‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता.’ जहां नारी का सम्मान होता है, पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं। इसी विचार की देश की संस्कृति है। केंद्र की मोदी सरकार भी महिलाओं के सम्मान और उनकी बराबरी की बात करती है। लेकिन मोदी सरकार के अधिकारी देश की संस्कृति और सरकार की सोच पर बट्टा लगाने का काम कर रहे हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय की मीडिया ईकाई है। यहां करीब 200 से ज्यादा मीडियाकर्मी कार्यरत है जिसमें करीब आधी संख्या महिलाओं की है। इस संस्थान का दुर्भाग्य रहा है कि यहां जितने भी अधिकारी आए उन्होंने अपने मन के मुताबिक संस्थान को चलाया। इस संस्थान के 10 साल बीत जाने बाद भी इस संस्थान का कोई चार्टर नहीं है। ना ही कोई लक्ष्य ना ही कोई उद्देश्य। समय-समय पर रिंग मास्टर के तौर पर अफसर आते हैं और उनके इशारे पर सारे लोग सर्कस के जनावर की तरह उनके इशारे पर नाचते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर के एक नए आए अधिकारी शक्ल सूरत से तो बेहद मासूम दिखते हैं लेकिन इनकी आत्मा में कोई जल्लाद बसा है। इनका बस चले तो ये कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स का खून चूस लें। ईएमएमसी आने के साथ ही इन्होंने अपनी लाल फीताशाही दिखानी शुरू कर दी। कर्मचारियों का पैसा कैसे काटा जाए, दिनभर इसी जुगाड़ में लगे रहते हैं। तरह-तरह के कर्मचारी विरोधी नियम थोपे गए और उनके छुट्टी के पैसे काट लिए गए।
उसके बाद उन्होंने संस्थान के मीडियाकर्मियों की मॉनिटरिंग शुरू कर दी। महिलाकर्मियों के हॉल में अलग से 2 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए। जबकि इन कमरों में 3 साल से 2 कैमरे लगे थे जो कर्मचारियों की मॉनिटरिंग के लिए काफी था। लेकिन दिनभर खाली बैठना उन्हें गंवारा नहीं था। कहा भी गया है खाली दिमाग शैतान का। तो दिनभर बैठकर महिलाओं की मॉनिटरिंग करते रहते हैं। संस्थान के महिलाकर्मियों की मॉनिटरिंग का जिम्मा कई लोगों को दे दिया गया।
संस्थान में पिछले कई महीने से वेतन देरी से आ रहा है। सभी सरकारी संस्थानों में पहली तारीख को ही वेतन आ जाता है लेकिन इस संस्थान में नहीं। वेतन में देरी ना हो इसके लिए सरकारी BAS सिस्टम को हटवाकर अटेंडंस का अलग से एक सिस्टम लगाया गया। लेकिन कहानी फिर से वही ढाक के तीन पात। वेतन में देरी के मुद्दे को लेकर महिलाकर्मियों ने अफसर से 4 मार्च को निवेदन किया कि वेतन समय से दिया जाए तो वो आग बबूला हो उठे।
पहले तो उन्होंने किसी से भी मिलने से मना कर दिया। उसके बाद लड़कियों से बारी-बारी से पूछने लगे कि आर यू मैरिड? आप मैरिड हैं तो आपको सैलरी की क्या जरूरूत है। आपके हसबैंड तो अच्छा कमाते ही हैं। और सैलरी नहीं आ रही है तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं। जब लड़कियों ने इसका विरोध किया तो अफसर साहब अपनी कुटिल मुस्कान छोड़ने लगे।
ये पहला वाकया नहीं है जब एडीजी ने संस्थान के महिलाकर्मियों से बदतमीजी की हो, ऐसा वो कई बार कर चुके हैं। संस्थान में क्रेच खोलने के निवेदन पर भी वो विवादस्पद बयान दे चुके हैं। संस्थान के कर्मचारी नौकरी जाने के डर से कुछ भी बोलने से डरते हैं। संस्थान में लोगों को 6 माह के कॉन्ट्रैक्ट पर ही नौकरी पर रखा जाता है। हर 6 महीने के बाद कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाया जाता है। इस डर से यहां के लोग वर्षों से शोषित हो रहे हैं।
संस्थान में काम करने वाले अधिकतर लोग मीडिया प्रोफेशनल हैं। लेकिन उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से लागू न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता। ना ही कोई चिकित्सा बीमा का लाभ उन्हें मिलता है। इस विषय पर अगर कोई बोलने की हिम्मत करता भी है तो वह संस्थान के रडार पर आ जाता है। संस्थान की तरफ से झूठ बोला जाता है कि फाइल मंत्रालय भेजा है। सरकारी काम में देरी होती है। ऐसा लगता है अफसर साहब को यहां के कर्मचारियों को परेशान करने में मजा आता है। केंद्र सरकार को फौरन ऐसे अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.