
मीडिया के इतिहास में आज ऐतिहासिक दिन है. शाहीनबाग पर पत्रकारिता का नंगा नृत्य किया जा रहा है. जी न्यूज का एंकर सुधीर चौधरी और न्यूजनेशन का एंकर दीपक चौरसिया, अपने घुंघरू बांधकर शाहीनबाग पहुंच चुके हैं. साथ में पुलिस बल है. जनता बाइट देने से मना कर रही है. एक तरफ औरतें हैं जो पिछले 44 दिनों से भूखे-प्यासे खड़ी हुई हैं, दूसरी तरफ एंकर है, कैमरा है, पुलिस बल है.
पुलिसबल के साथ देश के नागरिकों की रिपोर्टिंग की जा रही है. ऐसा पूरी दुनिया की मीडिया के इतिहास में पहली बार हो रहा है. लाठी के दम पर लोकतंत्र का जश्न मनाया जा रहा है. पुलिस के दम पर कैमरा मूंह में ठूंसा जा रहा है. ये एक ऐतिहासिक शाम है.
कोई इन एंकरों से पूछे यदि आप पत्रकार हैं, यदि आप निष्पक्ष हैं, सच्चे हैं, तो देश के नागरिकों में आपके प्रति इतना अविश्वास क्यों है? आप स्टूडियो में ऐसा क्या करते हैं कि जनता आप पर विश्वास ही नहीं कर रही. आपको अपनी तकलीफ सुनाना भी नहीं चाहती. सच्चा पत्रकार, नागरिकों का अपना आदमी होता है. देश के नागरिक, पत्रकार के अपने होते हैं. जनता अपने पत्रकारों का नायक की तरह स्वागत करती है. अपनी पीड़ा बताती है, अपने घाव दिखाती है. पीठ पर पड़ी लाठी दिखाती है. सर आंखों पर बिठाती है.
आप यदि पत्रकार हैं तो जनता आपको लेकर इतनी शंकित क्यों है? इतनी अविश्वास में क्यों है? इसका मतलब है कि आप टीवी स्टूडियो में पत्रकारिता नहीं करते, दलाली करते हैं. दलालों को लेकर ही आम जनता इतनी शंका में होती है. जनता के बीच जाने के लिए दलालों को ही लठैतों की आवश्यकता होती है, नायकों को नहीं, पत्रकारों को नहीं.




मध्यकाल में एक “भू माफिया” होता था, जमींदार होता था. जो अपने लठैतों की मदद से “कर” इकट्ठा किया करता था, और पूरा कर राजा के दरबार में पहुंचा आता था. आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं. माफिया अपने नए चेहरों में आपके बीच हैं. आज इन्फॉर्मेशन एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिससे राजा चुना और गिराया जा सकता है. निकम्मे राजाओं की मदद के लिए ही आज का एंकर “इन्फॉर्मेशन माफिया” बन चुका है, जो देश के नागरिकों की इन्फॉर्मेशन इकट्ठी करता है. और राजा को बेच देता है.
ये दौर इमरजेंसी के दौर से भी अधिक घृणित है. इमरजेंसी वो दौर था जबकि मीडिया की आवाज दबाई गई थी, आज वो दौर है, जबकि एक एंकर की आवाज में, एक पूरे आंदोलन, पूरी जनता की आवाज दबकर रह जाती है.
युवा मीडिया विश्लेषक श्याम मीरा सिंह की एफबी वॉल से.
Comments on “शाहीनबाग में दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी : मीडिया के इतिहास में आज ऐतिहासिक दिन है!”
सरकार के कहने पर ये दोनों दलाल एक साथ गए हैं दंगा भड़काने के लिए….
जनता ऐसे ही सत्ता के दलाल पत्रकारों को जूते मार कर भगाएगी
Ek hain paise ke liye dangawadi, naam hain chor- asia, doosra toh Tihari hain hien. Perfect jodi. Shaadi khoob chalegi!
ये पत्रकार हैं या सरकार के भोंपू हैं… पहली बार हो रहा है जब पत्रकार को मौके से जनता भगा रही है…
सरकार के प्रीतिनिध के तौर पर बात करने गए थे।
वाह वाह वाह सच्चाई को प्रदर्शित करती आपकी लेखनी
नमस्कार
मध्यकाल में एक “भू माफिया” होता था, जमींदार होता था. जो अपने लठैतों की मदद से “कर” इकट्ठा किया करता था, और पूरा कर राजा के दरबार में पहुंचा आता था. आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं. माफिया अपने नए चेहरों में आपके बीच हैं. आज इन्फॉर्मेशन एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिससे राजा चुना और गिराया जा सकता है. निकम्मे राजाओं की मदद के लिए ही आज का एंकर “इन्फॉर्मेशन माफिया” बन चुका है, जो देश के नागरिकों की इन्फॉर्मेशन इकट्ठी करता है. और राजा को बेच देता है.
बहुत खूब लिखा और बहुत सही लिखा है। इन जैसों ने मीडिया की विश्वसनीयता को दागदार किया है। आम आदमी से छल किया है। सत्ता के इन भोंपुओं को अब कोई सुनता भी नहीं है। चीखने दो इन्हे ……..
सही लिखा है भाई
बहुत बढिया रिपोर्ट है ये.
ये पत्रकार नहीं बीजेपी और आरएसएस के दलाल हैं.
आश्चर्य है कि ऐसा तथ्यहीन लेख भड़ास छाप रहा। ‘भूखी-प्यासी औरतें’। कौन भूखा रहकर पैतालीस दिन खड़ा रह सकता है। ऐसे तथ्यहीन लेख लेकर आप भड़ास की विश्वसनीयता खुद ही कम कर रहे हैं महोदय।