मैथिली एवं भोजपुरी नाट्य समारोह : ’एकादशी’ और ‘बबुआ गोबरधन’ नाटकों का मंचन

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नई दिल्ली : मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली ने दिनांक 19 एवं 20 सितम्बर, 2017 को मुक्तधारा सभागार, गोल मार्केट, नई दिल्ली में दो दिवसीय ’मैथिली एवं भोजपुरी नाट्य समारोह’ का आयोजन किया। अकादमी के उपाध्यक्ष कुमार संजॉय सिंह के सान्निध्य में हुए इस आयोजन में पहले दिन बारहमासा के कलाकारों ने श्री मुकेश झा के निर्देशन में श्री हरिमोहन झा कृत ’एकादशी’ नाटक की प्रस्तुति की। दूसरे दिन रंगश्री के कलाकारों ने श्री महेन्द्र प्रसाद सिंह कृत एवं निर्देशित ’बबुआ गोबरधन’ नाटक का मंच किया।  समारोह के पहले दिन बतौर मुख्य अतिथि पधारे श्री सुमन कुमार, उप-सचिव (ड्रामा), संगीत नाटक अकादमी ने कहा कि अकादमी पूरब की भाषाओं, साहित्य, संस्कति और कला के प्रचार-प्रसार के लिए प्रशंसनीय कार्य कर रही है और उम्मीद है इसके बहुत ही सार्थक परिणाम सामने आएंगे।

दूसरे दिन के मुख्य अतिथि श्री एन.के. सिंह ने भोजपुरी भाषा की महत्ता बताए हुए कहा कि बिहार से रोजगार की तलाश में लोगों ने पहले कलकत्ता व आसाम की तरफ जाना शुरू किया और फिर दिल्ली एवं अन्य राज्यों की तरफ। भिखारी ठाकुर के अवदान का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने भोजपुरी भाषा का प्रचार-प्रसार अपने नाटकों के माध्यम से किया और अपने नाटकों में वर्तमान समाज की विसंगतियों पर करारा प्रहार किया।

समारोह के समापन पर अकादमी के उपाध्यक्ष, श्री कुमार संजॉय सिंह ने कहा कि मैथिली का साहित्य हर क्षेत्र में इतना समृद्ध है कि उसे पूरब का साहित्यिक झरोखा कहा जा सकता है और भोजपुरी मंच का इतिहास इतना पुराना है कि बहुत लोगों को हैरत हो सकती है। भोजपुरी साहित्य के सभी अवयवों पर 35 वर्ष यानि पूरा जीवन झोंक देने वाले बाबू दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह ने इसे 11 वीं सदी के मध्य से जोड़ा है। यह ठीक वही समय है जब हिन्दी या हिन्दवी में कालिंजर महाराज नन्द ने महमूद गज़नी को हिन्दी की संभवतः पहली रचना, एक चिट्ठी  ’लुगात ए हिन्दवी’  भेजी थी और  इसके तुरंत बाद फ़ारसी कवि मोसाद सुलेमान ने पहला हिंदवी दीवान लिखा था। 

महान समाज सुधारक संत बाबा गोरक्षनाथ और भर्तृहरि, गोपनीचंद के  भक्तिगीतों को भोजपुरी मानें तो यह इसके साहित्य का भक्तिकाल है। इसके बाद सोरठी बृजभार, सोभानायक बंजारा, लोरिकायन जैसे वीर नायकों और अब बाबू वीर कुंवर सिंह  के गाथा गीतों का लंबा काल रहा। भक्ति गीतों और गीत गाथाओं के गायन में नाचते हुए भाव भंगिमा प्रदर्शन शुरू से होता रहा है। मैथिली कवि पंडित ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने भी अपने ग्रंथ वर्ण रत्नाकर में इस बात की चर्चा की है। दरअसल यह उस काल की मंचीय परंपरा थी। भोजपुरी मंच की यह प्राचीन परंपरा है जिसने इसे अब देश विदेश में मान दिलाया है। अकादमी पूरब की संस्कृति और साहित्य की महान परंपरा को लोगों तक पहुचाने में निरंतर प्रयासरत् है। अकादमी के सचिव डॉ.हरिसुमन बिष्ट ने सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि अकादमी नाट्योत्सव और कवि सम्मेलनों के आयोजन की संख्या बढ़ाने जा रही है।



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