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सुख-दुख

बिल्डर गौड़ हो या कोई और, प्रॉपर्टी के धंधे का इंटर्नल जालबट्टा इस पत्रकार से समझिए!

संत समीर-

गाजियाबाद | यह पोस्ट उन मित्रों को जागरूक करने के लिए है, जो ‘हाईफ़ाई हाइरेज़’ सोसायटियों को बेहतर मानकर मकान लेने की सोच रहे हैं। इससे आपको समझ में आएगा कि एक बेहद विश्वसनीय बिल्डर भी आपको कितने शातिराना ढंग से ठग सकता है। यहाँ मैं छुटभैये बिल्डरों की बात नहीं कर रहा हूँ। देश के सबसे विश्वसनीय बिल्डरों में से एक है, गौर ग्रुप या कहें गौड़ ग्रुप। इसी की अति सक्षिप्त कथा आज कह रहा हूँ। विस्तृत कथा संस्मरण का रोचक विषय है, जिसमें प्रॉपर्टी के धन्धे की कई अन्दरूनी बातों का मज़ेदार जालबट्टा मिलेगा। पूरी कथा मेरे संस्मरणों की प्रकाशनाधीन पुस्तक के दूसरे खण्ड में शामिल की जा सकती है।

ख़ैर, गौड़ ग्रुप के मुखिया हैं मनोज गौड़। मनोज गौड़ मेरे फेसबुकिया मित्र बीएल गौड़ के सुपुत्र हैं। गौड़ ग्रुप को खड़ा करने वाले और उसे विश्वसनीयता की ऊँचाई पर पहुँचाने वाले बीएल गौड़ ही हैं। यहाँ मैं जब गौड़ ग्रुप की बात कर रहा हूँ तो बीएल गौड़ को बख़्श देता हूँ। उनसे कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि अब वे बिल्डिंग बनाने-बेचने के कामों से फ़ुर्सत लेकर साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में रम चुके हैं। फेसबुक पर आपस की कुछ टीका-टिप्पणियों और एक-दो बार फ़ोन पर बातचीत के अलावा मेरी बीएल गौड़ जी से कभी कोई सीधी मुलाक़ात नहीं हुई है। यह बात ज़रूर है कि उनकी कविता की कुछ किताबें दसियों साल पहले कभी उनके लोगों ने समीक्षार्थ मेरे पास भेजी थीं, जिनमें से कुछ कविताएँ मुझे संवेदना के स्तर पर अच्छी लगी थीं। तभी से मैं उन्हें जानता हूँ, हालाँकि तब तक मुझे नहीं पता था कि बीएल गौड़ देश के नामचीन बिल्डर हैं।

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बात यह हुई कि कोविड के पहले हम कुछ पत्रकार मित्रों ने मकान लेने का तय किया तो घूमते-घामते एक दिन सिद्धार्थ विहार (ग़ाज़ियाबाद) में गौर सिद्धार्थम प्रोजेक्ट पर पहुँचे। वहीं मुझे पहली बार पता चला कि गौड़ ग्रुप को खड़ा करने वाले बीएल गौड़ हैं। अच्छा लगा। सहज विश्वास जम गया कि एक साहित्यिक मिज़ाज के संवेदनशील व्यक्ति ने अगर घर बनाकर देने का धन्धा खड़ा किया है तो फिर दूसरे तमाम बिल्डरों की तुलना में कुछ अधिक ईमानदारी भी होगी ही। बीएल गौड़ पर भरोसा करके हमने पास के अपेक्स, प्रतीक ग्रुप वग़ैरह में जाने का विचार त्याग दिया। इसके अलावा इनके नक़्शे में दो बड़ी बालकनियाँ भी हमें अच्छी लगी थीं।

असल खेल फ़्लैट बुक कराने के बाद शुरू हुआ। पज़ेशन तक कई लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं। इस बीच बीएल गौड़ के पुराने परिचित रहे मेरे कुछ पत्रकार मित्रों को पता चला कि मैंने गौर सिद्धार्थम में फ़्लैट बुक कराया है तो उन्होंने सलाह दी कि गौड़ साहब से कहकर फ़्लैट की क़ीमत में कुछ लाख कम कराए जा सकते हैं और बाक़ी के काम भी हो ही जाएँगे, पर मैंने इसमें रुचि नहीं लीं। मेरा अपना स्वभाव है। बिल्डर का अपना काम मेरा अपना। अलबत्ता, एक बार किसी बात के लिए बीएल गौड़ को मैंने सन्देश भेजा था और उन्होंने ज़िम्मेदारी के साथ उसे आगे बढ़ा दिया था। संयोग से जिस अधिकारी से मेरी मुलाक़ात करवाई गई, वे मेरे बेहद क़रीबी परिचित वरिष्ठ पत्रकार आदरणीय राहुल देव जी की भानजी निकलीं। अब शायद वे गौड़ ग्रुप में नहीं हैं।

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कई बातों को छोड़कर बिल्डर के साथ बस एक-दो लड़ाइयों की बात बताता हूँ, ताकि मित्रगण ध्यान रखें, अन्यथा ज़िन्दगी भर की ली-पूँजी लगाकर अपने घर का सपना धोखे में दुःस्वप्न भी बन सकता है। हमारे लिए दुःस्वप्न तो नहीं है, पर कड़वे अनुभव तो हुए ही और अब तक हो रहे हैं। पहला धोखा हुआ कि बिल्डर की ओर से फ़्लैट बुक करते समय हमें कुछ चीज़ों का ऑफ़र दिया गया था। पज़ेशन का समय आया तो ख़रीदारों को बिल्डर की ओर से कुछ पैसे थमा दिए गए कि लोग अपनी मर्ज़ी से अपने ब्रॉण्ड के सामान ख़रीद लें और फ़्लैट में अपने ढंग से काम करवा लें। जब हमारे सामने यह प्रस्ताव आया तो हमें समझ में आ गया कि ठीक-ठाक ढङ्ग से हमें बेवकूफ़ बनाया जा रहा है। मैं और दो अन्य टीवी चैनल के साथियों (सुजीत कुमार और राजेश रतूड़ी) ने पैसा लेने से इनकार कर दिया तो कई दौर की बातचीत के बाद आख़िरकार बिल्डर को सामान देने के साथ ऑफ़र के दूसरे काम भी फ़्लैट में करवाने पड़े। बचे रह गए कुछ और लोगों का भी हमारी वजह भला हो गया तो लोग ख़ुश हुए।

एक कार्यक्रम के दौरान बिल्डर की ओर से एक पर्ची मिली थी, जिसमें एक-दो छोटे सामान देने की बात थी। उस समय कहा गया था कि जब आपका पज़ेशन होगा तो जब चाहेंगे ये सामान दे दिए जाएँगे। मज़ेदार कि जब पज़ेशन के वक़्त मैंने सामान माँगा, तो असली या नक़ली ढूँढ़-तलाश के बाद गौरसंस के दफ़्तर से कहा गया कि उस कार्यक्रम की कोई फ़ाइल ही नहीं मिल रही है। इसे कह सकते हैं शुद्ध चार सौ बीसी।

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बिल्डर ने ऑफ़र में पाँच किलोवाट का बिजली का मीटर लगाकर देने का वादा किया था। हमारे लिए यह ऑफ़र में था। अन्य सैकड़ों लोगों से इसके लिए सत्तर हजार रुपये के आसपास धनराशि भी जमा करवाई गई थी। अब महाशय मनोज गौड़ के लोग कह रहे हैं कि बिजली का मीटर लगवाना उनके अधिकार में नहीं है, फ़्लैट मालिकों को पैसा जमा करके बिजली विभाग में ख़ुद आवेदन देना पड़ेगा। सवाल है कि ऐसा था तो लिखित वादा क्यों किया गया था? फ़्लैट मालिकों को ख़ुद आवेदन करना है तो उनका पैसा वापस कीजिए, वे मीटर लगवा ही लेंगे। इसके अलावा जिनको आपने लिखित रूप में ऑफ़र के तहत वादा किया था, उनका क्या?

अभी हाल बिल्डर ने जो मीटर लगाकर दिए थे, उन्हें हटाना शुरू कर दिया है और लोग परेशान हैं। बिजली का मीटर हटाने का मतलब पीने का पानी, जिसके लिए बिल्डर ने ही ऑरो लगवाया था, वह भी बन्द। कानूनन किसी का बिजली-पानी बन्द नहीं किया जा सकता, पर समरथ को नहिं दोष गुसाईं। ऊपर से बिल्डर की ज़बरदस्ती यह कि ‘मल्टिपल प्वाइण्ट कनेक्शन’ लेना ज़रूरी है, जबकि ज़्यादातर लोगों की ज़रूरत ‘सिंगल प्वाइण्ट कनेक्शन’ की है।

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असल में बिल्डरों को भी पता होता है कि एक आम आदमी कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने से बचता है। दस-बीस-पचास हज़ार रुपये की बात हो तो लोग ख़ुद ही छोड़ो-हटाओ कहकर परेशानी से बचना चाहते हैं, जबकि सैकड़ों-हज़ारों लोगों से छोटी-छोटी रक़म हड़पकर बिल्डर करोड़ों कमा लेता है। सबवेंशन प्लान के नाम पर, पार्क के नाम पर, सोसायटी चार्ज के नाम पर भाँति-भाँति की धोखाधड़ी।

कई बार मन में आया कि एक बार कोर्ट-कचहरी का भी अनुभव लिया जाए, पर इतने छोटे मामले के लिए वकील भी कहाँ ढूँढ़ा जाए? दिल्ली में दो ही वकील याद आ रहे हैं, जो मेरे परिचित हैं। एक हैं सबके जाने-पहचाने प्रशान्त भूषण, जिनके घर में हम जैसे लोग डेरा जमाते रहे हैं। वैचारिक रूप से भले हमारे बीच कुछेक बिन्दुओं पर कुछ मतभेद हों, पर इलाहाबाद से लेकर दिल्ली तक में अपने एक-एक मकान उन्होंने हम समाजकर्मियों को ही दे रखा था। दिल्ली के जिस मकान से अन्ना हजारे की गिरफ़्तारी हुई थी, वह मकान भी प्रशान्त भूषण जी का ही था। मैं कभी-कभार आता-जाता था तो साथी केशर सिंह दिन-रात वहीं रहते थे।

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दूसरे परिचित वकील हैं, डॉ. एपी सिंह। ज़्यादातर लोग उन्हें पहले निर्भया काण्ड तो आजकल पाकिस्तानी सीमा हैदर के वकील के रूप में जानते हैं। दुर्भाग्य से इन बड़े लोगों से ऐसे छोटे मामले की चर्चा करने में भी शर्म आएगी। ख़ैर, देर शाम घर पहुँचने पर पता चलेगा कि पूरा मामला क्या-क्या हुआ। कुल कहने का इतना ही मतलब है कि बिल्डर कितना भी भरोसा दिलाए, पर अपनी मेहनत की कमाई लगाने से पहले सोच-समझ कर ही क़दम आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। रेरा वग़ैरह में भी बहुत कुछ मज़ाक़बाज़ी है, बिल्डर के हितों पर ज़्यादा आँच नहीं आती।

अन्त में एक बार फिर कह रहा हूँ कि बीएल गौड़ को मैं कोई दोष नहीं दे रहा, पर अगर वे यह पोस्ट पढ़ रहे हों तो ध्यान दें कि उनकी ईमानदार कोशिश का आजकल क्या हाल है!

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1 Comment

1 Comment

  1. Zahid Anwar

    October 27, 2024 at 6:05 pm

    मैंने भी एक फ्लैट इनके गौर सिटी -2 14th एवेन्यू में बुक कराया था कोरोना के टाइम पे। उस वक्त इन्होंने कहा कि आप 5% अभी दे दो और बाकी 95% पॉजिशन के टाइम पे, ईमेल के जरिए कन्फर्म भी किया और मैंने फ्लैट बुक कर दिया। उसके 1 से 1.6 साल बाद वो लोग मुझसे 45% ऑफ टोटल कॉस्ट की डिमांड करने लगे और तो और उन लोगों ने अपनी तरफ से ही बुकिंग फॉर्म भी भर दिए और मेरी सिग्नेचर भी कर दी। जब मैंने कहा कि मेरा और आपके एग्रीमेंट तो 5% और 95% था, जैसा कि बुकिंग फॉर्म और ईमेल बातचीत/कन्फर्मेशन में था, तो उन्होंने एक नहीं सुनी और मेरा फ्लैट किसी और को ज्यादा प्राइस पे बेच दिया। वहां पे एक सज्जन बैठे हैं (उनका नाम नहीं लूंगा), जो कि इंचार्ज हैं सब चीजों का, उनको भी मैंने सब बताया और सारे डॉक्यूमेंट और ईमेल दिखाए और कहा कि आपके लोगों ने अपनी तरफ से दूसरा बुकिंग फॉर्म भर दिया है, आप सिग्नेचर देख सकते हो या मेरी हैंडराइटिंग चेक कर सकते हो, तो उन्होंने भी कुछ नहीं किया।

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