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वेब-सिनेमा

फेमिली मैन 2 : संतुलन साधती वेब सीरीज दर्शकों को निराश नहीं करती!

रजनीश जे जैन-

नब्बे के दशक में युवा हो चुके अधिकांश लोगों की स्मृति में आतंकवादी संगठन तमिल टाइगर और श्रीलंका सरकार के मध्य चल रहे विवाद की कहानियाँ जेहन के किसी कोने में अब भी अलसा रही होगी ! दुर्दांत लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन और भारत की राजनीति को उथल पुथल कर देने वाले उस समय को आसानी से विस्मृत नहीं किया जा सकता है। हरेक आतंकवादी संगठन की अपनी एक विचार प्रक्रिया होती है जिसमे उनका दृष्टिकोण ‘ जो है सही है ! के छोटे से दायरे में होते हुए भी लंबे समय पर अपने निशान छोड़ जाता है। फिल्मे और टीवी सीरीज अक्सर इस तरह की घटनाओ में अपने लिए कहानियाँ तलाश लेते है।

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बहु प्रतिक्षित ‘ फैमिली मेन ‘ वेब सीरीज के दूसरे सीजन का प्रसारण अमेजन प्राइम पर हो गया है। पहले सीजन में जहाँ पाकिस्तान पोषित आतंकवादी मुख्य खल पात्र थे वही इस दूसरे भाग में उन्हें तमिल विद्रोहियों के साथ कदमताल करते देखा जा सकता है।

फेमेली मेन के नायक मनोज बाजपाई पहले सीजन की तरह ही दूसरे भाग में भी अपने किरदार को दिलचस्प बनाये रहने में सफल रहे है। इधर उधर बिखरे पारिवारिक संबंधों और टूटने की कगार पर पहुँच चुके वैवाहिक जीवन के साथ नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी के अफसर की दुरूह जिम्मेदारियों को साधने की कोशिश करते व्यक्ति की मनोदशा को उन्होंने बखूबी निभाया है।

इसी तरह की प्रशंसा की हकदार मुख्य खलनायिका सामंथा अक्केनि का पात्र ‘ राजी’ है ! हिंदी दर्शकों के लिए यह नाम एकदम अनजाना है। तमिल तेलुगु सिनेमा की सुंदर और प्रतिभाशाली यह अभिनेत्री अपने किरदार में कुछ इस तरह घुलमिल गई है कि दर्शक को खुखार मानव बम ही नजर आती है। वेब सीरीज का ट्रेलर देखने के बाद उनके प्रशंसकों का गुस्सा फट पड़ा था ! वे इस बात से व्यथित थे कि ‘ फेमिली मेन ‘ ने उनकी सुंदर अभिनेत्री के रूप का कबाड़ा कर दिया है !

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इस संवेदनशील समय में जब सरकारी ‘ सेंसर बोर्ड ‘ के समानांतर कई सारे सामाजिक सेंसर बोर्ड काम कर रहे हो तो निर्माता निर्देशक के लिए अपने प्रोजेक्ट को बगैर विवादित हुए मुकम्मल करना एक चुनौती से कम नहीं है। आतंकवाद जिस कथानक के केंद्र में हो वहाँ जिओपॉलिटिक्स और उसके प्रभावों को अलग नहीं किया जा सकता ! ये दूध में मिले हुए पानी की तरह होते है।

सीरीज के लेखक , निर्माता और निर्देशक राज निदिमोरू एवं कृष्णा डी के की जोड़ी ने इस संतुलन का ध्यान रखा है। अलगाववादियों को उनके समुदाय समाज में सहानुभूति मिलने और शहीद मानने की खबरे अब नई बात नहीं रही वही सरकार उन्हें आतंकी से कम मानने को तैयार नहीं है। इस तरह की विवादस्पद बहस को सिर्फ एक संवाद से ही ख़त्म करने का प्रशंसनीय प्रयास किया गया है।

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केंद्र की सरकार से वफादारी दिखाने वाले अफसरों को महज एक संवाद से संदेश देने की कोशिश की गई है कि ‘ कोई भी आए या जाए हमें फर्क नहीं पड़ना है हमें सिर्फ देश सेवा करना है ! यह उनके निर्देशकीय कौशल की सफलता है। इतनी ही सावधानी भाषा को लेकर बरती गई है। तमिल पात्र तमिल भाषा में ही बात करते बताये गए है अन्यथा दक्षिण में इस बात पर बखेड़ा खड़ा हो सकता था कि ‘ हम पर हिंदी थोपी जा रही है !!

सीरीज के पात्रों की कास्टिंग गजब की है। हरेक पात्र को सलीके से गढ़ा गया है। उनके खान पान रहन सहन और वातावरण पर भी खासी मेहनत की गई है। सी आई डी और क्राइम पेट्रोल जैसे धारावाहिक देख चुके दर्शक पुलिसिया पड़ताल से काफी परिचित हो चुके है लिहाजा ‘ फेमिली मेन ‘ दर्शक की अपेक्षा को पुलिस और आतंकवादियों के क्रियाकलापों की मदद से एक पायदान ऊपर ले जाता है।

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इस सीरीज के प्रशंसकों के लिए एक अच्छी खबर भी है।
फैमेली मेन 3 के निर्माण की ओपचारिक घोषणा भी हो गई है !

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