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आयोजन

विद्यालय बंद न करने देने के लिए आंदोलनरत दिव्यांग छात्रों को समर्थन की जरूरत है

भास्कर गुहा नियोगी-

दो शब्द इनके हक में बोलिए-लिखिए…

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बनारस की एक सड़क से पिछले कई दिनों से आवाज आ रही है “सरकार हमको पढ़ने दो देश को आगे बढ़ने दो”.

कौन लोग हैं ये जिनसे शिक्षा का अधिकार छीन लिया गया है?

जानता हूं, आपकी दिलचस्पी इसमें नहीं है- कोई पढ़ें या न पढ़ें, आपसे क्या मतलब. कोरोना काल हो या न हो, आपका खुद का बच्चा तो आनलाइन पढ़ रहा है.

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लेकिन मतलब तो आपको रखना होगा. कल ऐसा भी हो सकता है कि फरमान जारी हो कि पढ़ाई सिर्फ उन चुनिंदा लोगों के बच्चों के लिए होगी जिनके पास तयशुदा एक मोटा बैंक बैलेंस होगा. बाकी के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद.

ये तो भविष्य की बात है. पर इसके लक्षण वर्तमान में दिखने लगे हैं.

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बनारस में गिरजाघर से लंका जाने वाली सिंधी सड़क के मध्यान लबे रोड स्थित हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय के दृष्टिहीन छात्र अपने बंद किए गए स्कूल को खोलने की पहली और आखिरी मांग के साथ पिछले 19 दिनों से धरने पर हैं.

वो कह रहे हैं कि हमें शिक्षा चाहिए. जवाब में सन्नाटा छाया है. दृष्टिहीन छात्र बोल रहे हैं लेकिन शासन से लेकर प्रशासन यहां तक कि शहर के विपक्षी दल भी चुप हैं. जैसे तय हो गया है ये वोट बैंक नहीं हैं इसलिए इनके मुद्दे पर न बोलना है न कुछ करना है. ज्यादा शोर मचायेंगे तो किसी दिन देर रात लठिया के किनारे कर दिए जायेंगे.

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इनको दिव्यांग नाम से अलंकृत करने वाले इस शहर के सांसद देश के प्रधानमंत्री चुप हैं. उनका अनुसरण करने वाले इस शहर से प्रदेश सरकार में तीन मंत्री हैं जो चुप हैं. विपक्ष चुप है. इनका पक्ष सुनना जैसे अपराध है.

जायज मुद्दों पर सत्ता इसी तरह चुप रहती है. स्कूल के ट्रस्टी अपने धंधे में लगे हैं. फिर इनकी सुने कौन? स्मार्ट सिटी के ये दिव्यांग बच्चे शिक्षा चाहते हैं. इनके पास इल्म की रोशनी के अलावा दूसरा कोई जरिया नहीं जिससे इनका मुस्तकबिल रौशन हो.

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इसलिए इनकी आवाज बनिए. इनके हक में दो लाइन ही सही लिखिए जरूर. आप भी सरकार से मांग कीजिए, इनके स्कूल को खोला जाए. फेसबुक की खिड़की पर अपना नहीं, इनका चेहरा दिखाईए. एक बार बोलिये- शिक्षा सबका हक है सबके लिए है…

प्लीज, लिखिए, इनके लिए, इनके हक में।

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