दीपक चौरसिया इंदौर के हैं. वो होलकर कालेज में मेरे सीनियर रहे हैं. इसलिए मैं उन्हें 1998 से फॉलो कर रहा हूँ. होलकर कालेज और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से आधुनिक पत्रकारिता की पूरी एक जनरेशन निकली है. यहां से सुमित अवस्थी, अखिलेश शर्मा औऱ सिद्धार्थ शर्मा जैसे टीवी पत्रकारिता के बड़े नाम निकले हैं. इंदौर की पत्रकारिता ने भारत को बहुत बड़े हस्ताक्षर दिये हैं लेकिन कल जो दीपक चौरसिया के साथ हुआ उसके बीज वो बरसो पहले बो चुके थे.
एक समय दीपक चौरसिया बहुत प्रतिभावान पत्रकार थे औऱ एसपी सिंह के साथ काम करने के बाद उनके काम में और निखार आया था. लेकिन दीपक इंदौर के पास बहुत ही छोटे कस्बे से आते हैं. उनकी आँखों मे बड़े सपने थे. वो पत्रकारिता को शुरू से एक पेशा मानते थे. वो कहते थे कि पत्रकारिता से कभी क्रांति नही आ सकती है, भारत का पत्रकार शुरू से “राजपूत” रहा है अर्थात जिसकी सरकार उसी का पत्रकार.
दीपक गलत नहीं थे. उन्हें मीडिया की ताकत पता थी. वो रूपर्ट मर्डोक को फ़ॉलो करते थे और मीडिया को कारपोरेट जैसा चलाने के हिमायती रहे हैं. दीपक को खबर की नब्ज पकड़ना आती थी. इसलिए अटलजी की सरकार के दौरान आजतक से शुरु हुआ उनका सफर स्टार न्यूज से डीडी न्यूज तक परवान चढ़ा. उनकी रिपोर्टिंग में धार थी. संसद पर हुए हमले के दौरान उनकी रिपोर्टिंग शानदार थी. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दीपक पत्रकारिता के अर्श से फर्श पर आ गए.
मैंने दीपक चौरसिया के बारे में उनके बैचमेट और मेरे सीनियरों से बहुत जाना और समझा है. दीपक ब्रांड बनना चाहते थे. वो प्रभु चावला को अपना आदर्श मानते थे. इसलिए वो अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कोई भी समझौता करने के लिए तैयार थे औऱ उसमे वो बहुत हद तक सफल भी रहे.
जब दीपक चौरसिया ने इंडिया न्यूज चैनल को रिलांच किया तो एक समय उसकी टीआरपी बहुत हाई थी. यह दीपक की मेहनत का परिणाम था. लेकिन धीरे धीरे लालच ने उनकी पत्रकारिता को खत्म कर दिया और गोदी मीडिया के एक पक्षीय पत्रकार बन कर रहे गए.
दीपक चौरसिया की कहानी हर उस गाँव कस्बे के खांटी पत्रकार की कहानी है जो टीवी की चकाचौंध में पत्रकारिता के नैतिक मूल्यो को भूल गया है. कल शाहीन बाग में दीपक चौरसिया नहीं, भारत की भटकी हुई पत्रकारिता पिटी है जिस पर आँसू बहाने के अलावा मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है 🙏🙏🙏
naseem
January 27, 2020 at 10:34 am
प्रतिभावान पत्रकार ??????????