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इलेक्टोरल बांड पर सख्ती से परेशान लोग दबाव बनाने में लगे, ‘खबर’ देखने लायक

संजय कुमार सिंह  

इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और उसके बाद हुए खुलासे से हिल गये लोगों ने मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर उनपर दबाव बनाने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री ने इससे संबंधित ट्वीट को कांग्रेस से जोड़कर रीट्वीट कर दिया और उसके बाद मामला बढ़ता गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तुरंत जवाब ट्वीट किया और प्रधानमंत्री से सवाल पूछे। मेरा मानना है कि एक तरफ जजों को ईनाम देने, हाल में पार्टी की सदस्यता और टिकट देने के बाद जब कहा जाना चाहिये कि इससे न्यायिक पक्षपात के संकेत जाते हैं तो कहा जा रहा है कि एक ‘विशेष ग्रुप’ न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एसबीआई ने जो सूचना देने के लिए समय मांगा वह सख्ती से तुरंत आ गई और सरकारी वसूली के कई मामले स्पष्ट रूप से सामने आये हैं।

ऐसे में मुख्य न्यायाधीश को दबाव में लेने की कोशिश में लिखी गई चिट्ठी से संबंधित सूचना को प्रधानमंत्री ने रीट्वीट किया है बदले में जवाब और आलोचना झेल रहे हैं। आज भी वे चिट्ठी लिखने वालों का समर्थन करते दिख रहे हैं जबकि जयराम रमेश ने इसे पाखंड कहा है। मीडिया यह सब ठीक से रिपोर्ट कर रहा होता तो यह स्थिति बनती ही नहीं। वैसे भी, जज लोया मामले में जो हुआ (हू किल्ड जज लोया, लेखक निरंजन टकले) उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले साधारण नहीं हैं। यहां मुझे जैन हवाला कांड के समय तबके मुख्य न्यायाधीश का यह कहना भी याद आता है कि उनपर भारी दबाव है। आपको याद होगा कि उस समय देश के 115 प्रमुख लोगों को अवैध रूप से धन देने का मामला था और अदालत के आदेश पर चार्जशीट दायर हुई थी। ऐसे में एक दिन मुख्य न्यायाधीश ने भरी अदालत में कहा था कि उनपर भारी दबाव है। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया और मामला अपनी परिणति तक भी नहीं पहुंचा लेकिन खबर खूब प्रमुखता से छपी थी।

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ऐसे समय में अब चिट्ठी लिखकर दबाव बनाना किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। प्रधानमंत्री को उसका समर्थन और भी आगे की चीज है। हालांकि मीडिया के लिए लाइन इसी से तय हुआ है और खबर को वो महत्व नहीं मिला है जो मिलना चाहिये था। आइये देखें आज के अखबारों ने इसे कैसे प्रस्तुत किया है। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे दो कॉलम में प्रधानमंत्री की फोटो के साथ छापा है। फ्लैग शीर्षक है, “600 अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में दस्तखत किये”। मुख्य शीर्षक है, “प्रधानमंत्री ने न्यायपालिका पर ‘दबाव बनाने के लिए कांग्रेस की विन्टेज संस्कृति’ पर हमला किया, खड़गे ने ‘आपके पाप’ से पलटवार किया। यहां पूरे मामले की चर्चा करने से बेहतर यह बताना है कि इंडियन एक्सप्रेस ने इसके साथ औऱ बिल्कुल बराबर में चार कॉलम में जो खबर लगाई है उसका शीर्षक है, “मुझे बदलाव का उत्साह दिखता है : शंख, फूल और सेल्फी के बीच पूर्व जज बंगाल की सड़क पर नेता के रूप में निकले।” इसके साथ की फोटो का कैप्शन है, भाजपा उम्मीदवार अभिजीत गंगोपाध्याय तुमलुक लोकसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

आप जानते हैं कि हाईकोर्ट के जज ने चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया और भाजपा ने टिकट दिया है। खड़गे के पलटवार में ‘आपके पाप’ इसके लिए भी है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को लीड के बराबर तीन कॉलम में छापा है पर  मल्लिकार्जुन खड़गे का जवाब चिट्ठी के अंश के बराबर में छपा है। शीर्षक है, प्रधानमनंत्री ने न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश पर वकीलों की चिट्ठी का समर्थन किया। खड़गे ने अपने जवाब में लिखा है (और टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापा है), आप भूल गये कि सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जज (2018 में) प्रेस कांफ्रेंस करने के लिए मजबूर हुए थे और लोकतंत्र के क्षरण के खिलाफ चेतावनी दी थी। उनमें से एक को आपकी सरकार ने बाद में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था। तो प्रतिबद्ध न्यायपालिका की जरूरत किसे है? अपने पापों के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाना बंद कीजिये। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसा बोलने की हिम्मत करना साधारण नहीं है। पर जब उन्होंने बोल दिया तो अखबारों में इसका उल्लेख करने में क्या डर? इसलिए ढूंढ़िये अखबारों में, तय कीजिये कि क्या हो रहा है। अपने अखबार आप देखिये।

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उदाहरण के रूप में अमर उजाला में जो छपा है वह मैं बता देता हूं। इसमें खड़गे के ट्वीट का उपरोक्त अंश कम से कम प्रमुखता से तो नहीं है। और मूल खबर के साथ नहीं है। यह अखबार के दूसरे पहले पन्ने पर लीड है। शीर्षक भी चापलूसी करता दिखता है। आप भी पढ़िये ,    

नवोदय टाइम्स ने आज चिट्ठी और चिट्ठी के समर्थक की बातें एक साथ आमने-सामने छापी है। चिट्ठी का असल विरो या जवाब मल्लिकार्जुन खड़गे का है जो नहीं है और पत्र की खास बातें हाइलाइट की गई हैं। मुख्य सूचना के अलावा जो बाके हैं उनमें यह सम्मानजनक चुप्पी बनाये रखने का समय नहीं है भी लिखा है। आगे दूसरी खबर का फ्लैग शीर्षक है, “वकीलों के पत्र पर प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर निशाना साधा”। मुख्य शीर्षक है, “दूसरों को धमकाना और धौंस दिखाना कांग्रेस की संस्कृति : पीएम मोदी”। (इंट्रो है) कहा – 5 दशक पहले ही प्रतिबद्ध न्यायपालिका का कांग्रेस ने किया था आह्वान। इसके साथ एक खबर का शीर्षक है, वकीलों के पत्र पर पीएम की टिप्पणी ‘पाखंड की पराकाष्ठा’ : रमेश।  

सुप्रीम कोर्ट पर जब खुलेआम दबाव डाला जा रहा है और अखबार खुल कर नहीं बता रहे हैं, समर्थन कर रहे हैं तो निचली अदालतों और सरकारी एजेंसियों की क्या बात की जाये। और इसीलिए स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया है और मुख्यमंत्री ने इस्तीफा नहीं देकर गिरफ्तार करने वालों का काम मुश्किल कर दिया है। भले इसे आर्थिक भ्रष्टाचार का मामला कहा जा रहा है पर मुख्यमंत्री ने कल अदालत में अपना पक्ष खुद रखकर साबित कर दिया है कि यह भारी राजनीतिक भ्रष्टाचार का मामला है। दूसरी घटनाओं से साबित होता है कि समाज का एक बड़ा वर्ग केंद्र की सरकार का समर्थन कर रहा है पर अखबारों में वह सब नहीं दिखता है। आज के अखबारों में ऐसी सबसे ज्यादा खबरें इंडियन एक्सप्रेस में हैं लेकिन उसपर आने से पहले जहां अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी लीड नहीं है उसकी खबरें और वहां क्या है वह भी।     

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आज अमर उजाला, द हिन्दू और द टेलीग्राफ को छोड़कर बाकी के मेरे चार अखबारों में दिल्ली के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी पहले पन्ने की लीड है। अमर उजाला में पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की खबर लीड है। हालांकि अखबार ने माफिया मुख्तार की मौत शीर्षक लगाया है। अरविन्द केजरीवाल से संबंधित खबर का भाग यहां सेकेंड लीड है। शीर्षक है, अमेरिका को भारत की फिर नसीहत, कहा – बयान अनुचित व अस्वीकार्य। उपशीर्षक है – विदेश मंत्रालय ने कहा, स्वतंत्र लोकतांत्रिक संस्थाओं को बाहरी प्रभावों से बचाने के लिए प्रतिबद्ध।

इसके साथ एक और खबर है, अमेरिकी राजनयिक को किया था तलब। वैसे तो पांच कॉलम में छपे इस शीर्षक से अमेरिका के मुकाबले भारत सरकार को बहुत मजबूत दिखाने की कोशिश की गई है और भारत जब अमेरिका को नसीहत ही दे रहा है तो मैं क्या कहूं। पर मामला यह है कि अमेरिकी राजनयिक को तलब किये जाने के बावजूद अमेरिका ने अपनी बात दोबारा रखी है। जो भी हो, विदेश मंत्रालय ने अमेरिका से जो कहा है वह जमीन पर कितना सच है इससे संबंधित खबरें भी हैं। वह इंडियन एक्सप्रेस में है उसपर भी चर्चा है। फिलहाल तो इतना ही कि कई जजों को ईनाम दिये गये हैं और अब (हाईकोर्ट के एक पूर्व) जज साहब चुनाव लड़ रहे हैं। 

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द हिन्दू में लीड का शीर्षक है, खास क्षेत्रों में आउटपुट का विकास बढ़कर फरवरी में 6.7 प्रतिशत हुआ। उपशीर्षक के अनुसार कोयला, प्राकृतिक गैस और सीमेंट उद्योग सबसे आगे हैं तीन महीने में सबसे ऊपर के स्तर पर हैं। हालांकि, उर्वरक का उत्पादन 9.5 प्रतिशत कम हुआ और यह मई 2021 से सबसे ज्यादा कमी है। अखबार ने इसके साथ एक छोटी सी खबर में यह भी बताया है कि चुनावों के मद्देनजर ज्यादा खर्च किये जाने से वित्तीय घाटा बढ़ गया है। केंद्र सरकार का वित्तीय घाटा जनवरी के 64 प्रतिशत से बढ़कर फरवरी में 86.5 प्रतिशत रहा। 2023-24 के शुरू के 11 महीनों में यह घाटा 15 लाख करोड़ रहा। इसका विवरण अंदर के पन्ने पर है लेकिन मूल बात आप समझ गये होंगे। यहां केजरीवाल की सेकेंड लीड है, शीर्षक है – हाईकोर्ट ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की अपील खारिज की।  

आप जानते हैं कि गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री का पद पर बने रहना उनकी गिरफ्तारी को संदेहास्पद बनाता है। कल अपनी बात से उन्होंने इसे साबित भी कर दिया। इसका ऑडियो सोशल मीडिया पर आसानी से मिल रहा है लेकिन अखबारों में उसकी चर्चा नहीं है। द टेलीग्राफ कोलकाता का अखबार है इसलिए दिल्ली का मामला उसमें पहले पन्ने पर नहीं है। लेकिन पहले पन्ने पर दिल्ली की ही खबरें हैं। द टेलीग्राफ की आज की लीड है, निजी विश्वविद्यालय में कोटा की मांग अशोक (विश्वविद्यालय) परिसर में जाति का हंगामा। सेकेंड लीड नई दिल्ली डेटलाइन से ही है। इसमें एक अध्ययन के हवाले से बताया गया है कि डायबिटीज की दवाइयों पर कंपनियां अत्यधिक मुनाफा कमा रही हैं। न सिर्फ दवाइयां बल्कि इंसुलिन लगाने वाली सुई (पेन) भी मौजूदा कीमत के मुकाबले बहुत कम में बेची जाये तो भी फायदा होगा।

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इस खबर के अनुसार कुछ इंसुलिन पेन की कीमत उनकी लागत आधारित कीमत के मुकाबले 2 से 28 गुना ज्यादा है। सिंगल कॉलम की एक खबर में बताया गया है कि दिल्ली के एक अपार्टमेंट में 29 मई 2013 को 25 साल की एक युवती की खून में सनी सड़ी-गली लाश मिली थी। पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला बताया था जबकि पहली नजर में यह ऐसा नहीं लग रहा था। दिल्ली हाईकोर्ट और दिल्ली पुलिस ने सीबीआई जांच की मांग खारिज कर दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया है। लड़की मणिपुर की रहने वाली थी औऱ यह आदेश उसके करीबी लोगों की अपील पर हुआ है। द टेलीग्राफ के पहले पन्ने की एक और खबर कांग्रेस के विज्ञापन पर है जो कल कई अखबारों में पहले पन्ने पर था। यह विज्ञापन टेलीग्राफ में तो नहीं था पर आज उसकी खबर है। ऐसा अब अखबारों में शायद ही देखने को मिले। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी पर अदालत में अपनी बात खुद रखी और यह साबित करने की कोशिश की कि उनके खिलाफ मामला है नहीं, बनाने की कोशिश की जा रही है और उसके लिए अभी तक क्या किया गया है। इसमें उन्हें बताया कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं है, कोई शिकायत नहीं है और कोई सबूत नहीं है। जांच चल रही है और जिसके आरोप पर गिरफ्तारी हुई है उसने इलेक्टोरल बांड के जरिये भाजपा को पैसे दिये हैं। उन्होंने बताया कि संबंधित लोगों ने पहले पूछताछ में नाम नहीं लिया तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई और नाम लेने के बाद क्या राहत मिली। अपने इन आरोपों के साथ उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या ऐसे आरोपों के लिए किसी निर्वाचित मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करना उचित है?

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मुझे लगता है कि यह बहुत गंभीर सवाल है। और वैसे ही है कि भाजपा को इलेक्टोरल बांड के जरिये पैसे मिले, लोगों को लाभ भी मिले तो क्या प्रधानमंत्री को गिरफ्तार कर लिया जायेगा? ईडी ने छापा मारा, भाजपा को पैसे गये और आगे कार्रवाई नहीं हुई तो क्या जांच नहीं होनी चाहिये। पर यह सब खबर नहीं है। आइये देखें खबर क्या है –

हिन्दुस्तान टाइम्स

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1. मुख्यमंत्री ने चुनावी बांड को आबकारी (नीति के मनी) ट्रेल से जोड़ा; गलत है: ईडी। इसके साथ दो और खबरें हैं। पहली गिरफ्तारी पर टिप्पणी करने के लिए अमेरिका को नसीहत और मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग करने वाली पीआईएल खाारिज।

टाइम्स ऑफ इंडिया

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2. केजरीवाल मामले में अमेरिकी टिप्पणी अस्वीकार्य : सरकार। इंट्रो है, दो दिनों में विदेश मंत्रालय की दूसरी मजबूत प्रतिक्रिया

द हिन्दू  

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3. केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग करने वाली याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया

द टेलीग्राफ (अंदर के पन्ने पर)

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4. अखबार ने राष्ट्रीय खबरों के अपने पन्ने पर सबसे ऊपर छह कॉलम के एक फ्लैग शीर्षक, “जज के समक्ष अपने बयान में मुख्यमंत्री ने राजनीतिक साजिश का आरोप लगाया है और भाजपा को पैसा मिलना बताया” के तहत दो कॉलम की दो खबरें और एक फोटो प्रकाशित की है। मुख्य खबर का शीर्षक है, ईडी ने फंसाया है : केजरीवाल ने अदालत से कहा। अमेरिका वाली खबर का शीर्षक है, अमेरिका उचित कानूनी प्रक्रिया के अपने आधार पर कायम है। इसके साथ आठवें कॉलम की खबर का शीर्षक है, मोदी के नए सहयोगी (प्रफुल पटेल) के खिलाफ सीबीआई मामला बंद।

नवोदय टाइम्स

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5. केजरीवाल की ईडी हिरासत एक तक बढ़ी। उपशीर्षक हैं, पूछा, क्या किसी सीएम को गिरफ्तार करने के लिए चार बयान काफी हैं आरोप लगाया, शरत रेड्डी ने भाजपा को 55 करोड़ का चंदा दिया।

अमर उजाला (दूसरे पहले पन्ने पर)

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6. केजरीवाल की ईडी हिरासत कोर्ट ने एक अप्रैल तक बढ़ाई। उपशीर्षक है, आबकारी नीति घोटाला : एजेंसी बोली गोलमोल जवाब दे रहे सीएम। इसके साथ की दूसरी खबरों के शीर्षक हैं, बर्खास्तगी की याचिका रद्द हाईकोर्ट का दखल से इनकार। डिजिटल उपकरण के नहीं बता रहे पासवर्ड। केजरीवाल ने खुद की पैरवी, कहा – आप को खत्म करने की कोशिश। सिसोदिया के तत्काली पीएस से हुआ सामना।    

इंडियन एक्सप्रेस

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7.दिल्ली आबकारी नीति  मामला हिरासत में रिमांड अवधि एक अप्रैल तक बढ़ाई गई (फ्लैग शीर्षक)। अदालत में अपने बचाव में केजरीवाल ने वायदा माफ गवाह द्वारा भाजपा को चुनावी बांड से चंदा दिया जाना बताया। इंट्रो है, मुख्यमंत्री ने कहा, ईडी अपने आरोपों से एक पर्दा बनाना चाहता है ताकि आप को कुचला जा सके और वसूली हो सके।

आज इंडियन एक्सप्रेस को मैंने जानबूझकर अंत में रखा है क्योंकि आज की दूसरी खबरें भी यहीं हैं और यही चर्चा करने लायक है। वकीलों की चिट्ठी के अलावा इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर और भी खबरें चर्चा करने लायक हैं। इनमें एक, प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ सीबीआई द्वारा मामला बंद कर दिये जाने की खबर है। वैसे तो यह दूसरे अखबारों में भी है लेकिन यहां शीर्षक सारी बातें कह देता है इसलिए महत्वपूर्ण है। फ्लैग शीर्षक है, एयर इंडिया – इंडियन एयरलाइंस का विलय। मुख्य शीर्षक है, एनडीए में शामिल होने के 8 महीने बाद सीबीआई ने प्रफुल पटेल के खिलाफ मामला बंद किया। अरविन्द केजरीवाल ने अपनी सफाई में जो कहा है उसे इस और ऐसे दूसरे तथ्यों से मिलाकर देखिये तो उसमें दम नजर आयेगा। खबर में बताया गया है कि एयर इंडिया – इंडियन एयरलाइंस के विलय के समय प्रफुल्ल पटेल केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री थे। इसमें मामला कब शुरू हुआ और उससे संबंधित एंटायर पॉलिटिकल साइंस की पूरी कहानी है। एक और गंभीर खबर यह है कि कंबोडिया में 5,000 भारतीय साइबर घोटाले करने के लिए मजबूर हैं। इनलोगों से भारतीयों की ठगी करवाई जा रही है और ये छह महीने में 500 करोड़ रुपये की ठगी का नामुमकिन कार्य मुमकिन कर चुके हैं।    कहने की जरूरत नहीं है कि प्रफुल्ल पटेल और अरविन्द केजरीवाल के मामले से साफ है कि केजरीवाल पर दबाव बनाते हुए उनकी गिरफ्तारी के बाद भाजपा फंस गई है। जमानत हो जाये तो मामला शांत हो लेकिन अदालतें राजनीतिक फैसले तो लेंगी नहीं और जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में जायेगा बहुत सारी दलीलें और तथ्य सार्वजनिक हो चुके होंगे। लोगों की राय बन गई होगी और फिर सुप्रीम कोर्ट ने अगर जमानत दी तो कारण बतायेगी वैसे ही जैसे राहुल गांधी के मामले में बताया था और तब संभव है नीचे की अदालतों की गलतियां (या दिल्ली के एलजी के खिलाफ मामले के आलोक में भेदभाव) भी शामिल हों। ऐसी स्थिति में 600 वकीलों का मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण इसके पीछे का श्रम और समर्थन है। लेकिन उसपर कोई खबर नहीं है क्योंकि ऐसी खबरें आजकल होती नहीं हैं। पहले के समय पता चल जाता कि पत्र पर दस्खत करने वालों में कौन इलेक्टोरल बांड खरीदने वाली किस कंपनी का वकील है या नहीं है और पत्र लिखने का कारण क्या हो सकता है या जिनके दस्तखत नहीं हैं वो क्यों नहीं हैं। आज के लिए इतना ही।

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