ईटीवी भारत में अधिकारियों की तानाशाही डेस्क के साथ-साथ फील्ड में काम कर रहे रिपोर्टरों पर भी भारी पर रही है। शुरुआत से ही यहाँ रिपोर्टरों को मोजोकिट से खबरें भेजना अनिवार्य है। मोजोकिट से खबर भेजे जाने का नुकसान यह है कि इसमें विसुअल्स का ट्रांसफर नहीं हो पाता है। हर घटना के बाद रिपोर्टर को घटनास्थल पर भागकर पहुंचना होता है। इस दौरान खबर भेजने के साथ हैडलाइन, स्लग, की-वर्ड्स के साथ-साथ वॉयसओवर किया जाना अनिवार्य है।
ऐसा न करने पर उनकी ओडी कैंसल कर दी जाती है। इस हड़बड़ी में कई बार रिपोर्टर उपरोक्त नियमों का पालन करने में भूल कर देते हैं और उनकी ओडी कैंसल कर दी जाती है। कई महीनों से संस्थान में रिपोर्टरों के हर महीने हजारों रुपये काट दिए जा रहे हैं। काटने का कारण नियमों के अनुसार खबर न भेजा जाना कहा जाता है। दरअसल खबरों की मारामारी में रिपोर्टरों पर जल्द खबर भेजे जाने का दबाव होता है। इस दौरान जल्द खबर न भेजे जाने पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। कई बार बड़ी खबरों की फीड एएनआई से काट ली जाती है और जब तक रिपोर्टर स्लग, हैडलाइन, कीवर्ड्स, वॉयसओवर कर के भेजता है तब तक कई बार खबर लग चुकी होती है।
खबर किये जाने के दौरान उसमें दोनों पक्षों की बाईट के साथ अधिकारी की बाइट भी भेजनी होती है। कई बार अधिकारी मौजूद नहीं होते हैं या उनसे संपर्क नहीं हो पाता है। कई बार अधिकारी किसी और चैनल को बाइट दे चुके होने का हवाला देकर बाइट नहीं देते हैं। मगर मोजोकिट के कारण वे दूसरे चैनल में काम करने वाले साथियों से बाइट नहीं ले पाते। इसके अलावा कई बार अधिकारी नियमों का हवाला देकर बाइट देने से भी मना कर देते हैं।
ऐसी स्थिति में रिपोर्टर पीटूसी करके भेजता है ताकि उसकी खबर लग जाये मगर उसकी खबर नहीं लगाई जाती। इस कारण उसकी ओडी कैंसल हो जाती है। फील्ड में जॉब के कम अवसर हैं इसलिये रिपोर्टर मजबूरन जॉब छोड़ नहीं पाता और दस हजार से भी कम वेतन पाकर हर रोज खबरों के पीछे भागता रहता है। कई रिपोर्टरों की कमाई के अन्य स्रोत हैं मगर जिनकी कमाई के अन्य सोर्स नहीं, वे मजबूर होकर दलाली के पेशे में उतर जाते हैं। अधिकारी लाखों रुपए की सैलरी पाकर वातानुकूलित कमरे में बैठ हर महीने नए-नए नियम बनाते हैं। रिपोर्टर धूप, बारिश, सर्द मौसम में धूल झेलते हुए खबरें करते हैं। इधर उनकी ओडी कैंसल होती रहती है। वह पत्रकार दुनिया भर में हो रहे शोषण पर खबरें करता है मगर खुद के साथ हर दिन हो रहे शोषण को अपनी नियति मान कर चुपचाप सहता रहता है।
Comments on “ईटीवी भारत में काम करने वाले फील्ड रिपोर्टरों की पीड़ा कौन सुनेगा?”
बड़ी खुशी हुई यह खबर पढ़ कर, कि किसी ने तो फील्ड में काम कर रहे पत्रकारों के दर्द को तो समझा। कुछ संस्थान तो ऐसे हैं कि या तो पैसा देते नहीं या इतना कम देते हैं कि नरेगा का मज़दूर भी उनसे ज़्यादा महीने भर में कमा लेता है, ऊपर बैठे पत्रकारों के दिमाग में यह गलत फ़हमी है कि ज़िले का पत्रकार अपनी धाक से दलाली और ब्लैक मेल करके पैसा कमा लेता है, लेकिन सोंचने का विषय यह है कि इस गन्दे काम की उसको प्रेरणा कौन दे रहा है, फ्री में काम कराओगे तो इन्सान गलत रास्ते चुनेगा ही। आज ज़रूरत है ऊपर से लेकर नीचे तक बड़े पैमाने पर पत्रकारों के छटनी की, वर्ना दरक रहा लोकतंत्र का यह चौथा खम्बा किसी न किसी दिन गिर जाएगा, जो लोकतंत्र की बड़ी हानी होगी। ऊपर बैठे लोंगों के प्रति मेरे मन में कुंठा बहुत है और बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ लेकिन जगह की बाध्यता है।
ईटीवी भारत जैसी संस्थान में कार्य करना गर्व की बात है।जो अपने रिपोर्टरों को मान,सम्मान और सम्मानजनक मासिक वेतन देता है।
रही बात काम के दबाव की तो काम तो हर संस्थान लेता है अपने कर्मियों से ,जो काम ही नही करना चाहते ये उनके लिए तो मुश्किल भरा रास्ता है।
हाहाहाहाहा . भाई साहिब पहले पता करें फिर कमेंट करें. जितना शोषण ईटीवी भारत वाले करते है, वेह असहनीय है. केवल संस्था बड़ी होने से कुछ नहीं होता. कहीं भी काम करने वाले व्यक्ति को उसके मेहनताने से मतलब होता है न की कम्पनी की टर्न ओवर से …………….
काम से पीड़ा उन्हें होती है जिन्हें काम नहीं आता या फिर कामचोरी करते हैं, देश का इकलौता मीडिया संस्थान है ईटीवी जो कि फील्ड के 5 हजार से ज्यादा रिपोर्टरों को हर महीनें वेतन देकर ऑन रोल नौकरी दिया जबकि अधिकतर संस्थान तो स्ट्रिंगर बनाकर बिना पैसों के सिर्फ शोषण कर रहे हैं। मेरा मानना है कि कोई भी संस्थान बिना काम के पैसे तो नहीं देगा अगर काम नहीं करोगे तो फिर पैसे क्यों मिलेंगे।
जनाब ऐसा मात्र ईटीवी भारत के संधर्ब मैं ही क्यों वायरल हो रहा है. सो बेहतर है पहले वहां काम करने वालो की स्तिथि जान ले. फिर नौकरी छोड़ने वाले के लिए कमेंट करें कि उसे काम आता है या नहीं.