्रकारिता का कुछ नहीं बिगड़ेगा। पत्रकारिता को नुकसान होगा पत्रकारों के राजनेताओं के दलाल बनने से, दलाली वाली पत्रकारिता करने से, और कुछ हद तक एक विचारधारा के बंदी होकर सच को झूठ की चासनी में लपेटकर प्रस्तुत करने से।

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जितेन्द्र तिवारी
2 दशक का पत्रकार
[email protected]


मूल खबर….

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