पीसीएफ : भ्रष्टाचार की कालिख
अनिल सिंह
कृषि एवं कुटीर उद्योगों से जुड़े लोगों को सुविधा देने के लिये स्थापित की गई सहकारी संस्था पीसीएफ से किसानों और व्यापारियों को भले ही लाभ नहीं मिल रहा हो, लेकिन भ्रष्टाचार पूरी तरह फलफूल रहा है। वर्ष 2012 में लाभ कमाने वाले पीसीएफ का जो कबाड़ा शिवपाल सिंह यादव ने प्रारंभ किया, उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम अब मुकुट बिहारी वर्मा के नेतृत्व में चल रहा है। पीसीएफ के पास प्रदेश के 60 फीसदी छोटे उद्योगों को कोयला आपूर्ति की करने की जिम्मेदारी है, जिससे विभाग के साथ सरकार को भी राजस्व मिलता है, लेकिन आश्चर्य है कि पीसीएफ लगातार तीसरे वित्तीय वर्ष में अपने कोटे में आवंटित कोयले की आपूर्ति नहीं कर पाया। और यह केवल इसलिये नहीं हो पाया कि मंत्रीजी की दिलचस्पी जनता को लाभ देने से ज्यादा अपने लाभ में है। विभागीय अधिकारी तो इस लूट की गंगा में पूरी तरफ गोता लगा रहे हैं।
प्रदेश के किसानों और छोटे व्यापारियों की सहूलियत के लिये बनाई गई संस्था प्रादेशिक को-आपरेटिव फेडरेशन यानी पीसीएफ से भ्रष्टाचार को सबसे ज्यादा सहूलियत मिल रही है। किसान और छोटे उद्यमियों को लाभ पहुंचाने की जगह यह संस्था खुद घाटे में है। सपा और शिवपाल सिंह यादव के कब्जे में आने के बाद से इस संस्था का पतन शुरू हुआ, जिसे भाजपा की सरकार में मुकुट बिहारी वर्मा आगे बढ़ा रहे हैं। भ्रष्टाचार एवं अराजकता के चलते पीसीएफ के साथ राज्य सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है।
उत्तर प्रदेश के लघु, मध्यम एवं सूक्ष्म औद्योगिक इकाइयों को रियायती दर पर कोयला आपूर्ति के लिए कोल इंडिया एवं केंद्र सरकार की नीतियों के तहत शासन ने पीसीएफ को राजकीय नोडल एजेंसी नामित किया था। इसके अंतर्गत पीसीएफ को अपने 17 क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से प्रदेश के लघु, मध्यम, सूक्ष्म इकाइयों के साथ कुटीर उद्योग में उपयोग होने वाले कोयले को रियायती दर पर उपलब्ध कराना था। पीसीएफ के पास प्रदेश के 60 फीसदी छोटे उद्योगों को कोयला आपूर्ति की जिम्मेदारी है। इसमें ईंट-भट्ठे से लगायत कोयले से संचालित होने वाली तमाम ईकाइयां शामिल हैं। वार्षिक 4200 मीट्रिक टन से कम खपत वाली ईकाइयों को इस कोयले की आपूर्ति की जाती है। इसकी बिक्री से पीसीएफ को लाभ होने के साथ राज्य सरकार को भी राजस्व मिलता है। परंतु आश्चर्य की बात है कि पीसीएफ लगातार तीसरे वित्तीय वर्ष में अपने कोटे में आवंटित कोयले की आपूर्ति नहीं कर पाया और मंत्री जी को इसकी खबर तक नहीं है।
दरअसल, इस सहकारी संस्था में जिस खेल को शिवपाल सिंह यादव और उनके लोगों ने शुरू किया था, उसी को आगे बढ़ाने के चक्कर में भाजपा सरकार के मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा भी जुट गये हैं। इस कोयले की आपूर्ति इसलिये नहीं हो पाई कि शिवपाल सिंह यादव के समय में चयनित की गई कंपनी उनके मन मुताबिक करने को तैयार नहीं थी। इसी का परिणाम रहा कि वित्तीय वर्ष 2017-18 में 10 लाख मीट्रिक टन कोयले की आपूर्ति कर 600 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन पीसीएफ मात्र 15,628 मीट्रिक टन कोयला ही प्रदेश में आपूर्ति कर पाया, जिससे उसे मात्र 7.70 करोड़ प्राप्त हुए। इसी तरह वित्तीय वर्ष 2018-19 में भी 10 लाख मीट्रिक टन कोयला आपूर्ति के जरिये 650 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य तय किया गया, लेकिन मात्र 12,257 मीट्रिक टन कोयले की आपूर्ति हो पाई। इससे पीसीएफ को मात्र 4.34 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए। वित्तीय वर्ष 2019-20 में 10 लाख मीट्रिक टन कोयले की आपूर्ति के जरिये 650 करोड़ रुपये जुटाने के लक्ष्य के सापेक्ष जून 2019 तक मात्र 260 मीट्रिक टन कोयले की आपूर्ति ही हो पाई थी, जिससे पीसीएफ को 19 लाख रुपये की मिल पाये हैं।
दरअसल, वर्ष 2012 में 14 करोड़ 42 लाख के लाभ में चलने वाले पीसीएफ को शिवपाल सिंह यादव ने नेस्तनाबूद कर दिया। शिवपाल सिंह यादव के कार्यकाल में वर्ष 2014 में पीसीएफ के हिस्से का कोयला क्रय करने के लिये कानपुर की कंपनी मेसर्स पवन कोल लिमिटेड को समन्वयक बनाया गया। भ्रष्टाचार कर ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में पवन कोल लिमिटेड ने सस्ते दर पर पत्थर वाले कोयले की खरीद कर डाली। इस असर यह हुआ कि इन निम्न गुणवत्ता वाले कोयले की बिक्री ही नहीं हो पाई और करोड़ों का कोयला डंप पड़ा रहा गया। इस डंप कोयले का किराया भी लगातार बकाया होता चला गया। इस कंपनी और पीसीएफ के अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की गई। कोर्ट के आदेश पर इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिये गये। इस जांच में पीसीएफ के अधिकारियों के साथ पवन कोल कंपनी के लोगों को दोषी मानकर कार्रवाई के आदेश कोर्ट ने दिये, जो आज भी चल रहे हैं।
पवन कोल लिमिटेड का मामला खत्म होने के बाद पीसीएफ ने वर्ष 2016 में ई-टेंडर के माध्यम से विज्ञान केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड नई दिल्ली को दो साल के लिये नया कोल समन्यवयक बना दिया। पीसीएफ एवं विज्ञान केमिकल्स के बीच 30 जुलाई 206 को 44 बिंदुओं पर अनुबंध हुआ। जब इस कंपनी ने काम शुरू किया तो कुछ दिनों बाद ही सरकार की तरफ से दबाव दिया जाने लगा कि पवन कोल लिमिटेड द्वारा खरीदे गये कोयले की बिक्री भी विज्ञान केमिकल्स करे। इस बीच जब मार्च 2017 में सपा की सरकार की जगह भाजपा की सरकार बनी तब विज्ञान केमिकल्स की दिक्कत और बढ़ गई। कुछ विभागीय अधिकारी नाम ना छापे जाने की शर्त पर बताते हैं कि नये मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को इस विभाग का प्रभार मिलने के बाद कोल समन्वयक कंपनी में अपने पुत्र को पार्टनरशिप दिलाना चाहते थे, लेकिन कंपनी प्रबंधन के इनकार के बाद कोयले को लेकर पीसीएफ ने उदासीनता बरतनी शुरू कर दी। इस बात में कितनी सच्चाई है तो जांच का विषय है, लेकिन पीसीएफ की कोयला आपूर्ति के पति उदासीनता का परिणाम यह हुआ कि छोटे एवं लघु उद्योगों को रियायती दर पर कोयला उपलब्ध नहीं हो पाया। ईंट भट्ठों तथा कोयले से चलने वाली अन्य ईकाइयों को बाजार दर पर महंगा कोयला खरीदना पड़ा, जिसका असर यह हुआ कि ईंट समेत तमाम चीजें महंगी हो गई। इस महंगाई का सीधा असर उत्तर प्रदेश की आम जनता पर पड़ा।
जानकारी के अनुसार वर्ष 2016-2018 के लिये पीसीएफ ने दिनांक 18 अक्टूबर 2016 को कोल इंडिया की सब्सिडरी कंपनी सीसीएल से एफएसए किया था। इसके तहत पीसीएफ को वर्ष 2016-17 एवं 2017-18 के लिये सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) तथा साऊथ ईस्टन कोल्डफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) से कुल 6 लाख 83 हजार मीट्रिक टन कोल क्रय का एफएसए करना था। परंतु पीसीएफ ने केवल सीसीएल से ही 4 लाख 78 हजार मीट्रिक टन का एफएसए किया, एसईसीएल से एफएसए ने नहीं किया। इतना ही नहीं कोल इंडिया द्वारा पीसीएफ को आवंटित कोटा 6 लाख 83 हजार मीट्रिक टन प्रति वर्ष की जगह मात्र 27,665.59 मीट्रिक टन कोयला ही सीसीएल से लाया गया। अंधेरगर्दी का आलम यह है कि राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना जारी होने तथा कोल इंडिया के आधिकारिक आवंटन के बावजूद पीसीएफ ने 2019–20 के लिये एफएसए नहीं किया था। एक अनुमान के मुताबिक पीसीएफ की इस लापरवाही के चलते प्रदेश सरकार को अरबों रुपये का नुकसान हुआ है। वर्ष 2016-17 में प्रवेश शुल्क, वैट एवं टीसीएस मिलाकर राज्य सरकार को 25 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ तथा 2017-18 में भी सीजीएसटी एवं एसजीएसटी तथा जीएसटी सेस के मद में 37 करोड़ से ज्यादा की क्षति हुई। इसके अतिरिक्त प्रदेश के वैध एवं अधिसूचित व्यवसाय को भी इन दो वित्तीय वर्षों में अनुमानत: 235 करोड़ रुपये की क्षति हुई है। इस संदर्भ में पूछे जाने पर सहकारिता विभाग के मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा कहते हैं कि इसको दिखवाते हैं। फिर दुबारा श्री वर्मा बताते हैं, ”कोयला आ रहा है। एक लाख मीट्रिक टन पहले भी आया था। 56 हजार मीट्रिक टन का डिस्पोज हो पाया। इसका कारण यह है कि दो क्राइटिरिया बना दी गई थी। एक क्राइटिरिया बना दी गई थी कि उसी डिस्ट्रिक में आपूर्ति हो। दूसरी डिस्ट्रिक में आपूर्ति के लिये एक टीम बनाई गई थी। कल टीम को शिथिल कर दी गई है कि टीम में भीड़ ना आये। एक अधिकारी आयेगा तो भी डिस्पोज हो जायेगा। इधर सर्वर डाउन था, जैसे होगा ऑनलाइन है सारा हो जायेगा।” पीसीएफ की बदहाली के संदर्भ में बात करने के लिये एमडी के सीयूजी नंबर पर कॉल किया गया तो उन्होंने फोन रिसीव करना भी मुनासिब नहीं समझा।
लक्ष्य से दूर पीसीएफ
कोयला ही नहीं, पीसीएफ में भ्रष्टाचार के चलते सारी व्यवसायिक उपलब्धियां प्रभावित हैं और घाटे में हैं। उर्वरक के हैंड़लिंग और व्यवसाय में भी पीसीएफ पिछले तीन वित्तीय वर्षों में अपने लक्ष्य के पास नहीं पहुंच पाया है। 2017-18, 2018-19 तथा 2019-20 में 51.50 लाख मीट्रिक टन यूरिया का हैंडलिंग कर क्रमश: 345.75, 371.50 तथा 371.50 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था, जिसके सापेक्ष क्रमश: मात्र 315.01, 343.06 तथा चालू वित्तीय वर्ष में जून 2019 तक मात्र 109.03 करोड़ रुपये ही जुटाये जा सके। ऐसा ही बुरा हाल प्रीपोजशनिंग योजना में भी हुआ। किसानों को बीज वितरण करने में भी पीसीएफ असफल रहा। औसतन लक्ष्य से 50 फीसदी से ज्यादा कम रह गया। गेहूं खरीद और धान खरीद में भी पीसीएफ सरकार की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया। गेहूं खरीद में जरूर 2018-19 में पीसीएफ लक्ष्य से आगे निकलने में सफल रहा। इसके अतिरिक्त धान एवं गेहूं दोनों की खरीद किसी भी वर्ष लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाया। इससे सरकार को भी घाटा हुआ। दलहन और तिलहन की खरीद का हाल भी कमोवेश ऐसा ही रहा।
बरबाद करने की होड़
किसान हितों के मद्देनजर पीसीएफ की स्थापना 11 जून 1943 को राजधानी लखनऊ में 30 लोगों के साथ मिलकर की गई थी। पीसीएफ ने 13600 रुपये की प्रारंभिक पूंजी से नीम की खली का व्यवसाय शुरू किया, जो हर साल के साथ आगे बढ़ता चला गया। यह सहकारी संस्था किसानों की सुविधाएं देने के साथ बीज, उर्वरक, चीनी, खाद्यान भंडारण और कोयले का व्यवसाय करके करोड़ों रूपए लाभ कमाने वाली संस्था बन गई। परंतु दलगत राजनीति के घुसते ही इस सहकारी संस्था के पतन की शुरुआत हो गई। अब भाजपा सरकार में इसे और बरबाद करने की होड़ मची हुई है। वर्ष 2014-15 में इस संस्था ने 5456.53 करोड़ रूपए का व्यवसाय किया, लेकिन शिवपाल सिंह यादव का राज शुरू होते ही इसमें गिरावट आनी शुरू हो गई। अब यह मुकुट बिहारी वर्मा के हाथों पतन की तरफ अग्रसर है। 2015-16 में पीसीएफ ने 9527.63 करोड़ रुपए का सालाना व्यवसाय का लक्ष्य तय किया था, लेकिन संस्था ने मात्र 5221.85 करोड़ का ही व्यवसाय कर पाई। उसके बाद साल 2016-17 में इसने 8555.71 करोड़ रुपए के व्यवसाय का वार्षिक लक्ष्य तय किया, लेकिन मात्र 1093.95 करोड़ रुपए के आंकड़े तक ही पहुंच पाई। 2017-18 में 8185.89 करोड़ के लक्ष्य के सापेक्ष 5064.79 तथा 2018-19 में 9091.29 करोड़ लक्ष्य के सापेक्ष 7407.73 करोड़ का व्यवसाय हो पाया। चालू वित्तीय वर्ष में 9660.51 करोड़ के लक्ष्य के सापेक्ष जून 2019 तक पीसीएफ ने 4043.52 करोड़ का व्यवसाय किया था। वर्ष 2010-11 में 14.42 करोड़ रुपए के लाभ कमाने वाली यह संस्था वर्तमान में करोड़ों के घाटे में चल रही है। पीसीएफ की तरफ से संचालित 481 किसान सेवा केन्द्रों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। घाटे के कारण 48 किसान सेवा केन्द्र बंद हो चुके हैं। ब्लॉक यूनियन पर कोई रोजगार नहीं चल रहा है। उत्तर प्रदेश की सहकारी संस्थाओं में पीसीएफ के पास आज भी बाकी की तुलना में सबसे ज्यादा संसाधन और कर्मचारी हैं। पीसीएफ के पास जहां प्रदेश के सभी जिलों में जमीने हैं, वहीं प्रदेश के सभी 75 जिलों में इसके कार्यालय हैं। पीसीएफ के पास 18 क्षेत्रीय कार्यालय तथा प्रदेश के बाहर मुंबई, कोलकाता, दिल्ली एवं धनबाद में इसके विपणन कार्यालय हैं। पीसीएफ के पास यूपी में 13 तथा मुंबई एक शीतगृह यानी कोल्ड स्टोरेज है, लेकिन पिछले तीन वित्तीय वर्षों से मात्र दो कोल्ड स्टोरेज ही संचालित हो पा रहा है, जिसमें मुंबई के वाशी तथा कानपुर के चौबेपुर में स्थापित कोल्ड स्टोरेज शमिल है। ये दोनों शीत गृह लीज पर चल रहे हैं। शेष 12 कोल्ड स्टोरेज लूट एवं भ्रष्टाचार के चलते बंद पड़े हैं।
भाजपा का कब्जा
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने से पहले सहकारिता समितियों में भाजपा हाशिये पर थी। लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव की जीत से उत्साहित भाजपा ने समाजवादी पार्टी एवं शिवपाल सिंह यादव के वर्चस्व वाले सहकारिता विभाग में अपने पांव जमाने का निर्णय लिया। भाजपा के प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल के नेतृत्व में भाजपा ने सहकारी समितियों में घुसने का रोडमैप तैयार किया तथा सफलतापूर्वक इसे अंजाम दिया। सुनील बंसल ने सहकारिता को एक तीर से दो निशाने साधने का माध्यम बनाया। अव्वल तो सहकारी समितियों में चुनाव के जरिये भाजपा कार्यकर्ताओं की घुसपैठ कराई, दूसरे जो कार्यकर्ता टिकट नहीं मिलने से नाराज चल रहे थे, उन्हें समायोजित करके उनकी नाराजगी भी दूर की। सहकारिता की जिन कमेटियों में सपा एवं शिवपाल सिंह यादव की तूती बोलती थी, उन समितियों एवं जिला इकाइयों में भाजपा ने अपना झंडा गाड़ दिया। सहकारी समितियों से सपाइयों को बाहर कर भाजपाइयों को सफलतापूर्वक स्थापित करने में सबसे बड़ रोल प्रदेश महामंत्री एवं सहकारिता प्रभारी विद्यासागर सोनकर ने निभाया।
नटवरलाल को संरक्षण
सहकारिता विभाग में फर्जीवाड़ों की लंबी फेहरिस्त है। सपा सरकार में तो विभाग के अफसरों ने खेल किया है, भाजपा सरकार में भी यह खेल और तेजी से चल रहा है। उदाहरण के तौर पर यूपी राज्य उपभोक्ता सहकारी संघ का मामला है। इस संघ को सपा सरकार के जाने के बाद ही खत्म कर दिया गया था, लेकिन पैसा पैदा करने वाले इस संघ का उपाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह पूरी हनक के साथ सहकारिता कार्यालय के पंचम तल पर बैठता था। इस संघ को इसलिये प्रश्रय दिया गया क्योंकि यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी। विभागीय अधिकारियों एवं संघ के पदाधिकारियों ने बेरोजगारों से करोड़ों रुपये ऐंठकर फर्जी नियुक्ति पत्र तक जारी कर डाले। लखनऊ मण्डल के उपायुक्त विनोद पटेल ने अपनी जांच में इस संस्था के खिलाफ एफआईआर कराये जाने का जिक्र किया, लेकिन सहकारिता विभाग के अफसरों ने कोई कार्रवाई नहीं की। हाल ही में राज्य उपभोक्ता सहकारी संघ का यह नटवरलाल उपाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह गोआ में सरकारी धन पर मौज-मस्ती करते अरेस्ट हुआ। सुनील यूपी सरकार का फर्जी राज्यमंत्री बनकर गोवा का सरकारी मेहमान बनकर अय्याशी कर रहा था। इस शातिर नटवरलाल की ठगी के मामले लखनऊ समेत कई शहरों से जुड़े हुए हैं। आरोप है कि चित्रकूट के अजय तिवारी को भाजपा का टिकट दिलाने के नाम पर भी इसने लम्बा-चोड़ा पैसा डकार रखा है। सूत्रों के मुताबिक सुनील ने इसी तरह के फर्जीवाड़ों से अकूत संपत्ति भी बनाई है, जिसमें गुडम्बा स्थित करोड़ों का आलीशान मकान भी शामिल है। सुनील के रिश्ते यूपी के कई अफसरों और सियासी रसूखदारों से होने के कारण योगी सरकार में भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। आरोप है कि इसे वर्तमान मंत्री का भी वरदहस्त प्राप्त है, इसीलिये इसके खिलाफ ना तो कार्रवाई हुई और ना ही कोई जांच हुई। बताया जा रहा है कि अगर सुनील के खिलाफ जांच हुई तो कई सहकारिता आयुक्तों की गर्दनें फंस जायेंगी।
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