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उत्तर प्रदेश

रिटायर आईपीएस अफसर को अरेस्ट करना पुलिस विभाग को पड़ेगा महंगा, दारापुरी पहुंचे हाईकोर्ट

एस.आर. दारापुरी (पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट) ने बताया कि उन्होंने लखनऊ पुलिस के विरुद्ध इलाहबाद हाई कोर्ट को एक शिकायती पत्र भेजा है. इलाहबाद उच्च न्यायलय ने 19/20 दिसंबर को नागरिकता कानून के विरुद्ध प्रदर्शनों में पुलिस द्वारा की गयी ज्यादतियों का स्वत: संज्ञान लेकर इन ज्यादतियों के शिकार हुए लोगों से पुलिस के विरुद्ध शिकायती पत्र सीधे भेजने का आदेश दिया है.

इसी के अनुसरण में मैंने भी अपने साथ पुलिस की ज्यादित्यों के बारे में शिकायती पत्र भेजा है जिसमें मैंने 19 दिसंबर को मुझे घर पर गैर कानूनी ढंग से नजर बंद रखने, दिनांक 20/12 को घर से 11.45 बजे ले जाकर थाना गाजीपुर में बैठाये रखने तथा शाम को 7 बजे मेरी गिरफ्तारी महानगर के किसी पार्क से दिखाने, रात 8 बजे रिमांड मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करने तथा उस द्वारा निर्दोष पाए जाने पर जेल रिमांड न देने पर रिमांड मैजिस्ट्रेट के उपलब्ध ही न होने की झूठी बात कहने, मेरा 161 सीआरपीसी के अंतर्गत कोई भी ब्यान न लेने तथा मेरा मनगढ़ंत बयान लिखने, रात में थाने पर मांगने पर कम्बल न देने तथा दिनांक 20 तथा 21 दिसंबर को खाना न देने की शिकायत की है तथा जांच करा कर दोषी पुलिस अधिकारियों को दण्डित करने का अनुरोध किया है.

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इन दोषी अधिकारियों में मुख्यत: एसएसपी लखनऊ – कलानिधि नैथानी, सीओ गाजीपुर- दीपक कुमार सिंह, निरीक्षक हजरतगंज – धीरेन्द्र प्रताप कुशवाहा तथा निरीक्षक गाजीपुर- विजय सिंह हैं.

यह ज्ञातव्य है कि इलाहबाद उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका संख्या 8/2020 में पुलिस ज्यादतियों के शिकार हुए लोगों से पुलिस के विरुद्ध शिकायत उच्च न्यायालय को भेजने के लिए कहा है. इस आदेश के अनुसरण में पूरे उत्तर प्रदेश से पुलिस उत्पीड़न का शिकार हुए लोगों की शिकायतें उच्च न्यायालय को भिजवाने का अभियान चलाया जा रहा है ताकि इसके लिए दोषी अधिकारियों को दण्डित करवाया जा सके और जोगी के पुलिस राज में उत्पीड़न पर रोक लग सके.

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यह भी उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी पीयूसीएल द्वारा उत्तर प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ों के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जा चुकी है और इसमें जोगी सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया गया है परन्तु सरकार इसमें जानबूझ कर देरी कर रही है. इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसआईटी का गठन करके फर्जी मुठभेड़ों की जांच के आदेश दिए जाने की प्रबल सम्भावना है. यदि ऐसा हो जाता है तो फिर उत्तर प्रदेश के बहुत से पुलिस अधिकारियों को जेल जाना पड़ सकता है.

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