Avyact Agrawal : अवसाद Depression. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अवसाद मनुष्यों में विभिन्न बीमारियों में से सर्वाधिक होने वाली बीमारी है। लगभग 350 मिलियन लोगों को इस समय अवसाद है। जीवन काल में 70 प्रतिशत लोग कभी न कभी अवसाद ग्रस्त हो सकते हैं। एवं एक वक्त में लगभग 10 प्रतिशत लोग अवसाद ग्रस्त पाए जाते हैं। आप आये दिन ऐसे सेलिब्रिटी, बड़े आई ए एस अफसर, डॉक्टर, डीन, व्यवसायियों के द्वारा आत्महत्या हत्या के केस सुनते रहते हैं। ऊपरी तौर पर देखने से उनके जीवन में हर भौतिक सुख सुविधा नाम, पैसा, सुंदरता, स्वास्थ्य ,अवार्ड्स दिखता है किन्तु बावज़ूद इसके वे ऐसा कर लेते हैं।
समस्या यह है कि, उनमें से अधिकांश अवसाद ग्रस्त रहे होते हैं किंतु परिवारजन, मित्र इत्यादि व्यक्ति के स्वभाव की कमज़ोरी मान उनके भीतर पनप रही एक गंभीर बीमारी में इन मरीजों को अकेला छोड़ देते हैं। अवसाद के प्रति सामाजिक जागरूकता का नितांत अभाव है। साथ ही अवसाद ग्रस्त होना व्यक्तित्व की कमज़ोरी अथवा दिमाग़ की बीमारी होने ज़ैसे टैबू की वजह से शर्म का विषय समझा जाता है। जिससे इन मरीजों को समय पर या आजीवन इलाज ही नहीं मिलता। जबकि किसी भी अन्य मानवीय बीमारी की ही तरह यह हममें से किसी को भी कभी भी हो सकता है। जबकि सच यह है कि, अवसाद का बेहद कारगर उपचार अब विभिन्न तरीकों से आसानी से उपलब्ध है। जो कि महंगा भी नहीं है ।
किसे अधिक होता है : अवसाद आनुवंशिक जेनेटिक कोडिंग, ब्रेन की रासायनिक प्रक्रिया एवं बाहरी माहौल के जटिल तालमेल से उत्पन्न एक स्वास्थ्य समस्या है। यूँ तो अवसाद किसी भी उम्र में हो सकता है। मैंने मात्र तीन वर्ष के बच्चे तक मे अवसाद देखा है, माता पिता के तलाक के बाद। किंतु सामान्यतः यह किशोरावस्था के आसपास या 30 वर्ष की उम्र के बाद देखने मिलता है।
महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक होता है। मोटापा, क्रोनिक बीमारियां ज़ैसे आर्थराइटिस, डायबिटीज, किडनी , लीवर की बीमारियों में भी अवसाद होने की संभावना अधिक होती है । आनुवंशिक, कारण। माता, पिता को होने पर इसकी संभावना संतान में आने की अधिक होती है। व्यसन खासकर अल्कोहल से भी होता है। कुछ दवाएं जैसे स्टेरॉइओडस, इंटरफेरॉन ( हिपेटाइटिस बी, सी में दी जाने वाली दवा) इत्यादि से होता है। डिलीवरी के बाद कुछ महिलाओं को अवसाद होता है जिसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। कुछ माह में ठीक हो जाता है।
पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर में भी अवसाद प्रमुखता से देखने मिलता है। जिसमें कोई गंभीर हानि ज़ैसे किसी परिजन की अचानक मृत्यु, रेप, जॉब लॉस, आर्थिक हानि इत्यादि शामिल होते हैं। बाइपोलर डिसऑर्डर , सायकोसिस ,ओ सी डी जैसी मानसिक बीमारियों के साथ भी अवसाद देखने मिलता है।
क्यों होता है अवसाद : अब तक के शोध कहते हैं कि, अवसाद मस्तिष्क में उपस्थित बादाम के आकार के एक हिस्से हिप्पोकैम्पस की कोशिकाओं में कमी से रासायनिक अनुपात में गड़बड़ी से होता है।
क्या हर एक दुख अवसाद है…. कैसे इसे पहचानें। उत्तर है नहीं, हम सबको मूड स्विंग होना, कोई बात बुरी लगना, दुःख होना स्वाभाविक है। किन्तु यदि दुख कारण की तुलना में बहुत अधिक हो। 2 हफ्तों से अधिक दिन तक बना हुआ हो एवं मरीज़ में निम्न बाहरी लक्षणों में से कुछ दिखाई दे रहे हों तो यह अवसाद हो सकता है। मानसिक रोग विशेषज्ञ को मिलें।
- किसी भी मनोरंजक, सामाजिक , खेल, अच्छे कपड़े, इत्यादि में रुचि न होना।
- अकेले रहना । संबंधों का ख़राब होते जाना।
- पहले से कम बात करना, कम ऊर्जा, थकावट का होना ।
- नींद न आना अथवा सुबह सुबह ज़ल्दी नींद खुल जाना एवं मन उदास होना।
- आत्महत्या के विचार बार बार आना
- अपराध बोध, हेल्पनेसनेस, एवं स्वयं को असफल मानना ।
- कभी कभी कुछ मरीजों में बहुत अधिक सोना, बहुत अधिक खाना ।
- स्वयं का इलाज कराने से भी मना करना अनेकों बार होता है।
इलाज़ एवं रोकथाम :
- अच्छी दिनचर्या, प्रकृति से लगाव किसी रचनात्मक रुचि ज़ैसे पेंटिंग, संगीत, खेल, लेखन होने से अवसाद की संभावना में कमी आती है।
- औरों पर मानसिक निर्भरता की जगह स्वयं के साथ मे आनंदित होना सीखना।
- व्य्यायम जिनमें एरोबिक्स , योगा , वेट लिफ्टिंग हफ्ते में 4 से 5 दिन अवसाद ग्रस्त होने से बचाएगा। शोध कहते हैं एक्सरसाइज दवा से भी कारगर होता है कुछ केसेस में।
- दवाएं : अनेकों प्रकार की बेहद कारगर सुरक्षित एवं , आदत न डालने वाली एन्टी डिप्रेसेंट दवाएं बन गयी हैं। किंतु इन्हें लंबे समय लेना होता है। न ही मन से इन्हें आरम्भ करें न ही मन से बंद। मानसिक रोग विशेषज्ञ का परामर्श लें।
- व्यसन से दूर रहें। अधिकांशतः दोस्त कहते हैं दुःखी होने पर” चल पैग मार सब ग़म दूर “
किन्तु अल्कोहल अवसाद के मरीज़ के लिए बेहद खतरनाक है। वे इसके आदी बन सकते हैं। एवं खुदकुशी की संभावना भी अल्कोहल के बाद बढ़ जाती है।
परिवार, समाज की ज़िम्मेदारी : अवसाद ग्रस्त मरीज़ को, या आत्महत्या के मरीज़ को नकारात्मक रूप से जज न करें। उनका साथ दें। यह एक बीमारी मात्र है जो आपको, एवं यह लेख लिखने वाले मुझे भी हो सकती है।
फेसबुक के चर्चित लेखक डा. अव्यक्त अग्रवाल की वॉल से.