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सियासत

मैं नूर बनके ज़माने में फैल जाऊँगा…

डॉ. सयैद एहतेशाम-उल-हुदा

दीयों की हवा में उछालते रहना,
गुलों के रंग पे तेज़ाब डालते रहना…
मैं नूर बनके ज़माने में फैल जाऊँगा,
तुम आफ़ताब में कीड़े निकालते रहना….

2019 के अभी तक के चुनावी रुझानों ने ये साफ़ कर दिया कि 2014 का “मोदी-नामा” महज इत्तेफ़ाक या आंकड़ों का खेल नही था, सिर्फ परिवर्तन मात्र नही बल्कि वास्तव में देश की जनता ने जहां सत्तर प्रतिशत युवा है जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाई-भतीजा वाद की मानसिकता से निकल कर अपना और देश का भविष्य मोदी जी के हाथों में सौपना बेहतर समझा।अब देश की जनता अपने अधिकारों के प्रति काफी हद तक जागरूक हो चुकी है इसलिये उसने देश को पूर्ण बहुमत की सरकार देने का मन पहले से बना लिया था।

कमोबेश तीस साल से अधिक समय बाद ये देखने को मिला कि “प्रो इनकंबेंसी” की इतनी ज़बर्दस्त सुनामी चल रही की विपक्ष चारों खाने चित होते नज़र आरहे हैं और NDA 2014 का प्रदर्शन दोहराने या उससे भी अच्छा करने की तरफ बढ़ रही है जिसका उदाहरण प. बंगाल है जहां बीजेपी पहली बार दहाई की संख्या पार करने जा रही है। इसमे कोई दो राय नही की दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी, नरेंद्र मोदी जी के रूप में सर्वमान्य विश्व विख्यात नेता, तेरह करोड़ कार्यकर्ता,कुशल संगठन शिल्पी, अदभुद मार्गदर्शन, हाई टेक चुनाव प्रबंधन, बूथ कार्यकर्ता से लेकर प्रथम पंक्ति के नेताओँ तक कि अपार मेहनत का नतीजा आज देश के सामने है।परंतु इसके इतर कुछ अतिआवश्यक पहलू हैं जिसकी और ध्यान आकर्षित कराना चाहूंगा जिसको इस प्रचंड विजय की ओर बढ़ रही बीजेपी में नज़रंदाज़ नही किया जा सकता।
मेरठ से अपनी चुनावी रैली का शंखनाद करने के साथ ही मोदी जी ने पूरे चुनावी समर में 200 से ज़्यादा रैलियां की, चार करोड़ देश वासियों से सीधा संवाद स्थापित किया और प्रत्येक मंच पर विपक्ष को बिल्कुल नज़रंदाज़ कर दिया।

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अपने 45-50 min के संबोधन में 40 min अपने पांच वर्ष के कार्यकाल की बात की और 5min में विपक्ष को समेट दिया। जबकि विपक्ष के पास मोदी जी को अपशब्द बोलने के अलावा कोई दूसरा चुनावी मुद्दा था ही नही और बबबुआ-बुआ का “मोदी-फोबिया” की वजह से बना गठबंधन चुनाव आते आते जनता की नज़र में अपना कोई स्पष्ट राजनैतिक संदेश नही छोड़ पाया और “दिल मिलें या न मिलें दल मिलाते रहिये” से ज़्यादा अपनी छाप छोड़ने में विफल रहा।दरअसल विपक्ष “मोदी-फोबिया” से इतना भयभीत था कि हर चुनावी सभा मे मोदी जी के खिलाफ कहे गए एक-एक अपशब्द जिसने देश वासियों के लिये “मोदी-मोहब्बत”की एक ऐसी लहर पैदा कर दी जिसमे विपक्ष ख़ुद बह गया। फिलहाल के रुझान तो येही बयाँ कर रहे हैं।

इस पूरे चुनाव में मेरा लगभग हर मुस्लिम बाहुल्य लोकसभा में जाना हुआ पार्टी का एक मुस्लिम कार्यकर्ता होने के नाते प्रचारक की भूमिका में शुरू से अंत तक मैं मुस्लिम वोटर्स की नब्ज़ टटोलने में लगा रहा और बहुत छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं करके बीजेपी के प्रीति उनकी सोच बदलने का प्रयास करता रहा।यदि मैं मुस्लिम वोटर्स की उत्तर-प्रदेश के परिपेक्ष्य में बात करूं तो ये देश मे पहली बार होने जा रहा है की मोदी जी को लेकर एक आम मुसलमान के भीतर अंडर करंट था मुस्लिम वोट अंत तक बहुत ख़ामोश रहा औऱ पोलिंग वाले दिन सभी “धार्मिक माफियाओं” की अपीलों को ख़ारिज करते हुए “स्वम्भू कौमी रहनुमाओं” की तक़रीरों को पैरों तले रौंदेते हुए मोदी जी के हाथों में अपने आने वाली नस्लों का भविष्य बहुत खामोशी से सौप आया। हालांकि अभी आंकड़े आने बाक़ी हैं और थोड़ा बहुत ऊपर नीचे भी हो सकता है फिर भी जहां तक मेरा अनुमान है देश के इतिहास में पहली बार 15-20% मुस्लिम वोट बीजेपी को पड़ने जा रहा है इस बार।उत्तर-प्रदेश का 2.5% शिया वोट को अगर बीजेपी का मान भी लिया जाए तो बाक़ी का 18% सुन्नी वोट मठाधीशों के मुँह से निवाला छीनने जैसा है।इससे एक बात तो साफ हो गयी कि अब मुस्लिम वोट किसी “धार्मिक माफिया” की बपौती नही रहा और तीन तलाक़ जैसे विषय पर मुसलमानों ने अंदरखाने बीजेपी को वोट करके मोहर लगा दी।

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उत्तर-प्रदेश के लगभग सभी बड़े मदरसों के संचालकों,प्रबुद्ध वर्ग के लोगो, ख़ानक़ाहों, दरगाहों से मैं पिछले एक साल से लगातार संपर्क में था… निष्कर्ष यही निकला कि अभी तक उत्तर-प्रदेश की दिगर राजनैतिक पार्टियां मुसलमानों को बीजेपी का हौवा दिखा कर वोट की मलाई काट रही थीं यानी ब्लैकमेल कर, डरा कर वोट ले रहीं थीं जिसमें मुस्लिम “वोट-माफियाओं” का बहुत बड़ा योगदान था। परंतु पांच साल के मोदी जी के कार्यकाल में एक भी कोई ऐसा कार्य न होना जिससे मुसलमान भयभीत हो मुसलमानों में आत्मविश्वास पैदा कर गया और इस अंडर करंट को विपक्षी दल समझने में नाकाम रहे।मोदी जी हर सभा में 130 करोड़ देश वासियों के आव्हान कर रहे थे बस मुसलमान के लिए इतना काफ़ी था।पहले दो सालों में मोदी जी ने जितने मुस्लिम देशों का दौरा किया वो भारतीय मुसलमान के समझने के लिए पर्याप्त था कि ये शख्स वास्तव में “सबका साथ-सबका विकास” चाहता है।

उत्तर-प्रदेश में यदि गठबंधन की बात करें तो जो हवा शुरुआती दौर में बनी थी उसका गुब्बारा चुनाव आते-आते फूट गया और मुसलमान समझ गया कि नारों, भड़काऊ तक़रीरों से अपनी आने वाली नस्लों का मुस्तक़बिल महफूज़ नही किया जा सकता। दरअसल सामाजिक आधार पर मुसलमान कितना भी पिछड़ा क्यों न हो मगर उसकी सियासी सोच पांच सालों में विकसित हो चुकी थी।

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यदि मेरा अनुमान सही निकला और 15% सुन्नी मुस्लिम वोट भी बीजेपी को पड़ गया तो जान लीजिए ये मुसलमानों के भविष्य का देश की मुख्य धारा से जुड़ने का “टर्निंग पॉइंट” साबित होगा। धार्मिक दलालों, वोट माफियाओं से अब मुसलमान ने आज़ादी का मन बना लिया है और अब्दुल कलाम के पद चिन्हों पर चलकर देश को विश्व गुरु बनाने में अपनी भागीदारी सुनिश्ति करने को आतुर है। मुस्लिम महिलाओं और युवा जो बहुत ज़्यदा शिक्षित भी नही थे उनसे बात करके मुझे पहले चरण के चुनाव के बाद ही एहसास हो गया था अब मुस्लिम समाज ने खुद में परिवर्तन का मन बना लिया है। मौला अली का क़ौल है “जो क़ौम ख़ुद सुधार नही करना चाहती उनकी अल्लाह भी मदद नही करता”…मैँ अपने पिछले भी कई लेखों में कह चुका था कि मुसलमान वोटर्स सबको चौका देगा…और हुआ भी वोही… मैं अपने प्रदेश भर के साइलेंट समर्पित मुस्लिम वर्कर्स,युवाओं का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने मेरे चुनावी प्रबंधन को अमलीजामा पहनाने में रात दिन एक कर दिया जिन्होंने बिना लाइम लाइट में आये देश में तारीख लिख दी…यदि मेरा आंकलन सही साबित होता है और जिस प्रकार मेरी टीम ने गोपनीय तरीके से कार्य किया वो मेहनत वोटों के रूप में पूरी UP में तब्दील होती हैऔर 15% से ऊपर सुन्नी वोट बीजेपी के निकलता है तो ये मान कर चलिये की “आज़ाद” क़ौम की नई इबारत लिखने की शुरुआत हो चुकी है और “धार्मिक-माफियाओं” मुस्लिम वोटों के दलालों की दुकानों के शटर गिरने लगे हैं।
अब हुआ है नए भारत का उदय…इन्शा अल्लाह…

जय-हिंद

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डॉ. सयैद एहतेशाम-उल-हुदा
प्रगतिशील मुस्लिम सोशल रिफॉर्मिस्ट
प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक एवं वक्ता
भारतीय जनता पार्टी

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1 Comment

1 Comment

  1. Arun Pandey

    May 24, 2019 at 12:01 am

    सही आकलन किया आपने।

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