इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश के चीफ़ जस्टिस महोदय को साधुवाद कि उन्होंने होटल में मारपीट करने, महिला से अभद्रता और कदाचार के आरोप में उन्नीस ट्रेनी जजों को बर्खास्त कर दिया। न्यायपालिका की धूमिल हो रही साख को बचाने में ये फ़ैसला मील का पत्थर साबित होगा। लोकतंत्र के पहले स्तंभ ने अपने नवप्रवेशियों के कदाचार पर फ़ैसला लेकर जिस तरह का कीर्तिमान स्थापित किया है, क्या वैसी ही उम्मीद लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से नहीं की जानी चाहिए?
भारत का आम आदमी अख़बार के लिखे पर आँख मूंद कर भरोसा करता है, तब क्या वहां काम करने वाले लोगों के जीवन का सार्वजनिक आचरण शुचितापूर्ण नहीं होना चाहिए? अगर होना चाहिए तो क्या देश के सम्मानित अख़बार के अधिकारियों और कर्मचारियों का ये आचरण क्या माफ़ करने लायक है? भारतीय पत्रकारिता के ज़िम्मेदार स्तंभ शशि शेखर को शर्मिंदा करने के लिए क्या उनके कर्मचरियों की ये हरकत काफ़ी नहीं है।
ये वीडियो हिन्दुस्तान अख़बार के नंबर एक होने के जश्न का है। इलाहाबाद में होटल कान्हा श्याम में आयोजित एडवरटाइजिंग एजेंसियों के सम्मान समारोह में बैले डाँसर के साथ झूमते हुए मार्केटिंग मैनेजर ओम श्रीनेत दिखायी दे रहे हैं। साथ में कुछ और आधिकारी भी हैं। उन्हीं का एक साथी महिला के वक्ष-स्थल पर हाथ लगाता हुआ दिखाई दे रहा है। इसने पाँच सौ का एक नोट उसकी ड्रेस में डाल दिया। डाँसर ने तत्काल उसे लात मारी और खुद से दूर किया। बाद में कार्यक्रम बंद हो गया। माफी मांगी, तब जान बच पाई।
इन्हीं अखबारों को जनता के टैक्स से सरकार द्वारा करीब 64 हज़ार करोड़ रुपये का विज्ञापन जारी किया जाता है| पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा जाता है| क्या यही सब देखने के लिए, अच्छा हुआ की पिछली सरकार ने किसी पत्रकार को पदम-श्री पुरस्कार नहीं दिया वरना पता लगता की डांसर से छेड़छाड़ करने वाला भी पद्मश्री है।
वीडियो देखने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करेंः
विपिन गुप्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Firoj khan
June 27, 2015 at 10:45 pm
प्रेस काउन्सिल जैसी स़स्थाये कोमा में चली गई हैं, ये सब इन्ही की नाक के नीचे हो रहा है फिर भी ये गूंगी बहरी बनी रहती हैं .स्टिंगरो की इस हालत के लिये ये संस्थाएं भी कम जिम्मेदार नही हैं. ये बूढ़े मक्कार और चुके हुए लोगो का समूह है जो सिर्फ सरकार का पिछवाड़ा सहलाता है. इन्हें पत्रकारों की दुर्दशा से कोइ लेना देना नही.