Deepak Sharma : तकरीबन ढाई साल पहले फेसबुक की इसी वाल पर मैंने एक इंडिपेंडेंट पब्लिक मीडिया आउटलेट की पैरवी की थी. एक ऐसी आज़ाद मीडिया जो सरकार और कॉर्पोरेट की मदद के बिना चले. ये पहल , देश में स्वतंत्र मीडिया को आगे बढ़ाने की अपनी किस्म की एक नायब शुरुआत थी. शायद इसलिए सोशल मीडिया पर इस कांसेप्ट को भरपूर समर्थन मिला और रोज़ाना इस कांसेप्ट से लोग जुड़ते चले गए. कुछ ही महीनो में इंडिया संवाद का नामकरण हुआ और कई स्थापित पत्रकारों की अगुवाई में एक वेबसाइट शुरू कर दी गयी. पहले अंग्रेजी में और बाद में हिंदी में. हिंदी की न्यूज़ वेबसाइट ज्यादा कामयाब हुई. कामयाबी मिली तो इंडिया संवाद ने कुछ उतार चढ़ाव भी देखे. कुछ विचारों के मतभेद रहे, कुछ संवाद के ट्रस्ट मॉडल को लेकर …और आखिरकार कुछ साथी बिछड़े और कुछ नए शामिल हुए. पर इंडिया संवाद बढ़ता रहा.
2016 में शोहरत का आलम ये था कि संवाद को हर महीने एक करोड़ से ज्यादा हिट्स मिलने लगे. एक वक़्त ऐसा भी आया जब क्विंट और वायर से भी ये वेबसाइट काफी आगे बढ़ गयी थी. कई बड़े खुलासे भी संवाद पर हुए. शायद इसलिए संवाद के प्रहार से आहत, अनिल अम्बानी ने ऐतिहासिक एक हज़ार करोड़ का मुकदमा किया. टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मालिक विनीत जैन ने मानहानि का नोटिस ठोका. जेट एयरवेज से लेकर स्पाइस जेट तक कई बड़े कॉर्पोरेट में व्याप्त भ्रष्टाचार को इस साइट ने उजागर किया जिसमे अडानी ग्रुप प्रमुख था. इन खुलासों का असर ये था कि नॅशनल स्टॉक एक्सचेंज ने संवाद पर 100 करोड़ का मुकदमा किया. लेकिन हर मुक़दमे में संवाद को जीत मिली . बॉम्बे हाई कोर्ट ने नॅशनल स्टॉक एक्सचेंज के मामले में जांच के आदेश दिए और सीईओ को इस्तीफा देना पड़ गया. उत्तर प्रदेश के दो -दो मुख्य सचिवों की कुर्सी चली गयी और ख़बरों की धार से अक्सर मोदी सरकार भी खुश नज़र नहीं आयी.
लेकिन संवाद में रहते हमसे कई गलतियां भी हुई. हम चाहते हुए भी इन दो वर्षों में वेबसाइट के लिए कोई इकनोमिक मॉडल न खड़ा कर पाए. कुछ शुभचिंतकों, पाठकों, मित्रों की आर्थिक सहायता और गूगल एवं यूट्यूब के ऐड के पैसों पर इंडिया संवाद आगे तो बढ़ा लेकिन अपने लिए एक ठोस बिज़नेस मॉडल बनाने में नाकाम रहा. या यूँ कहिये कि वेबसाइट ने कमर्शियल फ्रंट पर ध्यान ही नहीं दिया. सेल्स और मार्केटिंग के पेशेवर लोगों के आभाव में संवाद के लिए ब्रेक इवन पर पहुंचना मुश्किल होता गया. ज़ाहिर है एक ऑपरेशनल इनकम किसी भी संसथान को चलाने के लिए बेहद ज़रूरी है लेकिन ये बुनियादी रकम संवाद के हिस्से में बेहद कम थी. और सच ये भी था कि ऐसे परिस्थितियों में लोग अवैतनिक तौर पर कब तक श्रमदान करते रहेंगे. डेस्क के पत्रकार और टेक्निकल स्टाफ को आखिरकार तनख्वा देनी ही पड़ेगी. कैमरामैन और वीडियो एडिटर कोई इमोशनल प्राणी यानि भगत सिंह नहीं होते हैं. वे एक प्रोफेशनल हैं. और होने भी चाहिए.
नो प्रॉफिट के आधार पर चलनी वाली इस वेबसाइट ने अपने ढाई साल में एक पैसे का न सरकारी विज्ञापन लिया, न किसी कॉर्पोरेट का कोई ऐड लिया. सिर्फ हीरो मोटर्स ने स्वतंत्रा दिवस पर एक कार्यक्रम कराने के लिए 2016 में संवाद को स्पॉन्सरशिप दी थी जिसका पैसा प्राइज मनी के तौर पर प्रतिभागियों में बाँट दिया गया था. उत्तर प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार , किसी भी स्तर पर, अब तक संवाद ने कोई विज्ञापन या पेड न्यूज़ का पैसा आजतक किसी सरकारी या गैर सरकारी एजेंसी से नहीं लिया. यही नहीं, हमने वायर या स्क्रॉल जैसी वेबसाइट की तरह किसी संसथान से कोई डोनेशन भी नहीं लिया. ज़ाहिर है ऐसी स्थिति में वेबसाइट को चलाना मुश्किल होता जा रहा था. इसलिए संसाधन सिमटते चले जा रहे थे. इसका प्रभाव साइट के कंटेंट पर दिखने लगता है. ये गिरावट बहुत अखरती है जब आपने कंटेंट को बेहतर करने में काफी पसीना बहाया हो. बहरहाल इंटरनेट इतना पारदर्शी मंच है कि ज़रा से भी आप ढीले पड़े कि प्लेटलेट की तरह आपकी रैंकिंग गिरने लगती है. प्लेटलेट बढ़ाने के लिए नया दमख़म चाहिए…और दमखम के लिए दाम. वो दाम जो आसानी से झुककर, आसानी से समझौता कर आप हासिल कर सकते हैं. हमे ये कबूल नहीं.
मित्रों, आज के दौर में जब मुख्य धारा की मीडिया धार खो रही है और ख़बरों का सारा कारोबार, कॉरपरेट और सरकार के हाथों में जा रहा है, इंडिया संवाद जैसी वेबसाइट पर विराम लगाना एक नैतिक अपराध है. लेकिन मुझे लगता है वक़्त अगर खुद बेवफा होने लगे तो कटघरे में आपको परिस्थितयां खड़ा कर ही देती हैं.सो आज मैं गुनहगार हूँ. एक निष्पक्ष, धारधार मीडिया को आगे न लेजा पाने का गुनहगार.
संक्षेप में सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि परिस्थितियां फ़िलहाल इंडिया संवाद में काम कर रहे पत्रकारों के साथ नहीं है. इंडिया संवाद को आज भी एक कुशल मार्केटिंग, सेल्स और युवा एंट्रेप्रेनॉर की ज़रुरत है. सच ये है कि हम और हमारे बाकी पत्रकार साथियों में ये प्रतिभा नहीं थी.अगर होती तो हम संवाद के लिए एक सफल बिज़नेस मॉडल खड़ा कर सकते थे. लिहाजा मैंने और टीवी प्रोडक्शन के जाने माने नाम नाज़िम नक़वी जी ने कुछ ही दिन पहले इंडिया संवाद ट्रस्ट से इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा इसलिए कि हमसे बेहतर लोग संवाद को आगे बढ़ाएं. ट्रस्ट हमे छोड़ना नहीं चाहता लेकिन हम यहाँ पर एक सफल मॉडल न बना पाए इसका मलाल हमे ट्रस्ट में रहने भी नहीं देता. फ़िलहाल वरिष्ठ पत्रकार और आजतक के पूर्व मैनेजिंग एडिटर अमिताभ श्रीवास्तव ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में संवाद को जीवित रखने का भरसक प्रयास कर रहे हैं.
अमिताभ जी को मैं अपनी हैसियत के मुताबिक हर मुमकिन मदद देता रहूँगा. लेकिन मुझे लगता है कि कुछ प्रतिभाशाली एंट्रेप्रेनॉर की संवाद को ज़रुरत है. अगर डिजिटल मीडिया का कोई कुशल मार्केटिंग और सेल्स का महारथी आगे बढ़े तो देश से ये निष्पक्ष और धारदार संवाद का सिलसिला जारी रहेगा . हमेशा की तरह आप सब के लिए संवाद का दरवाज़ा खुला है. ये वाकई पीपल ओन्ड मीडिया है. आप सब ही इसके स्वामी हैं. मैं न पहले था न अब हूँ. इसलिए इस बार आप आगे बढ़ें. लेकिन एक सशक्त बिज़नेस मॉडल के साथ जिसमे सरकार का हस्तक्षेप न के बराबर हो. देश को संवाद की ज़रुरत है. पर संवाद को एक ठोस बिज़नेस मॉडल की. अगर आपके पास जवाब है तो आगे बढ़िये.
आजतक न्यूज चैनल में खोजी पत्रकार के रूप में कार्यरत रहे और इंडिया संवाद पोर्टल के संस्थापक दीपक शर्मा की एफबी वॉल से.
अशोककुमार शर्मा
December 31, 2017 at 12:13 pm
बेलौस, बेबाक और बेमिसाल स्पष्टीकरण। इसमें सच्चाई का ओज है। इंडिया संवाद से जुड़े लोगों की हकीकी तड़प है। महज जनता की भागीदारी से असरदार और आज़ाद मीडिया घराना खड़ा करना नामुमकिन क्यों है और मीडिया में ऐसे लोगों का अंजाम क्या होता है इसकी दास्तान है। दीपक शर्मा को सलाम!