न पप्पू बनें न फेंकू… आम चुनाव आ गए हैं. हम से उम्मीद की जाती है कि हम इस गणतंत्र के पर्व पर बढ़ चढ़ कर भाग लें और अपना मतदान करें. राजनीतिक दलों ने आपस में सीटों पर समझौता कर लिया है. प्रत्येक दल ने सीटों पर प्रत्याशी भी चुन लिया है. इस प्रक्रिया में आम आदमी यानि जनता जनार्दन से कुछ चर्चा नहीं की.हमारी कोई राय नहीं ली.लेकिन हम से उम्मीद की जाती है हम उनके उम्मीदवार को वोट दें.
लोकतंत्र में वोट देना एक महत्वपूर्ण कार्य है मगर आज की हालत में यह एक मजबूरी बन गया है. ऐसे में यह जरूरी है कि आप राजनीतिक दलों द्वारा न पप्पू बने और न मामू.अपने विवेक से काम लें. इस लिए आपके हित के लिए यह प्रेक्टिकल गाइड लिखी जा रही है :
आप एक वोट हैं : आप चुनाव के उम्मीदवार के लिए एक वोट हैं. आप के प्रति जो सम्मान दिखलाया जा रहा है. वह से वोट लेने के लिए है.वैसे आप को अपनी हैसियत मालूम ही है.
आप सब तरफ हैं : किसी को पता न लगने दें कि आप किसे वोट देंगे. सब की बात सुने. उत्तेजित न हों. सीधे और व्यक्तिगत सवाल न पूछें. वे आप से आपका वोट मांगने आए हैं न कि आपके सवालों के उत्तर देने के लिए आए हैं. सब से कहें कि उसे ही वोट देंगे.
पार्टी के सदस्य : प्रायः लोग अपने आप को पीढ़ियों से एक पार्टी का सदस्य बतलाते हैं.जो कि सच भी होता है.पार्टी के प्रति अपने इस जुड़ाव को दिखलाने के लिए वे पार्टी के बड़े नेताओं के साथ अपनी तस्वीरें दिखलाते हैं.ऐसे लोगों का पार्टी में कोई महत्व नहीं होता है. वास्तव में हर पार्टी का एक सदस्यता फार्म होता है.वह कुछ पैसे लेकर, उसे पार्टी का सदस्य बनाती है. सदस्य का सदस्यता नंबर होता है. बड़ी राजनीतिक पार्टियां तो अपने सदस्यों को फोटो सहित सदस्यता का कार्ड भी जारी करती हैं. आपके पास ऐसा कार्ड नहीं है तो उस पार्टी के अपनी सदस्य और समर्थक हैं उनकी ओर से नहीं हैं.
घर के ऊपर पार्टी का झंडा : जहां तक सम्भव हो अपने घर पर किसी पार्टी का झंडा न लगाएं. उस से आपके घर की पहचान होती है. ऐसे में आप किसी एक पार्टी के समर्थक और शेष कई पार्टी और लोगों के विरोधी बन जाते हैं. यदि झंडा लगाना मजबूरी ही बन जाए तो रात को झंडा उतार दें.डंडा लगा छोड़ दें. यदि आप किसी पार्टी के सदस्य हैं तो यह आपके लिए जरूरी और मजबूरी बन जाता है.
सभाओं में भाग लेना : राजनीतिक दल प्रचार के लिए नुक्कड़ सभाएं करते हैं.आप वहां अपनी ओर से , पार्टी नेताओं को सुनने जाते हैं तो यह अच्छी बात है.लेकिन सब लोग अपनी मर्जी से नहीं आते हैं कुछ अपने दोस्तों के कहने से आते हैं और कुछ को लाया जाता है. जिन्हें लाया जाता है उनके लिए आने जाने की व्यवस्था की जाती है और खाने का पैकिट दिया जाता है. ध्यान दें आपकी की गिनती लाये गए लोगों में न होने पाए.
जुलूस में भाग लेना : राजनीतिक पार्टियां अपना समर्थन और शक्ति प्रदर्शन करने के लिए शहर के मुख्य मार्गों और बाजारों से जलूस निकालते हैं. इन जलूसों में पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक भाग लेते हैं.बड़े नेता वाहन पर सवार होते हैं.समर्थक उनके आगे और पीछे चलते हैं. इस जलूस में आम जनता की भागीदार नहीं होती है. इसलिए निश्चित कर लें कि आप किस हैसियत से इस में भाग ले रहे हैं.यदि जलूस में भाग लेने वाले के लिए जेब खर्च और खाने कर प्रबंध किया गया है.तो उसे सम्बन्धित व्यक्ति से ले लें. मामू न बनें.
बीच में चलें : प्रायः इन जुलूसों में हिंसा की सम्भावना भी होती है. इन जुलूसों का संचालक प्रायः सबसे पीछे के वाहन में होता है. वह वहां से सब पर नजर रखता है. इन जुलूसों का विरोध तो सामने से होता है. किन्तु हिंसक हमला प्रायः पीछे या साइड से होता है. ऐसे में सबसे सही उपाय घटना स्थल से भाग लेना होता है. ठेके पर लाए लोगों की कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है.
मोटर साइकिल जुलूस : शक्ति प्रदर्शन के लिए ऐसे जुलूस ऐसे आम हैं. मोटर साइकिल पर पार्टी का झन्डा लगा होता है.इसमें भाग लेने वाला कोई भी सवार हेलमेट नहीं पहनता है. मोटर साइकिल की पीछे बैठा हुआ आदमी झंडा लहराता हुआ चलता है जिस से मोटर साइकिल अपने लिए और सड़क पर चल रहे दूसरे लोगों के लिए खतरा बन जाती है. अपने घर के नौजवान लोगों को ऐसे असुरक्षित मोटर साइकिल जलूस में भाग लेने से रोकें. ऐसे जलूस में भाग लेने के लेने के पार्टी के लोग एक कूपन देते हैं.जिसके बदले पेट्रोल पम्प से तीन या चार लीटर पेट्रोल मुफ्त भरवाया जा सकता है. नौजवान समझते हैं कि थोड़ी देर जुलुस के साथ घुमने के बाद कट लेंगें. लेकिन यह सम्भव नहीं होता है. इस के अलावा जुलूस में भाग लेने पर जेब खर्च और खाने का पैकेट जुलूस खत्म होने पर ही मिलता है. इस लालच से बचें.
उधारी से बचें : यदि आप को कोई दुकान है जिस से आप चुनाव के लिए गाड़ी , दरी , टेंट , माइक इत्यादि किराये पर देते हैं तो अपना किराया एडवांस में वसूल लें. यदि उम्मीदवार चुनाव हार गया तो उस के पास आपको देने के लिए पैसे नहीं होंगे और यदि जीत गया तो आप उस से अपनी रकम वसूल नहीं पायेंगे. अतः सलाह है अगर राज नैतिक पार्टी को समान देना ही पड़ जाये तो उसका डेबिट नोट बना कर पावती ले लें. इस तरह से यदि किराया नहीं भी मिला तो अपना सामान तो वापस मिल जाने की संभावना रहेगी. और आप पप्पू बनने से बच जायेंगे.
शराब को न कहें : जीवन में शराब को न कहना मुश्किल है और मुफ्त की शराब को न कहना तो और भी मुश्किल है.प्रायः शराब वोटिंग से एक या दो दिन पहले वितरित की जाती है और उन्हें ही दी जाती है जो पीते हैं और पार्टी के विश्वसनीय लोगों द्वारा ही वितरित की जाती है. अगर आप मुफ्त की शराब से अपने को नहीं रोक पा रहे हैं. तो अध्धे की मांग करें.वे पव्वा देंगे. आप दो की मांग करें. वो छिपा कर देंगे. कागज में लपेट कर देंगे. आप कागज हटा कर स्वीकार करें. जब शर्म छोड़ दी तो फिर क्या शर्मना क्या. बोतल लेने के बाद, बोतल की सील की जांच करें. अगर सील टूटी हुई है तो कदापि उसका सेवन न करें. मुफ्त शराब बंट रही है यह बात अपने दारू खोर दोस्त को भी बतला दें.जिस से वह भी बोतल ले सके. मिल कर सेवन करें. बेहतर होगा पीने से पहले , बोतल के लेबल की मोबाइल से फोटो ले लें.अनहोनी होने पर यह काम आएगा.अब इस बात पर विचार करें जो आदमी या पार्टी आपको दारु तो दे रही है मगर उसका आदमी आपके साथ बैठ कर दारु नहीं पी रहा है. तो वह पार्टी आपकी क्या इज्जत करेगी और आप का क्या काम करेगी (और बोतल फोड़ कर अपने को सम्मानित महसूस करें. मुफ्त की ही तो थी)
नकद राशि को न कहें : आपकी जेब में कोई पांच सौ का नोट मनुहार कर डाल दे तो क्या आप उसे मना कर देंगे. वह आप सीधे यह भी नहीं कहेगा कि आप को वोट देना है. जो महीने में तीन हजार कमाता हो उस के लिए इंकार करना मुश्किल होता है.आप का रेट कुछ ज्यादा हो सकता है. यहां तो पंद्रह लाख के वायदे पर ही लोगों ने वोट डाल दिए. उन्होंने कहा चुनावी जुमला था. आप पप्पू बन गए थे. आपको जितने भी नोट मिले हों देने वाले से कहें की कम हैं. आप का वोट अमूल्य है. नोट चलाने से पहले सौ बार जांच लें कि नोट असली हैं.प्रायः अवसर पर और इस तरह नकली नोट थमा दिए जाते हैं. नकली नोट चलाते समय पकड़े जाने पर आप बतला ही नहीं पायेंगे की यह नोट आप को कहां से मिला और देने वाला तो यह स्वीकार करने से रहा कि उसने आप को नकली नोट दिया है. अंत: नोट अस्वीकार करने में ही भलाई है.
किसी और का वोट कदापि न डालें : आप पोलिंग बूथ पर वोट डालने जाते हैं वहां जा कर पता चलता है कि आप का वोट तो कोई और डाल कर जा चुका है. तब आप रिटर्निंग ऑफिसर से शिकायत करते हैं.उसे समय कुछ लोग यह ताड़ जाते हैं कि आप किस पार्टी को वोट देने वाले हैं. वे आप को ललचाते हैं कि आप किसी और का वोट डाल दो. वे विश्वास दिलाते हैं कि उनकी अन्दर सेटिंग है. जिस तरह आप का वोट कोई और डाल गया आप किसी और का वोट डाल रहे हैं. यदि आप सहमत होते हैं तो वे शायद किसी और का वोट आप से डलवाने में सफल भी हो जाएं.
ऐसा कर के आप उनके जाल में फंस सकते हैं. अब किसी भी कागजात के साथ यह प्रमाणित किया जा सकता है कि आप ने किसी और का वोट डाला है जो कि कानूनी अपराध है जिस ले लिए आप को जेल भी हो सकती है.
वे लोग जो आपको ऐसा अवसर दे रहे हैं आप को कभी भी ब्लैक मेल कर सकते हैं. अतः भलाई इसी में है अपनी शिकायत लिख कर दें.उसकी पावती ले लें. और जब करने को कुछ न हो तो चुनाव आयोग को पत्र लिख कर पूछें कि मुझे बतलाया जाये कि मेरा वोट किस ने डाला था. जाली वोट डालने पर पोलिंग बूथ के किस किस अधिकारी पर कार्रवाई की गई. बस किसी और को वोट डाल कर पप्पू न बनें. चुनाव की परीक्षा में पास होने के लिए यह संक्षिप्त प्रेक्टिकल गाइड है वैसे तो इस विषय पर ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं.आशा है आप पास होंगे. पप्पू या फेंकू नहीं बनेंगे.
लेखक अशोक उपाध्याय सरकारी सेवा रिटायर हैं. जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय दिल्ली में विजिटिंग फैकल्टी हैं. अपना ब्लॉग अभिव्यंजना के नाम से चलाते हैं. इन दिनों बतौर स्वतंत्र पत्रकार लेखन में सक्रिय हैं. इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.