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सियासत

आतंकवादियों के साथ पकड़े गए डीएसपी देविंदर सिंह की कहानी की सच्चाई क्या है?

Nityanand Gayen : डीएसपी देविंदर सिंह को दो आतंकियों के साथ एक गाड़ी में पकड़ा गया! देविंदर सिंह को मोदी सरकार ने प्रेसिडेंट मेडल से सम्मानित किया था … अब गोदी मीडिया बतायेंगे कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता , क्योंकि देविंदर पकड़ा गया है ….

Ketan Mishra : अफ़ज़ल गुरु से जब पूछताछ की जा रही थी तो एक शख्स का नाम सामने आया था. जम्मू कश्मीर पुलिस के एक अफ़सर का नाम. देविंदर सिंह. अफ़ज़ल गुरु का कहना था कि देविंदर ने उसे फंसाया है. लेकिन इस बारे में किसी ने कोई संज्ञान नहीं लिया और पुलिस और बाकी जांच एजेंसियों ने देविंदर सिंह को किसी भी तरह से इन्वेस्टिगेट नहीं किया. अब, 11 जनवरी 2020 को वही देविंदर सिंह जो कि डिप्टी सुपरिंटेंन्डेंट ऑफ़ पुलिस हैं, श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर एक गाड़ी में मिले जिसमें उनके साथ हिज़बुल मुजाहिद्दीन के दो वांटेड आतंकी थे. उनके पास से गाड़ी में 2 एके-47 रायफ़ल मिलीं. गिरफ़्तारी के दौरान मौके पर मौजूद DIG अतुल गोयल ने देविंदर को कूट दिया. बाद में देविंदर सिंह के घर की जब तलाशी ली गई तो वहां से 1 एके-47 रायफ़ल और दो पिस्टल और मिलीं.

अफ़ज़ल गुरु ने बताया था कि साल 2000 में देविंदर ने उसे एक STF कैम्प में कई दिनों कैद रखा और टॉर्चर किया. फ़िर 2001 में देविंदर ने उसे 1 अनजान आदमी मोहम्मद को दिल्ली ले जाने और वहां उसे कमरा दिलाने के लिए कहा था. अफ़ज़ल गुरु ने शक ज़ाहिर किया था कि वो आदमी हिन्दुस्तानी नहीं था क्यूंकि वो कश्मीरी ठीक से नहीं बोल पा रहा था. लेकिन उसे मजबूर किया गया और उसे मोहम्मद को दिल्ली लाना पड़ा. मोहम्मद ने करोल बाग़ से एक कार ख़रीदी. अफ़ज़ल और मोहम्मद को लगातार देविंदर से फ़ोन कॉल्स आते रहते थे. यही वो कॉल्स थे जिनका ज़िक्र अफ़ज़ल गुरु ने किया था और कहा था कि कॉल रिकॉर्ड्स निकालें जाएं जो कि देविंदर के संसद पर हमले में शामिल होने का सबूत दे देंगे. लेकिन उन कॉल रिकॉर्ड्स की किसी ने भी सुध नहीं ली.

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2013 में अफ़ज़ल गुरु को फांसी पर लटका दिया गया था. 2019 में देविंदर सिंह को राष्ट्रपति के हाथों पुलिस मेडल मिला था. देविंदर सिंह ने 12 जनवरी से 4 दिन की छुट्टी ली हुई थी.

Prakash K Ray : सच शायद ही कभी शुद्ध होता है, सरल तो वह कभी नहीं होता. – ऑस्कर वाइल्ड (‘द इंपोर्टेंस ऑफ़ बीइंग अर्नेस्ट)

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जम्मू-कश्मीर में डीएसपी देविंदर सिंह के कथित आतंकियों के साथ पकड़े जाने की ख़बर आई है. इन आतंकियों को लश्कर और हिज़्बुल से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है. इस पुलिस अधिकारी के घर से कुछ ख़तरनाक हथियार भी मिले हैं, ऐसा रिपोर्ट में लिखा गया है. संसद हमले में शामिल होने के दोष में अदालत से मौत की सज़ा पाए अफ़ज़ल गुरु ने अपने वक़ील को लिखे पत्र में बताया था कि देविंदर सिंह उसे प्रताड़ित करता रहता था और एसटीएफ़ के अधिकारी और एसपीओ उससे पैसे की उगाही भी करते थे. गुरु ने यह भी लिखा था कि देविंदर सिंह ने ही उसे एक अनजान आदमी को दिल्ली पहुंचाने और कुछ लोगों को ठहराने का इंतज़ाम करने को कहा था. ख़ैर, इन बातों को जाँच या सुनवाई में संज्ञान नहीं लिया गया. पूरी प्रक्रिया में गुरु के आतंकी बनने की कहानी के लिए कोई जगह नहीं थी. ख़ैर, अफ़ज़ल गुरु को अदालत ने मौत की सज़ा दी और फ़रवरी, 2013 में उसे फ़ांसी दे दी गयी. …‘to satisfy the collective conscience of the people of India’…

साल 2001 के संसद भवन हमले के प्रकरण को मैं पहले दिन से ही एक विराट उपन्यास की तरह देखता हूँ. उस दिन कई कॉमरेडों के साथ संसद मार्ग पर प्रदर्शन की तैयारी थी. कारगिल की लड़ाई में जान देनेवाले सैनिकों के ताबूत की ख़रीद में घोटाले का मामला सामने आया था. तब महान समाजवादी जॉर्ज फ़र्नांडिस वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री हुआ करते थे. दिसंबर की उस तारीख़ को मेरा जन्मदिन भी होता है, सो कुछ रात की ख़ुमारी और कुछ अपने आलसीपन की वजह से मैं देर से सीधे जंतर-मंतर पहुँच गया. और वहाँ तो कुछ और ही चल रहा था…

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इस कहानी में दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह और इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा उल्लेखनीय किरदार रहे हैं. इनकी अगुवाई में ही इस केस की जाँच हुई थी. जाँच को बहुत तेज़ी से पूरी करने के लिए इनकी बहुत तारीफ़ भी हुई थी. सिंह के खाते में कई मुठभेड़ रहीं, सब-इंसपेक्टर से एसीपी बनने की यात्रा में उन्होंने उपलब्धियां बटोरीं और विवादों में भी रहे. मार्च, 2008 में गुड़गाँव में एक प्रॉपर्टी डीलर ने उनकी हत्या कार दी. उसी साल सितंबर में बाटला हाउस में आतंकियों से मुठभेड़ में शर्मा की मौत हो गयी. एक अन्य अहम किरदार दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यापक एसएआर गिलानी की पिछले साल दिल के दौरे से मौत हो गयी. गिलानी को अज्ञात हमलावरों ने फ़रवरी, 2004 में हमला किया था. निचली अदालत से फ़ांसी की सज़ा पाए गिलानी को बड़ी अदालतों ने संसद हमले में शामिल रहने के आरोपों से बरी कर दिया था. उसके बाद भी राजद्रोह आदि आरोपों में वे कुछ समय हिरासत में रहे थे.

बाद के सालों में बड़े अधिकारियों के हवाले से ख़बरें छपीं कि संसद का हमला सरकारी एजेंसियों ने करवाया था. कई लोगों ने ऐसी बातों को कॉन्सिपिरेसी थियरी कहा. जो भी हो, संसद हमले और उससे जुड़े किरदारों के बारे में कुछ भी साफ़ नहीं हो सका है. लगता है, संसद हमला मामला एक कभी न ख़त्म होनेवाली कहानी है. किरदारों का आना-जाना लगा रहेगा… सीरीज़ आगे बढ़ती रहेगी…

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मध्य-पूर्व के विभिन्न तबक़ों की आपसी हिंसा और तबाही के बारे में एक लेख में अब्बास बर्ज़ेगर ने बेहद मार्मिक पंक्ति लिखी है, कल से उसी के बारे में सोच रहा हूँ…

‘अंतिम संस्कार के समय हम सभी वही प्रार्थनाएँ करते हैं. दर्द का कोई बही नहीं होता. क्रांति में और युद्ध में हर किसी का सच वास्तविक होता है.’

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Kumud Singh : जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी देविंदर सिंह हिजबुल के दो आतंकियों के साथ पकड़े गए हैं। वे दोनों आतंकियों को दिल्ली लेकर आ रहे थे। देविंदर सिंह को बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पदक मिल चुका है। वे आतंकियों को दिल्ली लेकर क्यों आ रहे थे?

पहले भी कह चुका हूं, फिर कहूंगा कि जैसे-जैसे सरकार के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज़ होता जाएगा वैसे ये लोग गोधरा या पुलवामा जैसा कुछ करवाएंगे। किसी बस्ती में विस्फोट करवा देंगे या फिर सरकार के समर्थन में निकलने वाली किसी भगवा रैली पर। इस विस्फोट में निर्दोष मारे जाएंगे और फिर उसके ऊपर राजनीतिक रोटियां सरकार सेंक लेगी, नैरेटिव बदल देगी। इसलिए विरोध प्रदर्शनों को लेकर बेहद सतर्कता बरतने की जरूरत है। विस्फोट हो जाएगा तो कोई भी सरकार से सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी वाले सवाल नहीं कर पाएगा।

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Murari Tripathi : जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी देविंदर सिंह हिजबुल के दो आतंकियों के साथ पकड़े गए हैं। वे दोनों आतंकियों को दिल्ली लेकर आ रहे थे। देविंदर सिंह को बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पदक मिल चुका है। वे आतंकियों को दिल्ली लेकर क्यों आ रहे थे?

पहले भी कह चुका हूं, फिर कहूंगा कि जैसे-जैसे सरकार के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज़ होता जाएगा वैसे ये लोग गोधरा या पुलवामा जैसा कुछ करवाएंगे। किसी बस्ती में विस्फोट करवा देंगे या फिर सरकार के समर्थन में निकलने वाली किसी भगवा रैली पर। इस विस्फोट में निर्दोष मारे जाएंगे और फिर उसके ऊपर राजनीतिक रोटियां सरकार सेंक लेगी, नैरेटिव बदल देगी। इसलिए विरोध प्रदर्शनों को लेकर बेहद सतर्कता बरतने की जरूरत है। विस्फोट हो जाएगा तो कोई भी सरकार से सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी वाले सवाल नहीं कर पाएगा।

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Soumitra Roy : श्रीनगर एयरपोर्ट पर तैनात डीएसपी देविंदर सिंह को हिज़्बुल के 2 आतंकियों के साथ कार से जाते आज पकड़ा गया। आप जानते हैं कौन हैं वे 2 आतंकी? उनमें एक है नवीद बाबू। नवीद वही है, जिस पर दक्षिण कश्मीर में सेब के बागानों में काम करने वाले 11 गैर कश्मीरी मज़दूरों और ट्रक ड्राइवरों की हत्या का आरोप है। दूसरा आतंकी आसिफ है। अगस्त में केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने के बाद गैर-स्थानीय लोगों को कश्मीर से बाहर निकालने और कश्मीर के सेब उद्योग को निशाना बनाने के लिए हत्याओं की श्रृंखला को अंजाम दिया गया था।

देविंदर सिंह संसद हमले के दोषी अफजल गुरु द्वारा लिखे गए एक पत्र के बाद सुर्खियों में आ गए थे। 2013 में अफजल गुरु ने एक पत्र में दावा किया था कि देविन्द्र सिंह ने मुझे पकड़ लिया था और बहुत यातनाएं दी और मुझसे जबरदस्ती संसद पर हमला करने के लिए कहा था और दिल्ली में रहने की व्यवस्था का भी आश्वाशन दिया था। देविंदर सिंह 4 दिन की छुट्टी लेकर आतंकियों को लेकर दिल्ली क्यों जा रहा था? दिल्ली में चुनाव से पहले इस बड़े खुलासे का क्या मतलब है? याद रखें। अभी भी इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि पुलवामा हमले के लिए RDX कौन लेकर आया था?

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Anil Sinha : कश्मीर पुलिस के डीएसपी देविंदर सिंह की गद्दारी पर कोई राष्ट्रीय भावना नहीं उमड़ रही है। खबर एकाध वेब साइट और एनडीटीवी चैनल पर ही दिखाई दे रही है। कोई बहस नहीं , कोई चीख नहीं। दो खूंखार हिज्बुल कमांडरों को दिल्ली ले जा रहे इस बन्दे को राष्ट्रपति से मेडल भी मिल चूका है। गद्दार बताने के लिए वामपंथी, कांग्रेसी, समाजवादी या मुसलमान होना चाहिए, अन्यथा आपका सात खून माफ़। ये है नया लोकतंत्र और राष्ट्रवादी राजनीति का असली चेहरा!

Deepali Das : DSP देविंदर सिंह को टॉप हिजबुल कमांडर के साथ गिरफ्तार किया गया है. छापेमारी के बाद उनके घर से भी राइफल और हैंड ग्रनेड मिले हैं. ये वही देविंदर सिंह है जिसके बार में अफ़ज़ल गुरू ने अपने बयान और अपनी चिट्ठी में डिटेल्ड जानकारी दी थी कि कैसे दविंदर सिंह के इंस्ट्रक्शंस पर उसने पार्लियामेंट अटैक के लिए जरूरी लॉजिस्टिक मुहैया करवाई थी. अफ़ज़ल गुरु को तो फांसी दे दी गयी लेकिन पुलिस ने उस समय देविंदर सिंह पर इंवेस्टिगेशन करना भी जरूरी नहीं समझा. इनफैक्ट पिछले साल उसे राष्ट्रपति सम्मान भी दिया गया.

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ये दिल दहलाने वाली बात तो है कि क्या पार्लियामेंट अटैक में इस पुलिस अफसर की भी भूमिका थी, लेकिन इससे भी भयानक बात यह है कि राइफल्स से लैस, हिजबुल के दो आंतकियों के साथ DSP दविंदर सिंह अब दिल्ली क्यों आ रहे थे.

यह सब सोचते हुए आपको यह भी याद रखना चाहिए कि अभी दिल्ली चुनाव का ऐलान करते हुए इलेक्शन कमिश्नर ने चुनाव तारीख़ टल जाने की बात क्या वाकई यूँ ही कह दी थी? दविंदर सिंह का आतंकियों के साथ दिल्ली आने वाली बात के साथ हमें लंबे समय से चल रहे CAA-NRC के विरोध प्रदर्शनों को भी याद रखना चाहिए. ये चल रही लड़ाई को आख़िर किस तरफ मोड़ने के लिए दिल्ली की तरफ आ रहे थे.

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जरूरी सवाल यह भी है कि किसी आतंकी हमले के बाद जब एक आतंकी को लटका दिया जाता है तो क्या वाकई इसे इंसाफ कहा जा सकता है. उस हमले से जुड़े हुए और लोग या बिचौलियों की खोज कहाँ पर जाकर रोक दी जाती है?

कश्मीर में आतंकियों को पकड़ने वाले स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप का हिस्सा रह चुके पुलिस अफसर का खुद आतंकियों के साथ पकड़ा जाना हमें यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि कारवाई और सबूतों की खाल में कितना कुछ है जो आम जनता तक कभी नहीं पहुँच पाता और न ही इन सबके बीच पिसने वाले परिवारों को असल इंसाफ मिलता है.

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मैं सोचती हूं कि जिस देश में पुलिस पर या सेना की गतिविधियों पर सवाल उठाने वालों को गद्दार घोषित कर दिया जाता है. जहाँ सेना की वर्दी में वोट लूट लिए जाते हैं. दाढ़ी, नाम और नारों पर ही देशभक्त और देशद्रोह का सर्टिफिकेट बांट दिया जाता है. उस देश के असल गद्दारों को अपनी छाती चौड़ी कर घूमने में कितनी सहूलियत मिलती होगी.

सौजन्य : फेसबुक

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