Vivek Satya Mitram : कुछ दिन पहले देश के एक युवा केन्द्रीय मंत्री ने भरी सभा में नारे लगवाए थे — “देश के ग़द्दारों को, गोली मारो सालों को!”
और देखो- गोली मारनेवाला सामने भी आया और “ग़द्दार” को गोली भी मार दी।
चलो अब ताली पीटो, और सरकार के बचाव में पोस्ट लिखो क्योंकि जिसे गोली लगी वो तुम्हारा खून नहीं था!
और इंतज़ार करो जब सरेआम दोनों तरफ़ से ऐसे सिरफिरे निकलेंगे, और किसी दिन गोली उन्हें भी लगेगी जिनके लगने से तुम्हें फ़र्क पड़ेगा।
सीएए के नाम पर एक नाकारा सरकार तुम्हें असल मुद्दों से भटका चुकी है और तुम्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
लगे रहो, तुम्हारा भी नंबर आएगा!
Rakesh Kayasth : तर्क और तथ्य पर आधारित कुछ सवाल…. 1. अगर फेसबुक पर पहले से घोषणा करके जामिया की भीड़ पर योजनाबद्ध से गोली चलाने वाला लड़का दिमागी तौर पर अस्थिर है तो फिर सरेआम `गोली मारो सालो को’ का नारा उछालने वाला केंद्रीय मंत्री तौर पर किस तरह स्वस्थ है? अनुराग ठाकुर को मंत्री पद से हटाकर इलाज के लिए क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए?
- इधर गोली चली और उधर पुलिस हमलावार के उम्र का प्रमाणपत्र ले आई। इतने संगीन मामलों में अपराधी के वास्तविक उम्र निर्धारण के लिए मेडिकल टेस्ट किये जाते हैं। क्या पुलिस ने ऐसी कोई मंशा दिखाई है? हमलावार को बेदाग बचाने के लिए उम्र के साथ अब यह भी दलील दी जा रही है कि उसकी मानसिक हालत ठीक नहीं है। यह भी याद दिलाना ज़रूरी है कि बीजेपी शासित कर्नाटक में पुलिस ने दस साल से कम उम्र के कई बच्चों को प्रधानमंत्री के कथित अपमान वाला नाटक करने के आरोप में थाने में बिठाकर रखा और बाद में उनके स्कूल पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया।
- जो दिल्ली पुलिस हवा में पिस्तौल लहराते लड़के को रोकने के बदले धूप सेंक रही थी, वही दिल्ली पुलिस 30 जनवरी को शांतिपूर्ण ढंग से राजघाट की तरफ बढ़ रहे योगेंद्र यादव जैसे लोगों को हिरासत में ले रही थी। ये वही पुलिस है कि जिसने हॉस्टल और लाइब्रेरी तक में घुसकर छात्रों को पीटा था। पक्षपात के ऐसे अनगिनत घृणित उदाहरण आप रोज़ देख सकते हैं।
- बड़ी अदालत जनता से पूछती है `अगर प्रदर्शन ही करना है तो कोर्ट में क्यों आये हो’. अदालत सरकार से कभी यह नहीं पूछती कि अगर सरेआम गुंडागर्दी ही करनी है तो सिस्टम में क्यों आये हो।
- कहना दुखद है लेकिन मौजूदा सरकार ने पूरे सिस्टम को एक क्रिमिनल सिंडिकेट में बदल दिया है। विरोध में जो भी व्यक्ति खड़ा है, वह सरकार के साथ न्यायपालिका और मीडिया तक की दुश्मनी भी मोल ले रहा है।
- सिस्टम के क्रिमिनल सिंडिकेट में बदलने का नमूना स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा का मामला भी है। प्लेन में अर्णब गोस्वामी की ट्रोलिंग की घटना पर बहुत लोगों की तरह मुझे भी एतराज है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या अर्णब गोस्वामी की जगह ट्रोलिंग किसी ऐसे व्यक्ति की हुई होती जो सरकार समर्थक नहीं माना जाता है तो क्या तब भी कार्रवाई में ऐसी तत्परता दिखाई जाती।
इंडिगो एयर लाइन कुणाल कामरा बैन करे (हालांकि ये भी गलत है) तब भी समझ में आता है। सिविल एविएशन मिनिस्टर के इशारे पर दनादन बाकी एयर लाइन भी कामरा को बैन करने की घोषणा करने लगें तो इसका मतलब क्या समझा जाये? - मतलब बहुत साफ है। सरकार सारा कामकाज छोड़कर किसी अापराधिक गिरोह की तरह रात-दिन विरोधियों को ठिकाने लगाने के मौके ढूंढ रही है। सबसे ज्यादा बुरी बात यह है कि कानून की रक्षक न्यायपालिका भी इसमें मूक दर्शक या मौन समर्थक की भूमिका निभा रही है।
- जो लोग इस बात से खुश हैं और तालियाँ पीट रही हैं,उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि पूरे सिस्टम के अपराधीकरण के नतीजे किस कदर भयावह होंगे। आनेवाले दिनों में कोई भी सरकार इस फॉर्मूले का इस्तेमाल कर सकती है और लोकतंत्र में सरकारें बदलती रहती हैं।
Vijender Masijeevi : अगर आप नहीं देख सकते कि कैसे मोदी शाह की नफरत ने देश के कितने ही युवाओं को जॉम्बीज में बदल दिया है, वे चलते फिरते नफरती पुतले, लाश भर रह गए हैं उनमें विवेक नाम की चीज बची ही नहीं।
देखिए अपने दाएं बाएं- आपको रोजाना कितने ही ‘रामभक्त गोपाल’ मिलते हैं, उनके नाम मनोज, संजय, राजन विजय अजय कुछ भी हो सकते हैं लेकिन मोदी शाह की नफरत फैक्ट्रियों ने आपके इन दोस्तो, परिचितों, पड़ोसियों को ऐसे फटने के लिए आतुर बमों में बदल दिया है।
रंगा बिल्ला की राजनीति चाहती ही है कि वह आपके बच्चों को ऐसे रोबोट्स में बदल दे, अगर आप इस नफरत के खिलाफ खुद और खुलकर नहीं बोलेंगे तो तय है ये नफरत आपके परिवारों को लील लेगी, समाज और देश को भी। देश को बचाना है तो उसे रंगा बिल्ला से बचाओ, ये आपके बच्चों को नष्ट करना चाहते हैं।
पत्रकार विवेक सत्य मित्रम, राकेश कायस्थ और विजेंदर मसिजीवी की एफबी वॉल से.