विश्व दीपक-
किसान आंदोलन चला एक साल तक. मोदी जी ने माफ़ी मांग ली, किसानों ने माफ़ कर दिया. घर लौट गए. इस बीच चुनाव भी हो गए. चुनाव में किसानों ने उसी BJP को वोट दिया जिसके खिलाफ साल भर धरने पर बैठे रहे. इससे क्या साबित होता है ? यही की किसान आंदोलन फर्जी था. इस मुल्क का किसान पैदाइशी BJP प्रेमी है आदि-आदि.
आपकी सहूलियत के लिए ये सब निष्कर्ष निकाले जा चुके हैं. बस यह चिट्ठी देख लीजिए. इस चिट्ठी में FCI यानी फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया अपने कर्मचारियों/अधिकारियों को यह कर रहा है कि :
•किसानों से गेहूं खरीदकर सीधे अडानी के साइलोस में बड़ी मात्रा में पहुंचना है
•जहां-जहां अडानी के साइलोस हैं वहां-वहां मंडियों को गेहूं भरने के लिए बोरा नहीं देना है
यानि एक पब्लिक कॉरपोरेशन, एक प्राइवेट कम्पनी (मोदी के खासमखास अडानी) के लिए गेहूं इकट्ठा कर रहा है. वह भी बल्क में. किसान इस बात को जानते थे इसलिए जब APMC एक्ट को निरस्त किया गया नए कानूनों के जरिए तो किसानों ने इसका विरोध किया.
बस छोटी सी कुछ जानकारियां और हैं. इस मुल्क की 60-65 फीसदी किसानी से जुड़ी है. एक किसान परिवार की औसत आमदनी बस 3000 प्रति माह से कुछ ही ऊपर है जबकि उसके ऊपर सालाना कर्ज़ 10000 से भी उपर है. मतलब आमदनी से दोगुना कर्ज़ प्रति महीना हर किसान परिवार के सर पर सवार है.
यह भी याद रखिएगा कि
यह सब कुछ उसी दौर में यानि पिछले सात-आठ साल में हुआ है जिसमें अडानी की संपत्ति बेतहाशा बढ़ी है और वह एशिया का सबसे बड़ा अमीर बना है.
यह सब कुछ उसी दौर में यानि पिछले सात-आठ सालों में हुआ है जिसमें भारत में राम राज्य की स्थापना हुई है. देश के सबसे बड़े, ज्यादा आबादी वाले लेकिन सबसे पिछड़े राज्य में भगवाधारी बाबा बुल्डोजर नाथ ने (आज ही) दोबारा शपथ ली है.