फ़ूड बिज़नस रिस्कीएस्ट बिज़नस है, जोमैटो-स्विगी हज़म कर जाते हैं 30 प्रतिशत!

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नितिन त्रिपाठी-

एक मित्र हैं. सॉफ़्टवेयर में हैं. कोविद काल में सैटेलाइट किचन की पॉपुलैरिटी के लेख पढ़ कर उन्होंने अपना सैटेलाइट किचन आरंभ किया. एक फाइव स्टार होटल में किराए में जगह लेकर बिलकुल न्यू जनरेशन किचन आरंभ की, परफ़ेक्ट हाइजेनिक. उनका बजट लगभग पचास लाख का था. वर्ल्ड क्लास शेफ रखे. कस्टमर के लिए zomato और स्विग्गी.

समस्या यह कि zomato और स्विग्गी तीस प्रतिशत तो सेल्स का कमीशन ले लेते हैं. इसके बावजूद आप यदि कूपन नहीं ऑफर करते तो एक ग्राहक न आएगा. कूपन ऑफर करिए आपकी कॉस्ट का 40% चला गया. पर कूपन तो सब ऑफर करते हैं. विज्ञापन करना पड़ेगा. एक्सपर्ट थे तो विज्ञापन में उनका खर्च बीस प्रतिशत आ रहा था. सब मिला कर 60% zomato को, 20% rent. अब हाथ में आ रहा है बीस प्रतिशत जिसमें पैकेजिंग लेबर कॉस्ट, रेंट आदि. इसे प्रतिशत में नहीं आंक सकते वह हुई फिक्स कॉस्ट जो महीने की लगभग दो लाख.

अख़बारों में छपा उनके वेंचर के बारे में तो और उत्साह बढ़ा. पर अख़बार में छपने से सेल्स विशेष नहीं बढ़ती zomato पर. क्वालिटी फाइव स्टार थी, रेट उन्होंने धीमे से बढ़ा कर फाइव स्टार वाले किये. जो सेल हो रही थी वो भी बंद. पिकैडिली में जो पास्ता पाँच सौ का है वह आपके यहाँ से सात सौ का कोई क्यों लेगा. पिकडिली में खाने जाइए वह पास्ता 1200 का है पर ऑनलाइन डिलीवरी में वह 500 का देते हैं – यह उनकी एक्स्ट्रा सेल है. शुद्ध मुनाफ़ा सौ रुपये का मटेरियल हटा कर. आप को तो इसी में सारे खर्चे भी करने हैं.

फाइनली उन्होंने टैली किया तो पाया ज़ोमतो से उन्हें 40% नहीं बल्कि इन हैंड 30 ही पहुँच पा रहा था. क्वालिटी थी फ्रेश बनाते थे तो दस में एक बार ऑर्डर लेट भी होता था जिस पर कई गुना पेनल्टी थी. दुष्ट कस्टमर थे जो खाने के बाद शिकायत करते मच्छर था खाने में और उन्हें पैसा वापस मिल जाता. इस सबमें भी उनका दस प्रतिशत जा रहा था.

अंततः एक साल और पीएफ आदि से पैसा निकाल कर लगभग सवा करोड़ डुबो कर वह वापस अपने घर आये फिर से सॉफ़्टवेयर नौकरी कर रहे हैं.

फ़ूड बिज़नस रिस्कीएस्ट बिज़नस है, इसे आसान नहीं बल्कि रॉकेट साइंस से भी टफ समझें.


शशांक खंडेलवाल-

दिसंबर २०१७ में एक क्लाउड किचन खोला था, गुड़गांव में। बर्गर और पिज़्ज़ा की होम डिलीवरी के लिए। बहुत शानदार रिव्यू आए। हमने प्राइसिंग प्रीमियम रखी थी क्योंकि रॉ मटेरियल एकदम उच्च क्वालिटी का रखा था।

जोमेटो और स्वीगी से ऑर्डर भी खूब आए। हम काफी खुश थे। लगभग ८ महीने के ऑपरेशंस के बाद वहां बर्गर सिंह और इसी तरह के सस्ते बर्गर्स वाले आउटलेट्स की एंट्री हो गई। धीरे धीरे बिजनेस कम होने लगा। जोमैटो और स्विगी वालों से कहा तो उन्होंने सुझाव दिया कि बैनर ऐड्स चलाओ। हमने चलवाए। इस बीच उन्होंने चुपके से कमीशन भी बढ़ा दिया। ऊपर से कस्टमर कंपलेंट पर अपनी मर्जी से कुछ भी काट लेते थे।

काम करना असम्भव हो गया था। फिर भी इस उम्मीद में कि चल जायेगा हमने दो बार और पैसे डाले इस बिजनेस में। सबसे ज्यादा तो ये बात कि हम इमोशनली अटैच हो गए थे बिजनेस से कि चलाना ही है। खैर, आखिरकार हमें समझ आ गया कि ये बिजनेस नहीं चल पाएगा, तो हमने दिसंबर २०१९ में इसे बंद कर दिया।

आशय ये है कि बहुत सोच समझकर इस बिजनेस में एंटर करिएगा,किसी की चलती दुकान देख कर वह बिजनेस करने का निर्णय लेने से पहले सारे पक्ष सोच समझ लें।

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