रवीश कुमार-
पत्रकारिता को दबाने का नया हथियार FIR, वाह री सरकार…. पहले पत्रकारिता को सामने से ख़त्म कर दिया गया। लोगों को घटिया पत्रकारिता के ज़रिए बौद्धिक और सांप्रदायिक रूप से गुलाम बनाया गया। और अब स्थानीय स्तर पर बची हुई पत्रकारिता को ख़त्म किया जा रहा है। राजकोट की इस ख़बर की तुलना आप उत्तर प्रदेश की कुछ घटनाओं से कर सकते हैं जहां प्रशासन की रिपोर्टिंग मात्र के कारण पत्रकारों पर FIR की गई है। दिल्ली से ख़बरों के आने के रास्ते बंद हैं। ज़िला स्तर से ख़बरें निकल कर आ जाती हैं। काम में बाधा और साज़िश के नाम पर ख़बरों के बाहर आने के रास्ते बंद किए जा रहे हैं।
दिव्य भास्कर ने अपने पहले पेज पर पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस की FIR का प्रतिकार किया है। पत्रकारों ने यहाँ के एक अस्पताल में आग लगने की घटना के बाद की रिपोर्टिंग की है। डॉक्टरों को गिरफ़्तारी के बाद उनके साथ कैसा बर्ताव किया जा रहा है, ऐसी रिपोर्टिंग तो हज़ारों बार इस देश में हो चुकी है। फिर FIR क्यों ? क्या ये दमन नहीं है? क्या भारत देश का स्वाभिमान इतना छोटा होगा कि एक ख़बर लिखने पर FIR होगी? क्या आप दुनिया में सर उठा कर घूम सकेंगे कि आप ऐसे लोकतंत्र से आते हैं जहां ख़बर लिखने पर केस कर दिया जाता है?
दिव्य भास्कर की ख़बर का हिन्दी अनुवाद पढ़ें। एक पाठक ने भेजा है। त्रुटि हो सकती है। एक बार सोचिए कि क्या हो रहा है?
जवाब में दिव्य भास्कर ने आज के अखबार में अपने पत्रकारों का बचाव करते हुए बढ़िया जवाब दिया है। पढ़िए…
आप FIR करते रहिए, भास्कर सच को सच और झूठ को झूठ कहता रहेगा।
” हां, हम गुनहगार है”
हमने गुनाह किया है, साडे सत्रह बार गुनाह किया है। जिनके सिर पर कोराना के पांच पेशेंट्स के मौत का कलंक है ऐसे अस्पताल के संचालकों के लिए पुलिस स्टेशन को फाईव स्टार होटल में परिवर्तित करने के मिशन को हम बाहर लाए है ये हमने गुनाह किया है। हा, हम आपके गुनहगार है, क्योंकि आपके दिल में बड़े बड़े धनपतियों का हित है और हमें अस्पताल में जलकर भस्म हो गए उन पांच लोगों की चिंखे सुनाई देती है।
पुलिस ने एफआईआर में लिखा है कि उनकी गुप्त कामगीरी को हमारे चार रिपोर्टरों ने पब्लिक कर दी है। हा हम कबूल करते हैं कि हमारे रिपोर्टर पुलिस स्टेशन गए। आरोपी की तहकीकात करने के बदले वीआईपी सुविधाए दी जा रही थी वही गुप्त कामगिरी को उन्होंने अपनी नजर से देखा और उन्होंने इस कामगीरि को लोगों के सामने रखा। हकीकत में पुलिस ने अपना फ़र्ज़ निभाया होता तो हमें ये सब करना ही नहीं पड़ता। पुलिस एफआईआर में कहती हैं की आरोपियों की सुरक्षा के लिए हम फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी नहीं करने देंगे। हम भी यहीं कह रहे है की आपको गुनहगारों की चिंता सबसे ज्यादा है। जनता अपेक्षा कर रही है कि आरोपी अस्पताल संचालकों को सजा मिले, मृतकों को न्याय मिले। हमें आपका प्रजाद्रोह मंजूर नहीं है। एफआईआर में पुलिस ने लिखा है की रिपोर्टर ने बोला कि ‘ आप अपना काम कीजिए, हम हमारा काम करेंगे ।’ जो पुलिस गुनहगारों को बचाने के काम को अपना काम मानती है तो उसे एक्सपोज करना हमारा काम है इसलिए हम दोबारा यह कह रहे है कि आप अपना काम कीजिए, हम हमारा काम करेंगे। अस्पताल के अग्निकांड के गुनहगारों को जरा भी तकलीफ तो आपका दिल भर आता है, वैसे ही उन पांच मासूम लोगों के लिए हमारा दिल भर आता है। गुनहगारों को कैसे बचाना है उसे पुलिस उनका फ़र्ज़ समजती है तो हम ने उस फ़र्ज़ में बाधा डालने का गुनाह किया ही है। गुनहगारों को वीआईपी सुविधाए देना वह पुलिस का फ़र्ज़ है तो उन्हें सबके सामने लाना और छापना हमारे फ़र्ज़ में आता है। हमारा फ़र्ज़ आपके फ़र्ज़ के आड़े आएगा ही।
आपके पास आईपीसी की बहुत सारी कलमों का हथियार है, लेकिन हमारे पास तो हाथ में एक ही कलम है, उसका ही सहारा है। हमारी कलम आपकी कलम की न कभी मोहताज थी न कभी रहेगी। हमारी कलम न कभी आपके सामने झुकी है, न कभी झुकेगी।
(ये शब्द दिव्य भास्कर के स्टेट एडिटर देवेंद्र भटनागर के है।)