शाहनवाज़ हसन-
IFWJ की स्थापना 28 अक्टूबर 1950 में जिन उद्देश्यों को लेकर की गयी थी, 90 के दशक आते-आते उद्देश्य पीछे छूट गये और आपसी मतभेद इतने बढ़ गये कि वे कई टुकड़ों में बंटते चले गये।
पहली टूट 8 जून 1990 को हुई और IJU का गठन किया गया। 90 के दशक के बाद फिर एक टूट 2014 में हुई और फिर यह दो टुकड़ों में बंट गया। एक गुट ने दूसरे गुट के पदाधिकारियों को संगठन से निष्कासित कर दिया। मामला वर्षों से न्यायलय में लंबित है। इसके बावजूद दोनों ही गुट IFWJ(Pandey) & IFWJ(Rao) स्वयं को IFWJ का सही प्रतिनिधि बता कर इन वर्षों में केवल कार्यक्रम आयोजित कर संगठन के नाम पर खानापूर्ति करते चले आरहे हैं।
कल देर रात यह सूचना मिली कि IFWJ में अब चौथी टूट हुई है और IFWJ(Jha) का गठन कर लिया गया है। अबकी बार जो टूट हुई है, उसमें IFWJ(Pandey) गुट में टूट बतायी गयी है। सूचना यह भी मिल रही है कि IFWJ(Rao) गुट में भी टूट के लिए कुछ राज्यों ने तैयारी कर ली है।
पत्रकार हितों की रक्षा के लिए बना पत्रकार संगठन आज कई टुकड़ों में बंट गया है। उद्देश्य को लेकर कोई भी गुट कितना सक्रिय रहा है, यह जानना हो, तो उन पत्रकारों के परिजनों से पता करें, जिनकी पिछले 10 वर्षों में हत्याएं हुई हैं, उन पत्रकारों से भी पूछें, जिन्हें झूठे आरोपों में जेल भेजा गया। तब इनके पदधारी मठाधीश अपने निजी स्वार्थ के लिए कभी मुलायम, कभी अखिलेश, तो कभी मायावती के गुणगान में व्यस्त रहे थे।
हर टूट का कारण संगठन के ऊपर वित्तीय अनियमितता के गंभीर आरोप बताये गये।
एक प्रश्न पत्रकार साथियों के मस्तिष्क में अवश्य आता होगा आखिर IFWJ को लेकर ही इतनी मारामारी क्यों है ? क्यों सभी टुकड़ों में बंटे IFWJ के गुट स्वयं को असली और दूसरे को फर्जी प्रमाणित करने के लिए न्यायालय में वर्षों से मुकदमेबाजी कर रहे हैं।
एक गुट के अध्यक्ष लगभग 30 वर्षों से अध्यक्ष के पद पर आसीन हैं और अपने बाद यह पद अपने सुपुत्र को सौंपने की लगभग पूरी तैयारी कर बैठे हैं, वहीं दूसरे गुट पर उच्चतम न्यायालय के एक अधिवक्ता लंबे समय से काबिज़ हैं।IFWJ की संपत्ति लगभग 18-20 करोड़ की बतायी जाती है, जिसमें लखनऊ प्रेस क्लब का भवन भी शामिल है। हर वर्ष एक अनुमान के अनुसार 25-35 लाख तक की आमदनी की बात कही जाती है।
IFWJ को लेकर मतभेद इसी वित्तीय अनियमितता को लेकर वर्षों से चला आ रहा है। कोई 30 वर्षों से संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए स्वघोषित अध्यक्ष है, तो कोई पत्रकार न होते हुए भी स्वयं को अध्यक्ष घोषित कर बैठा है।
गुटों में बंटे IFWJ के किसी भी गुट को पिछले 5 वर्षों में पत्रकारों के लिए संघर्ष करते कभी नहीं देखा गया। अब तीसरे गुट का गठन किया गया है, जहां गठन के साथ ही विवाद खुल कर सामने आ गया है। बिना किसी बैठक के महासचिव घोषित किये गये पत्रकार मनोज मिश्रा ने यह कहा है कि मैं जब दावेदार ही नहीं था, तो यह पद मुझे कैसे दे दिया गया।
कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए बने संगठन का आपसी मतभेद एवं वित्तीय अनियमितता के कारण मठाधीशों ने बंटाधार कर दिया है।