अपूर्व भारद्वाज-
आप बहुत दिनों से महसूस कर रहे होंगे कि मैं बहुत दिनों से फेसबुक पर कुछ नही लिख रहा हूँ या मेरी पोस्ट आपको नही दिखाई दे रही है क्योंकि मेरी पोस्ट की रिच को जुकरबर्ग जी का यह प्लेटफार्म दिनों दिन कम कर रहा है और यह सिर्फ मेरे साथ नही हो रहा है यह तमाम उन लोगो के साथ हो रहा है जो फेसबुक पर राजनीतिक पोस्ट करते थे पर अब सब कहीं खो से गये है या किसी और प्लेटफार्म पर शिफ्ट हो गए है तो क्या हम जैसे लेखको को यँहा लिखना बंद कर देना चाहिए!
मेरे लिए लिखना एक जीवन जैसा है जिस दिन कुछ पढ़ औऱ लिख ना लू वो दिन अधूरा सा लगता है फेसबुक वो प्लेटफार्म था जिसने मुझ जैसे कई लोगो को पहचान दी थी जिन्होंने आप जैसे दोस्तों ने सर आंखों पर बैठाया था फेसबुक से इतना प्रेम था कि कोरोना काल मे कभी कभी 15/16 घँटे इस पर एक्टिव रहता था पर अब लगता है इस प्लेटफार्म को छोड़ने का समय आ गया है पर मैं फेसबुक छोडूंगा लिखना नही…
हम जैसे बहुत से स्वतंत्र लेखकों ने अब तय किया है अब हम एक वेबसाइट बनायेगे ताकि लिखने औऱ पढ़ने का सिलसिला अनवरत जारी रहे है लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए स्वस्थ संवाद कितना जरूरी है वो आप सब जानते है इसलिए हम सब तय किया कि जब तक तोडेंगे तब तक छोड़ेंगे नही इसलिए जुकरु के भरोसे मत बैठिए क्योकि वो आपके भरोसे बैठा है।
वेबसाइट के बारे में विस्तार से यही बताएंगे तब तक एक बात समझ लिजिए फेसबुक हम से है हम फेसबुक से नही है मैं कम लिखा हूँ आप ज्यादा समझना।
गिरीश मालवीय-
आज आपसे दो बाते करने का मन है लम्बी चौड़ी भूमिका न बांधते हुए आपसे साफ़ साफ़ बात कहूंगा आप देख ही रहे है कि पिछले कुछ महीनों से आपकी हमारी फेसबुक रीच कैसे कम की जा रही है, जैसे ही आप पोस्ट डालते है लाईक बढ़ते है लेकिन उनकी रफ्तार अचानक से कम होने लगती है ऐसा लगता है कि कोई ब्रेकर सेट कर दिया गया है कि इससे ज्यादा लाइक नही दिए जाएंगे।
सीधी बात है कि लोगो को पोस्ट दिखाई ही नहीं जाएगी तो वे रिएक्शन देंगे कैसे ??? भले ही उन्होने आपको फर्स्ट सी पर रखा हो पर क्या दिखाना है क्या नही दिखाना है ये कंट्रोल तो अल्टीमेटली फेस बुक के पास ही रहता है ऐसा खासकर उन पोस्ट पर हो रहा है जिसमे किसी न किसी प्रकार से सरकार की आलोचना के स्वर निकल रहे हो।
कई सालों के फेसबुक के अनुभव से कह रहा हूं कि ऐसा पहली बार ही रहा है हालांकि पहले भी ऐसा होता था लेकिन उसका ड्यूरेशन कम रहता था थोड़े टाईम के बाद रीच पहले जेसे ही मिलने लगती थी।
वैसे कई लोग इस चीज का मजाक भी उड़ाते हैं कि पोस्ट में कम होती रीच का जिक्र बार बार कर लेखक फुटेज खा रहे हैं पर आप सोचिए कि हम लोग भला यहां क्यों लिखते है?
हम यहा इसलिए लिखते है कि ज्यादा से ज्यादा लोग हमारे विचारों को जानें हमे कोई पैसे तो मिल नही रहे हैं यहां लिखने से ??? कि लाइक कम आएंगे तो हमारी पेमेंट कम हो जाएगी !!!
हम लोग जो महसूस करते है वो लिख देते हैं हमे अच्छा लगता है जब उसे ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ते है अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और जब पोस्ट पर अच्छी मेहनत करने के बाद भी प्रतिक्रिया नहीं आती तो निराशा होना स्वाभाविक है।
अब इसका रास्ता क्या है ? दरअसल सच्चाई यह है कि ऐसे हालातों में अब फेस बुक पर आने का मन नहीं करता क्योंकि उसने तो तय कर लिया है कि स्वतन्त्र रुप से व्यक्त किए गए विचारो के लिए उसके पास कोई स्पेस नही है !……. तो फिर हमारे पास चारा क्या बच रहा है !
आप भी इस प्रश्न पर विचार कीजिएगा लेकिन मै यहां अपनी बात कर रहा हूं तो फेस बुक के इस ढर्रे को देखते हुए मैंने तय किया है कि मैं जल्द ही अपना एक नया न्यूज़ ब्लॉग एक नई वेबसाईट शुरु करने जा रहा हूं।
महेंद्र यादव-
कई मित्र अक्सर फेसबुक पर कुछ खास लोगों की पोस्टों की रीच कम कर दिए जाने की बात की बात कहते रहते हैं. CP Rai और Girish Malviya ji ने भी हाल ही में यह मुद्दा उठाया है। वैसे तो हम सब यह महसूस करते ही रहे हैं।
बहरहाल यहां मैं अपनी दो पोस्टों का हवाला और स्क्रीन शॉट दे रहा हूं। दोनों टमाटरों के दामों पर हैं। पहली पोस्ट में मोदी का जिक्र किया गया और उनकी फोटो दी। पोस्ट करने के पांच मिनट बाद उसकी रीच एकदम रुक गई। तब मैंने उसी पोस्ट से मोदी का जिक्र और उनकी फोटो हटाकर दोबारा पोस्ट किया तो उसके लाइक्स 600 पार कर गए।
अब एकदम से समझ में आ जाएगा कि कौन सी पोस्टों की रीच रोकी जा रही है।